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हद पार करे चाइना तो संधि टूटे या समझौता पीछे मत हटना

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दी सेना को खुली छूट


नई दिल्ली, [ब्यूरो रिपोर्ट ] भारत और चीन के मध्य गलवान घाटी में हुए सैनिक संघर्ष के बाद पूरे विश्व की नजर भारत और चाइना पर टिकी हुई है । चाइना में जहां पर वामपंथी ताकतें चरम पर हैं उनके सामने मुंह खोलने की ताकत ना तो वहां की मीडिया में है और ना वहां की जनता में है लेकिन भारत के मामले में स्थिति देखें तो बिल्कुल उलट है । भारत के अंदर मीडिया को पूर्ण स्वतंत्रता है इसके अलावा भारत का जो नागरिक है वह विभिन्न मंचों पर अपनी बात खुले रूप से प्रकट करता है । इसी का कुछ नाजायज फायदा वर्तमान संदर्भ में विपक्षी दल उठा रहे हैं बात करें राहुल गांधी के उस बयान की जिसमें उन्होंने कहा था कि लद्दाख में जो संघर्ष हुआ है इसमें हमारे भारतीय सैनिक बिना हथियार कैसे गए तो कमजोर जानकारी के धनी राहुल गांधी को बताना जरूरी है कि 2013 में जब मनमोहन सिंह की सरकार थी तब उन्हीं के द्वारा चाइना से एक संधि की गई थी जिसमें तय हुआ था कि भारत चीन सीमा पर दोनों तरफ से कोई गोली नहीं चलाएगा और इसकी शुरुआत 1996 की कमजोर सरकारों से ही शुरू हो चुकी थी । चाइना ने भारत की तत्कालीन अस्थिर कमजोर सरकारों का फायदा उठाते हुए अपने राजनीतिक प्रोपेगेंडा को बड़ी कूटनीति के साथ आगे बढ़ाया जिसके चाल में हमारी सरकारें जकड़ दी गई या यूं कहें कि कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के चलते वह चाइना की कूटनीति का जवाब नहीं दे सकी । हमारे देश में विपक्षी दल हल्ला मचा रहे हैं कि हमारे 20 सैनिक शहीद हुए हैं लेकिन इसके पीछे का जो तथ्य है कि चीन को भी इसमें भारी नुकसान उठाना पड़ा है । सूत्रों की खबर माने तो यह आंकड़ा भारत से कहीं ज्यादा है और चाइना को इसमें सैनिकों की क्षति के साथ-साथ अन्य क्षति भी उठानी पड़ी है ऐसी जानकारियां भी मिल रही है कि भारतीय जो कमांडो हैं जिनको बिना हथियारों से लड़ने की ट्रेनिंग दी हुई है उन्होंने चाइना के सैनिकों को जमकर धराशाई किया है वह गए खाली हाथ जरूर थे लेकिन दुश्मन की हथियार लेकर लौटे हैं और दावा यह भी किया जा रहा है सोशल मीडिया पर कि वह चाइना के खेमे से दवाइयां भी लेकर आए हैं । हो सकता है कि उसके अंदर कोरोना रोगथाम की दवाइयां भी हो जिससे चाइना पूरे विश्व के स्तर पर एक्सपोज हो सकता है । वही मनमोहन सिंह की सरकार में यह संधि की गई थी कि भारत चीन सीमा पर कोई गोली नहीं चलाएगा भारत के रक्षा मंत्री ने कल सेना प्रमुखों के साथ हुई बैठक में दो टूक शब्दों में भारतीय सेना को खुली छूट दे दी है और यहां तक भी समाचार मिल रहे हैं कि उन्होंने बैठक के दौरान कहा है कि चाइना यदि अपनी हद को पार करें तो आप किसी भी समझौते और संधि को दरकिनार करते हुए गोली भी चला सकते हैं शायद इससे बड़ी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति आज तक भारत के इतिहास में कभी देखने को नहीं मिली । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सरकार के रूप में बहुत सारी मजबूरियां भी होती हैं जिसके चलते वास्तविकता को सभी राष्ट्रों के सामने रखा भी नहीं जा सकता और ऐसे मामलों में सरकार पर वह चीजें सार्वजनिक करने के लिए दबाव बनाया भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि वह हमारी विदेशी कूटनीति के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती हैं । और चाइना अपने आप को कितना भी बड़ा विश्व का तुर्रम खान समझता हो लेकिन उसको आभास है कि जो भारतीय सेना है वह उसके सैनिकों पर हर तरीके से भारी पड़ेगी उन्हें पता है कि भारतीय सैनिक इतने खूंखार और जांबाज हैं यदि वह अपनी पर आ गए तो बिना हथियारों के भी उसके सैनिकों की मुंडी मरोड़ सकते हैं । विश्व की किसी भी सेना के पास पहाड़ों के अंदर यानी माउंटेन एरिया के अंदर युद्ध लड़ने का जितना अनुभव भारतीय सैनिकों के पास है विश्व की कोई ऐसी सेना नहीं है । करगिल जैसी विषम परिस्थितियों के अंदर भी भारतीय सेना ने यह बात साबित की है । वहीं भारत के पास ब्रह्मोस मिसाइल है जो कि इन माउंटेन एरिया में युद्ध की स्थिति होने पर वरदान साबित होगी क्योंकि ब्रह्मोस मिसाइल ऐसी है जो 80 डिग्री के ऊपर जाकर के दुश्मन को नेस्तनाबूद कर सकती है ।वर्तमान संदर्भ में विपक्षी पार्टियों द्वारा यह राग अलापा जा रहा है चाइना का जो सामान है उसका बहिष्कार करने की बजाय सरकार ही उस पर क्यों ने रोक लगा दे तो जानकारी के लिए बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ ऐसी विश्व व्यापार संगठन की शर्तें होती हैं उनको भी मानना पड़ता है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार ने इसके लिए बहुत प्रयास भी कर दिए हैं । हाल ही में प्रधानमंत्री ने भारत के आत्मनिर्भर बनने का जो मूल मंत्र दिया है वह भी उसका एक पार्ट साबित हो सकता है लेकिन जो भारतीय कंपनियां हैं उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि सबसे पहले वह अपना मुनाफा देखती हैं जबकि चाइना जो होता है उसका पहला टारगेट होता है यह होता है कि वास्तव में उपभोक्ता को क्या चाहिए उसी मार्केट के अनुरूप वह और वस्तुएं तैयार करता है और बाजार में उतारता है । चाइना का सामान सस्ता पड़ता है इसी के लिए जो भारतीय लोग हैं वह उसकी तरफ आकर्षित होते हैं और स्वाभाविक भी है क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वह अधिक मूल्य के सामान को खरीद सकें लेकिन ऐसी स्थिति के अंदर भी भारत की जनता के पास एक विकल्प बचता है वह विकल्प यह है कि ताइवान और वियतनाम भी चाइना की तरह ही सस्ती चीजें और सामान बाजार में उपलब्ध करवा रहे हैं तो हम यह चाहिए कि हम ज्यादा से ज्यादा वियतनाम और ताइवान से बने हुए प्रोडक्ट को ही खरीदें यदि हमें सस्ते की आवश्यकता है तो । इससे दो फायदे होंगे एक तो अप्रत्यक्ष रूप से चाइना का जो बाजार है वह डाउन होगा दूसरा वियतनाम और ताईवान को इससे फायदा मिलेगा और वियतनाम और ताइवान दोनों ही चाइना के कट्टर दुश्मन हैं इस हिसाब से भी भारत को इसका लाभ मिलेगा ।

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