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पद्मभूषण पत्रकार साहित्यकार पंडित झाबरमल शर्मा की 132 वीं जयंती कल

रामकृष्ण मिशन आश्रम में

खेतड़ी,[जयन्त खाखरा] पद्मभूषण पत्रकार, साहित्यकार ,इतिहासकार पंडित झाबरमल की 132 वीं जयंती गुरुवार को खेतड़ी के रामकृष्ण मिशन आश्रम में 11 बजे मनाई जाएगी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व ऊर्जा मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह होंगे । साहित्यकार पंडित झाबरमल देश की एक ऐसी शख्सियत है जिनको पत्रकारिता का भीष्म पितामह कहा जाता है। उनके नाम पर देश भर में कई पत्रकारिता अवॉर्ड दिए जाते हैं। उन्होंने अपनी कलम के दम पर ब्रिटिश गवर्नमेंट से लड़ाई लड़ी ।पंडित झाबरमल्ल शर्मा का जन्म सन् 1888 में राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के खेतड़ी ठिकाने के पास जसरापुर ग्राम में पण्डित रामदयालु के घर हुआ था। इनके पिता सुप्रसिद्ध संस्कृत पण्डित और आयुर्वेद के पीयूषपाणि चिकित्सक थे। उन्होंने अपनी शिक्षा किसी स्कूल कॉलेज महाविद्यालय से प्राप्त नहीं की। अपने पिताजी के चरणों में बैठकर इन्होंने संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी और बंगला आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। 1905-06 में इन्होंने अपने पिताजी के विद्या-गुरू गणनाथ सेन के टोले में जाकर कलकत्ता में रहने लगे और वहां निरंतर स्वाध्याय से और अधिक ज्ञान अर्जित कर लिया था। सन उन्नीस सौ पांच में पंडित झाबरमल कोलकाता में जाकर रहने लगे और वहां पर काम की तलाश करते हुए उनकी भेंट हिन्दी के प्रख्यात पत्रकार पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र से हुई दुर्गा दास के सम्पर्क के कारण आपका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ और आप 1905 में कलकत्ता से ही प्रकाशित “ज्ञानोदय” पत्र के सम्पादक हो गए। तब आप “मारवाड़ी बन्धु” के सम्पादन-कार्य में भी सहयोग देते थे। 1909 में बम्बई से प्रकाशित होने वाले “भारत” साप्ताहिक पत्र के सम्पादक होकर वहां चले गए। उन दिनों “भारत” ही अकेला ऐसा हिन्दी पत्र था, जिसमें पूरे पृष के व्यंग्य चित्र प्रकाशित होते थे। जब आर्थिक कारणों से “भारत” बन्द हुआ, तब आप अखिल भारतीय माहेश्वरी सभा के आमन्त्रण पर उसके मुखपत्र “मारवाड़ी पत्र” के सम्पादक होकर नागपुर गए। वहां स्वास्थ्य ढुलमुल रहने पर स्वास्थ्य-सुधार के लिए जन्मभूमि शेखावाटी के जसरापुर लौट आए। जब देश में इक्का-दुक्का अखबार हुआ करते थे तब पंडित झाबरमल ने समाचार पत्र कंपनी की स्थापना की थी सूत्रों के अनुसार कलकत्ता से सन् 1914 में जन्माष्टमी के पुनीत पर्व पर “कलकत्ता समाचार कम्पनी लिमिटेड” की स्थापना की और यहीं से “कलकत्ता समाचार” दैनिक का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया। पत्र का सम्पादन भी स्वयं ही करते थे। जब शर्माजी ने “रौलट एक्ट” के विरोध में “कलकत्ता समाचार” के माध्यम से आन्दोलन प्रारम्भ किया, तो गवर्नर ने धमकी दी कि अधिक गड़बड़ी करने पर मारवाडियों को कोलकाता से निकाल दिया जाएगा। गवर्नर की इस धमकी के विरुद्ध जब शर्मा ने सनसनीखेज “गवर्नर का गुस्सा” शीर्षक से सम्पादकीय अग्रलेख में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब सरकार ने पत्र से दो हज़ार रुपए की जमानत मांग ली। कम्पनी के डायरेक्टरों ने निर्णय किया कि जमानत देकर पत्र नहीं निकालेंगे। प्रकाशन बन्द कर दिया गया। कुछ दिनों बाद एक अन्य उद्योगपति के स्वामित्व में “कलकत्ता समाचार” का प्रकाशन पुन: प्रारम्भ किया। किन्ही कारणों की वजह से वर्ष 1925 में पंडित झाबरमल्ल शर्मा दिल्ली आ गए और वहीं से अपने संपादन में कोलकाता समाचार पत्र का प्रकाशन किया दिल्ली में ही उन्होंने सनातन धर्म के प्रख्यात नेता व्याख्यान वाचस्पति पण्डित दीनदयालु शर्मा की प्रेरणा पर कुंवर गणेशसिंह भदौरिया और पण्डित झाबरमल्ल शर्मा “कलकत्ता समाचार” को “हिन्दू संसार” नाम से प्रकाशित किया. अपने पिताजी के ख़राब स्वास्थ्य के चलते इन्हें अपने गाँव वापस जाना पड़ा। इन्होने अपने पिता की देखभाल के साथ अपने सम्पादन और प्रकाशन का कार्य भी सुचारू रूप से किया। देश के सभी युवाओं के यूथ आइकन कहे जाने वाले स्वामी विवेकानंद पंडित झाबरमल के भी प्रेरणा स्रोत थे। यह सर्वविदित है कि स्वामी विवेकानंद खेतड़ी में तीन बार आए पंडित झाबरमल ने खेतङी के इतिहास और स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कई पुस्तकें भी लिखी है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर वर्ष 1958 में खेतड़ी में “रामकृष्ण मिशन” की एक शाखा की आधारशीला रखी खेतड़ी रामकृष्ण मिशन के पहले अध्यक्ष बने खेतड़ी के तत्कालीन राजा से उन्होंने मुख्य बस स्टैंड पर स्थित फतेह विलास महल में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की आज वह स्थान भव्य अजीत विवेक संग्रहालय के नाम से जाना जाता है जिसमें देश विदेश के लोग आकर स्वामी विवेकानंद और खेतड़ी नरेश राजा अजीत सिंह से जुड़ी यादों का म्यूजियम देखते हैं। पंडित झाबरमल्ल शर्मा इतिहासकार साहित्यकार तथा पत्रकारिता के पुरोधा कहे जाते है। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक पुस्तकें एवं रचनाएं लिखी जिनमे “क्षत्रिय नरेश और विवेकानंद” और गुलेरी ग्रंथावली ,सीकर का इतिहास आदि हैं। अपने जीवन के अंतिम दिनों में “राजस्थान और नेहरू-परिवार” ग्रन्थ का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 26 मई 1982 को प्रधानमंत्री आवास पर किया गया था। अपनी कलम के दम पर उन्होंने कई लड़ाइयां लड़ी और विदेश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पत्रकारों के टोली में सम्मिलित हो गए। उनको उनकी लेखनी के दम पर उत्तर प्रदेश सरकार ने साहित्य के क्षेत्र में किये गए अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए एक विशेष पुरूस्कार से सम्मानित किया गया था ।तथा भारत सरकार द्वारा वर्ष 1982 में “पद्म भूषण” से पुरुस्कृत किया गया था। 4 जनवरी 1983 को उनके पैतृक गांव जसरापुर में उनका निधन हो गया।

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