पर कमबख्त सपने तो सपने होते हैं कब अपने होते हैं
जमने लगा चुनावी समर का रंग सामने आने लगे मुंगेरीलाल
झुंझुनू, राजस्थान में विधानसभा चुनाव की आहट अब साफ़ सुनाई देने लगी है। जिसके चलते आए दिन नित नए उम्मीदवार सामने आने लगे हैं। इस चर्चा को आपके सामने शुरू करें उससे पहले कुछ फ्लैशबैक में आपको ले जाते हैं। जब सोशल मीडिया नहीं था और ना ही इतने इलेक्ट्रॉनिक चैनलों का बोलबाला था। तब मुख्यतः क्षेत्र में एक दो अखबारों का ही बोलबाला था। उस समय किसी भी व्यक्ति को पैराशूट से राजनीति के मैदान में उतरना होता तो अखबारों के माध्यम से बड़े विज्ञापन दिए जाते और आसानी से नाम के आगे समाजसेवी लग जाता। फिर समाचारों में भी समाजसेवी नाम के आगे लगना शुरू हो जाता। लेकिन इस माध्यम के द्वारा भी आम जनता के अंतिम छोर तक पहुंचाना इतना आसान नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के बाद सोशल मीडिया ने अपना जाल फैलाया तो कुछ लोग तो स्वयंभू ही इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने आप को जनता के सामने प्रस्तुत करने लगे। फिर धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर विशेष रूप से यूट्यूब पर न्यूज़ चैनलों की भरमार हुई। वैसे तो वर्तमान में देश के बड़े नामचीन पत्रकार भी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आ चुके हैं इसलिए सभी पर तो यह बात लागू नहीं होगी। लेकिन क्षेत्र में ऐसे यू ट्यूब न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आई हुई है जो किसी भी व्यक्ति को रातों-रात किसी भी क्षेत्र से विधानसभा की उम्मीदवारी के रूप में यकायक ही प्रस्तुत कर देते हैं। क्षेत्र में देखा भी जा रहा है कि सुबह उठते ही हर एक विधानसभा से एक नया चेहरा किसी ने किसी यूट्यूब चैनल के माध्यम से सामने आ जाता है।
इनमें ज्यादातर लोग अपने जातिगत संख्या जहां पर ज्यादा है वहीं पर अपना रुख करते हैं। और यही से शुरुआत होती है विधायकी के हसीन सपने देखने की। लेकिन सपने तो सपने होते हैं कहां कमबख्त अपने होते हैं। वह दिन अब लद गए जब बाहर के क्षेत्र का कोई व्यक्ति आता और आसानी से चुनाव जीत जाता क्योंकि बढ़ता हुआ शिक्षा का प्रभाव लोगों में आई राजनीतिक जागृति और सोशल मीडिया ने लोगों में इतनी जागरुकता ला दी है कि किसी भी हालत में जातिगत आधार पर भी किसी बाहरी व्यक्ति को वह स्वीकार करने के मूड में नहीं नजर आते हैं। चाहे वह व्यक्ति प्रमुख दल का कितना ही बड़ा पदाधिकारी क्यों ना हो। लेकिन उसको स्थानीय स्तर पर विरोध का सामना करना ही पड़ता है। किसी भी विधानसभा क्षेत्र में ऊंचे ऊंचे होर्डिंग लगाने के दम पर आप टिकट की दावेदारी नहीं कर सकते। आपको ग्राउंड पर जाकर आम जनता से जुड़ना होता है। एक बड़े विधानसभा क्षेत्र में यह टारगेट पूरा करने के लिए सालो गुजर जाते हैं तब जाकर एक कर्मठ नेता तैयार होता है। लेकिन पैराशूट के दौर में अब यह बात देखने को नहीं मिलती।