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दक्षिण भारत शैली मे आयोजित बाय का दशहरा बहुत ही अनोखा और रोचक

दशहरे के दिन पूरा गांव बन जाता है कलाकार, हर शख्स निभाता है किरदार

सीकर, जिले के दांतारामगढ़ क्षेत्र के बाय में आयोजित होने वाला दशहरा मेला अपने आप मे बहुत ही रोचक और बेहतरीन है। यहाँ पर गांव में दशहरा अनोखे तरीके से मानते है। यहां रावण के पुतले को जलाने के बजाए सजीव रावण का वध किया जाता है। खास बात यह है कि इस युद्ध में पूरे ग्रामवासी राम और रावण की सेना में बंटकर अलग- अलग पात्रों के स्वांग धरते हैं। जो युद्ध भूमि बने गांव के खुले मैदान में एक दूसरे पर आक्रमण करते हुए राम- रावण युद्ध की नाट्य प्रस्तुती देते हैं। दक्षिण भारतीय शैली में मुखौटे व मंचन वाले बाय के इस मेले की तैयारी एक महीने पहले हर घर में शुरू हो जाती है। इस बार शनिवार को गांव में 171 वें मेले का आयोजन हुआ। जहाँ राम और रावण की सेना युद्ध स्थल पर दोनों सेनाओं में घंटों तक घमासान युद्ध होता हुआ और अंत में भगवान श्रीराम द्वारा दशानन के अंत के बाद ग्रामीणों द्वारा विजय जुलूस के साथ शानदार आतिशबाजी कर जीत का जश्न मनाया जाता गया। विजय जुलूस के रूप में भगवान श्रीराम को रथ पर बिठाकर गाजे बाजे के साथ मुख्य बाजार में स्थित लक्ष्मीनाथ मंदिर के सामने लेकर आते हैं। जहां भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक करने के बाद संपूर्ण रात्रि नरसिंह लीला का आयोजन होता है। इसमें स्थानीय कलाकार भगवान के 24 अवतारों की झांकी के अलावा अनेक देवी-देवताओं के मुखौटे लगाकर नगरों की थाप पर नाचते हैं। इस संपूर्ण रामलीला में गांव के ढाई सौ कलाकार शामिल होते है जो स्वयं के खर्चे पर मुखौटा व पोशाक तैयार कर अपना किरदार निभाते हैं।

गांव के लोग लेते है विभिन्न पत्रों में हिस्सा, अपने स्तर पर करते है तैयारी

ग्रामीणों ने बताया कि बाय गांव में दशहरे मेले की तैयारी एक महीने पहले ही शुरू हो जाती है। गांव के लगभग हर घर का सदस्य राम- रावण के युद्ध में हिस्सा लेता है। जिसकी तैयारी वह अपने स्तर पर घर पर ही मुखौटा, वेशभूषा व हथियार तैयार करके करता है। ऐसे में मेले से एक महीने पहले ही हर घर में इसकी तैयारी देखने को मिलने लगती है।

दिनभर राम लीला का मंचन, रात को नृसिंह लीला व झांकी

मेला कमेटी सदस्यों ने बताया कि दोपहर से शुरू होने वाले इस मेले में दिनभर राम व रावण का युद्ध चलने के बाद शाम को रावण वध होता है। इसके बाद रात को नृसिंह लीला का आयोजन होता है। जिसके साथ भगवान विष्णु के 24 अवतारों की झांकी लगती है। ये लीला व झांकी प्रदर्शन अगले दिन सूर्योदय तक चलता है।

मुस्लिम भी मेला कमेटी सदस्य

मेला कमेटी के नवरंग सहाय भारतीय ने बताया कि बाय का मेला सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी है। जिसमें मेला कमेटी के सदस्यों में काफी संख्या में मुस्लिम भी शामिल होते है। जो गांव के दशहरा समिति के सदस्य के तौर पर मेले की जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम देते हैं।

गांव उठाता है पुरे विजयादशमी का खर्च, देश- विदेश से आते हैं लोग

मेला कमेटी के सदस्यों ने बताया कि मेले का पूरा खर्च होता है। जो पूरे गांव के लोगों द्वारा ही उठाया जाता है। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है। जो पूरे मेले की व्यवस्था संभालती है। वहीं गांव के लोग देश-विदेश में कहीं भी हो, इस मौके पर जरूर गांव में पहुंचकर विजयादशमी समारोह में शामिल होते है।

प्रवासियों के लिए दशहरा ही स्नेह मिलन

बाय का ग्रामीणों और प्रवासियों के लिए बाय दशहरा ही मुख्य त्यौहार है। दशहरे में हिंदुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी चाव से शरिक होते हैं, बाय के 300 ऐसे परिवार है जो नौकरी और व्यवसाय के लिए अनेक राज्यों में रहते हैं। इनमें एक दर्जन से भी अधिक परिवार है, जो विदेशों में भी रहते हैं। ये प्रवासी लोग होली, दिवाली को नहीं अपितु दशहरे पर एकत्रित होकर इस पर्व को स्नेह मिलन की तरह मानते हैं।

उपखंड अधिकारी, तहसीलदार नें भी संभाली दशहरे की कमान

बाय दशहरे में सुगम व्यवस्था के लिए उपखंड अधिकारी दांतारामगढ़ मोनिका समोर, तहसीलदार महिपाल राजावत, थानाधिकारी खाटूश्यामजी राजाराम लेघा ने भी मेले की कमान संभाली। इस दौरान भाजपा प्रत्याशी गजानंद कुमावत, दशहरा मेला समिति के मंत्री नवरंग सहाय भारतीय, अध्यक्ष प्रहलाद सहाय मिश्रा मौजूद रहे।

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