प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा अनादिकाल से चली आ रही परंपरा को निभाने की नहीं दी गई अनुमति
आयोजक कमेटी को बदलना पड़ा आदिकाल से चल रहे परम्परा को
उदयपुरवाटी, कस्बे के सीकर रोड़ पर स्थित नांगल नदी में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शनिवार को दशहरा पर्व मनाया गया। जमात स्थित बालाजी मंदिर से दादूपंथियों की सेना ऊंटों पर सवार होकर ढ़ोल नगाड़े बजाते हुये शाही लवाजमा से गाजे-बाजे के साथ में चूंगी न.3, जांगिड़ मौहल्ला, टिटेड़ा, पांच बत्ती, पुरानी सब्जी मंडी तिराहा, मैन बाजार, पोस्ट ऑफिस, शाकम्भरी गेट, घुमचक्कर होते हुए नांगल नदी पर शाम 6 बजे पहुंचे। जहां पर रावण के पूतले के साथ में सेना के रूप में रखे मटकों को जमात के दादुपंथियों की सेना में हसामपूर से आये राजेन्द्र ने बाण चलाकर छलनी किया। सेना को छलनी करने के बाद में विशेष रूप से आतिशबाजी कर रावण के पूतले का दहन किया गया। रावण के पूतले का दहन कर बुराई पर अच्छाई का प्रतीक पर्व मनाया गया। इस दौरान विधायक भगवानराम सैनी, थानाधिकारी राजेश बुडानिया, नगर पालिका अध्यक्ष रामनिवास सैनी, पंचायत पांचो अखाड़ों के कार्यक्रम संयोजक शिवदयाल स्वामी, पूर्व मंत्री थमायत शंकर दास स्वामी, मंत्री दयाराम स्वामी, महेंद्र दास स्वामी, आत्मप्रकाश दास स्वामी, लक्ष्मण दास स्वामी, अशोक स्वामी, अरविंद स्वामी, दीपक स्वामी, पंकज स्वामी, पार्षद घनश्याम स्वामी, राहुल स्वामी, शंकर दास, परमेश्वर दास, रवि स्वामी, हनुमान स्वामी, रंजीत स्वामी, शाकंभरी से दिनेश शर्मा, पालिका सैनी समाज अध्यक्ष केदारमल सैनी, पूर्व सैनी समाज अध्यक्ष विनय कुमार सैनी, किसान नेता धनाराम सैनी, दौलत राम सैनी, अशोक सैनी, महेश सैनी, पार्षद राजेंद्र मारवाल, बाबा अशोक सैनी, अमित जांगिड़, सुनील कुमार, अनूप जांगिड़, सुनील सैनी, मयंक, मनीष कुमावत, भुलेश, दिनेश, कैलाश, बबलू, करन, सुभाष, रामधन कटारिया, पार्षद अजय तसीड़, माहिर खान, देवीलाल चौधरी सहित पांचों अखाड़े के पंच भंडारी एवं क्षेत्र के वर्तमान तथा पूर्व जनप्रतिनिधि व गौ सेवा समिति के गौ रक्षक मौजूद रहे।
बंदूकों से छलनी करने वाली आनादिकाल से चली आ रही परंपरा बंद
रावण दहन में दादूपंथियों की सेना को बंदूक से छलनी करने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही थी। परंतू इस बार दादूपंथियों की आयोजक समिति के द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों से उक्त कार्यक्रम की अनुमति मांगी गई तो नियमों का हवाला देते हुये बंदूक चलाने की अनुमति नही दी गई। जिसके बाद में आयोजक समिति ने आदिकाल से चली आ रही परंपरा में परिवर्तन करने का निर्णय लेते हुये बाण का प्रयोग किया गया। प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा धार्मिक कार्यक्रमों में सहयोग नहीं करने से कस्बे में चर्चा का विषय बना हुआ है।