ताजा खबरसीकर

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125 वीं जयंती कल

नेताजी की आजाद हिंद फौज के सिपाही थे स्वतंत्रता सेनानी भोजराज सिंह, नाथूराम, गुलाब सिंह व सवाई सिंह

दांतारामगढ़, [ लिखा सिंह सैनी ] भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फौज के संस्थापक और जय हिन्द व तुम मुझे खून दो में तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस  की  125 वीं जयंती 23 जनवरी को  देशभर में मनाई जायेगी। इन्हीं की आजाद हिंद फौज के सिपाही थे स्वतंत्रता सेनानी भोजराज सिंह निवासी भारीजा ,सिंह द्वितीय विश्वयुद्ध में सुभाषचंद्र बोस के आवाहन पर देश हित के लिए अंग्रेज़ी सेना के विरुद्ध लड़े व जापान (टोक्यो) की जेलों में यातनाएं सही । इन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया । इनका निधन  28 अगस्त 1992 में हुआ । राजेंद्र सिंह ने बताया की हमें गर्व है हम उस गांव के  रहने वाले हैं जिस गांव के किसान परिवार में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी भोजराज सिंह भारिजा  ने देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी । दुःख इस बात का है की वर्षों बाद भी किसी कार्यालय व स्कूल का नाम करण भोजराज के नाम पर नहीं है होता तो उसे युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती। स्वतंत्रता सेनानी भोजराज सिंह  के नाम स्कूल का नाम करण होना चाहिए।
स्वतंत्रता सेनानी नाथूराम कटारिया  जिनको घाटवा के  सभी ग्रामवासी प्रेम से “नाथू बाबा” कहते थे, आप नेताजी सुभाष चंद बोस की आजाद हिन्द सेना के सिपाई रहे, देश की स्वतन्त्रता के लिए आपने नेताजी के नेतृत्व लड़ाई लड़ी। आपको भारत सरकार की और से ताम्रपत्र मिला। आपका अनोखा व्यक्तित्व था, छ फिट से ज्यादा लम्बाई, रौबीली मूछे, सर पर गुलाबी राजस्थानी साफा, हाथ में सदैव “नो पैळि डाँग” रखते थे। सरकारी स्कूल घाटवा में स्वतन्त्रता दिवस पर ध्वजारोहण नाथू राम  ही करते थे। खादी की गांधी टोपी पहने स्व.घीसा लाल कामदार और साफा पहने नाथू राम  का व्यक्तित्व देखने लायक होता था, स्कूल के विद्यार्थी मार्चपास्ट करते थे, वो सलामी लेते थे, विद्यार्थियों का सीना गर्व से फूल जाता था, आज वो नजारे कहा । उन जैसे इंसान रहे ही नही…। नाथू बाबा आज हमारे बीच नही रहे पर उनकी स्मृति आज भी हमारे मन-मस्तिष्क में मौजूद है।नाथू राम की धर्मपत्नी तीजा देवी जिनको  डबल पेंसन सरकार की और से मिलती थी। आपके पुत्र उदय राम  कटारिया सेवानिवृत शिक्षक रहे है । नाथूराम के परिवार के सदस्य आज भी भारतीये सेना में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं । राउमावि घाटवा के पुस्तकालय का नाम स्वतंत्रता सेनानी स्व.नाथूराम कटारिया के नाम से रखा गया है। आजाद हिन्द फौज के ही सिपाही स्व. नाथूबाबा के साथी और घाटवा के द्वितीय स्वतंत्रता सेनानी स्व. गुलाबसिंह शेखावत भी महान नायक  सुभाष चन्द्र बोस के आव्हान पर इण्डियन आर्मी जो अँग्रेजों की थी उसे छोड़ कर आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गए थे। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि ऐसे देश प्रेमी स्व. गुलाबसिंह को भी भारत सरकार द्वारा ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया था। आजादी के पश्चात् आप  गुजरात पुलिस में भर्ती होकर वही रहने लगे 1985-86 में पुनः घाटवा आ गए थे । राज्य सरकार से मिलने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन को सरकार ने इन्हें यह कह कर अस्वीकार कर दिया था कि इन्होंने आवेदन की तारीख से 10 वर्ष  निकल जाने के बाद आवेदनपत्र भेजा है । तत्कालीन  मुख्यमंत्री शिवचरण  माथुर से घीसालाल कामदार ने निवेदन कर राज्य सरकार की सम्मान पेंशन कराई थी। सवाईसिंह शेखावत निवासी  खोरंडी इंडियन आर्मी को छोड़कर  सन् 1942 में आजाद हिंद फौज भर्ती होकर इरान, इराक ,अफगानिस्तान में नेताजी बोस के साथ लडाई में भाग लिया।अंग्रेजों ने जब नेताजी बोस पर हमला कर दिया हमले में एक गोली सवाई सिंह की टोपी को छुकर निकल गई उसके बाद भी नेताजी के साथ.अंग्रेजों से लड़ते रहे।इस दौरान अंग्रेजों ने सवाई सिंह को पकड़ लिया ओर जैल में डालकर ओर भयंकर यातनाएं दी। सवाई सिंह को भारत सरकार द्वारा कई मेडल देकर सम्मानित किया। लाल किले पर लगाई गई स्वतंत्रता सेनानियों की सुची में सवाई सिंह का नाम आज भी सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के भाषणों का सारांश जो वो सुनाते थें ।इन्हीं के एक ओर साथी लादूराम जाट निवासी लालास थे।जिनकी भारी प्रयासों के बाद भी पेंशन स्वीकृत नही हो सकी थी । दांता के फिल्म अभिनेता क्षितिज कुमार ने बताया की जब में साठ के दशक में किशनगढ़ रेनवाल की एमआरएस हाई स्कूल  में पढ़ता था  स्कूल के हैडमास्टर  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बाॅडीगार्ड नागर साहब  के लड़के सी के नागर थे। नागर  खुद वो ही टोप पहनते थे ओर स्कूल में आजाद हिंद फौज जैसे नियम व अनुशासन था ऐसा लगता था की स्कूल में नहीं फौज में है। आज़ाद हिन्द फौज के कुछ सैनिक भी विशेष अवसर पर स्कूल आते थे। आजादी से पहले ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अंडमान में प्रथम प्रधानमंत्री की शपथ ली थी उस समय ओर बाद तक अगर बोस प्रधानमंत्री होते तो भारत देश की तस्वीर कुछ ओर होती ।

Related Articles

Back to top button