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जनचर्चा सटीक बैठी कि पूनिया, मूंड खड़े ही बैठने के लिए हुए थे !

इलेक्शन एक्सक्लूसिव : आंखों देखी कानों सुनी

सरदारशहर, [जगदीश लाटा] डॉ रामसिंह पूनिया बैठ गए और लालचंद मूंड यानी नेता जी भी। जैसे कि दोनों बैठने के लिए खड़े हुए थे। जिस दिन नामांकन भरा था, उसी दिन से उनके खास समर्थक भी कह रहे थे कि ऐसे ही भर दिया है। नाम तो वापस ले सकते है। इस बहाने पार्टी के बड़े नेता थोड़ी मिजाजपुर्सी कर लेंगे। पूनिया को कथित रूप से राठौड़ ने मनाया या रामसिंह या स्थानीय भाजपा ने और मूंड को बेनीवाल ने मनाया या कार्यकर्ताओं ने या फिर कथित तौर पर जाटों के ‘एका’ ने। यह कोई विशेष बात नहीं है। महत्वपूर्ण है कि जब पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। वो भी आर एल पी जैसी ने। उसके बाद आपने नामांकन भरा ही क्यों और जब भर दिया,तो यह कहकर कथित रूप से मैदान छोड़ने की जरूरत क्या है कि समाज का दबाव था या पार्टी की विचारधारा से वह मुंह नहीं मोड सकते। हालांकि मूंड ने तो पिछला उपचुनाव भी लड़ा था और ४७ हजार वोट भी प्राप्त किये थे। पर पूनिया ने पार्टी से मुंह मोड़ कर निर्दलीय पर्चा भरा फिर हट कर वापस पार्टी की ओर उन्मुख हुए।तभी तो पहले नामांकन भरा था और यह कैसा समाज है जो पहले नामांकन भरने को और बाद में वापस लेने का दबाव डालता है। अब वापस ले लिया तो तर्क क्या।हर कोई जानता है नाम वापस क्यों लिया!

पूनिया तो जनचर्चा के अनुसार निर्दलीय क्या जीतते। उन्हें भी पता है कि पार्टी के साथ रहने में ही फायदा है। वोट पार्टी की विचारधारा पर मिलते हैं। मूंड जिला डेयरी के अध्यक्ष हैं परंतु केवल कथित तौर पर प्रभाव के कारण जाटों से संपर्क होने के अलावा व्यावहारिकता भी परमावश्यक होती है। उसके बाद आपके संबंध और समाज काम आते हैं। जाटों में प्रभावी होते हुए भी हारने से साफ है कि ये तीनों ही मूंड के उपचुनाव में काम नहीं आए तो इस चुनाव में काम आते? और पूनिया फिर क्या पता पहले पार्टी को सहयोग करते रहे। शुरू में एक बार भाजपा से अशोक पींचा की जीत में जरुर उनका जरूर हाथ था। उधर, निर्दलीय उम्मीदवार सभापति चौधरी कांग्रेस के होने से मूंड के रिश्ते कथित रूप से छत्तीस के आंकड़े से दूर नहीं थे।

जैसे जैसे प्रचार बढे़गा, पता चल जाएगा कि मूंड चौधरी के लिए और डॉ रामसिंह पूनिया पूनिया भाजपा के लिए क्या कर रहे हैं। उधर, कथित बड़ी पार्टी आर एल पी से टिकट लेकर भी मूंड बैठ गए। किसी ने सोचा ही नहीं होगा कि 47 हजार वोट लेने वाले आर एल पी के उम्मीदवार इस तरह बैठ जाएंगे। उन पर भी उनके समाज का कथित बहुत दबाव था यानी जाटों का। अपना नाम तो उन्होंने वापस ले लिया है, लेकिन क्या वह अब चौधरी को वोट दिलाएंगे। या उसी कांग्रेस का प्रचार करेंगे,जहां उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओ़ को चौपट करके रख दिया है। उनकी असली ताकत भंवरलाल जी थे। माना जा रहा है कि रिणवा भी हर समाज के वोट लेंगे। जिसमें राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य भी शामिल हैं,इसे भाजपा का वोट बैंक माना जाता है।

जैसा कि जगदीश लाटा पत्रकार को लोगों ने बताया

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