महिलाओं व अछूतों के उत्थान और देश की आजादी के लिए जीवन समर्पित करने वाली
लेखक- धर्मपाल गाँधी
आज एक ऐसी महान महिला स्वतंत्रता सेनानी और पद्म विभूषण से सम्मानित महान सामाजिक कार्यकर्ता की जयंती है, जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ-साथ महिला शिक्षा व उनके सामाजिक उत्थान और हरिजनों के जीवन की बेहतरी के लिए, उनके मंदिर में प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण काम किया था। पहली बार 17 जुलाई 1928 के ऐतिहासिक दिन को जानकी देवी ने वर्धा में अपने पूर्वजों द्वारा बनवाये गये लक्ष्मीनारायण मंदिर के दरवाजे हरिजनों के लिए खोलने का महत्वपूर्ण काम किया। उस जमाने में अछूतों को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करने वाला यह देश का पहला मंदिर था। जानकी देवी बजाज प्रसिद्ध उद्योगपति गाँधीवादी स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज की धर्मपत्नी थीं, जिन्होंने देश के लिए स्वेच्छा से अपने सारे स्वर्ण आभूषणों का त्याग कर दिया और आजीवन कभी कोई स्वर्ण आभूषण नहीं पहना। उन्होंने महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होकर सामाजिक कुरीतियों के अंत का शुभारंभ किया था। भारत सिर्फ अंग्रेजों का गुलाम नहीं था। सदियों से फैली सामाजिक बुराईयों, कुप्रथाओं, अंधविश्वास-पाखंडवाद और सामाजिक कुरीतियों के हम ज्यादा गुलाम थे। जानकी देवी बजाज भारत के प्रमुख सामाजिक परिवर्तन निर्माताओं में से एक थीं। उन्होंने महात्मा गांधी और विनोबा भावे के साथ पर्दा प्रथा और अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी और जेल की सजा भोगी। महात्मा गाँधी के प्रभाव में और विनोबा भावे की सच्ची शिष्या के रूप में, वह दूसरों के अनुसरण के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गईं। उनका व्यक्तित्व अनेक उत्कृष्ट विशेषताओं से निखरता चला गया और उनके कार्यों को उनकी दृढ़ स्वीकृति प्राप्त हुई। महात्मा गाँधी और विनोबा भावे दोनों ने उनके विकास में सक्रिय रुचि ली। जानकी देवी के पूरे चरित्र को बापू के सानिध्य, सद्परामर्श, विनोबा के स्नेह और आशीर्वाद तथा स्वयं के आत्म-अनुशासन और रचनात्मकता के कारण एक अद्भुत आभा प्राप्त हुई। वह अपने समय की गाँधीवादी सामाजिक कार्यकर्ताओं में प्रथम बनीं। आजादी के बाद भी समाज सेवा के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया और दलित- वंचित वर्ग व भूमिहीन किसानों को भूमि दिलाने का कार्य किया।
जानकी देवी का जन्म 7 जनवरी 1893 को मध्य प्रदेश के जरौरा में एक संपन्न वैष्णव-मारवाड़ी परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा के कुछ सालों बाद ही उनके छोटे-छोटे कंधों पर घर गृहस्थी की जिम्मेदारी डाल दी गयी। मात्र आठ साल की कच्ची उम्र में ही उनका विवाह, संपन्न बजाज घराने में कर दिया गया। विवाह के बाद उन्हें 1902 में जरौरा छोड़ अपने पति जमनालाल बजाज के साथ महाराष्ट्र के वर्धा आना पड़ा। जमनालाल बजाज, महात्मा गाँधी से प्रभावित थे और उन्होंने उनकी सादगी को अपने जीवन में उतार लिया था। जानकी देवी भी स्वेच्छा से अपने पति के नक़्श-ए-कदम पर चलीं और त्याग के रास्ते को अपना लिया। इसकी शुरुआत स्वर्णाभूषणों के दान के साथ हुई। गाँधीजी के आम जनमानस के लिए दिए गए जनसंदेश का जिक्र जमनालाल जी ने एक पत्र में जानकी देवी से किया था। उस वक़्त वह 24 साल की थीं। 1921 में महात्मा गाँधी के स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित होकर जानकी देवी ने घर और बाहर इस्तेमाल होने वाले विदेशी कपड़ों को जला दिया। उन्होंने सभी को खादी के वस्त्र पहनाये। संत विनोबा भावे बजाज परिवार के आध्यात्मिक गुरु थे। जानकी देवी की बच्चों सी निश्चलता से आचार्य विनोबा भावे इतने प्रभावित हुए कि उनके छोटे भाई ही बन गये। जानकी देवी के तीन पुत्री व दो पुत्र कुल पांच संतान थीं। एक संपन्न घराने की बहू होने के बावजूद जानकी देवी ने देश की आजादी के लिए हर सुख-सुविधाओं का खुशी-खुशी त्याग कर दिया। बच्चों सहित जानकी देवी का पूरा परिवार महात्मा गाँधी के साथ आजादी के आंदोलन में सक्रिय था। जानकी देवी बजाज देश की प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिनका महिलाओं के सामाजिक उत्थान और ‘हरिजनों’ की जीवनशैली में सुधार के क्षेत्र में योगदान सराहनीय है। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए उन्हें वर्ष 1932 में अंग्रेजों द्वारा कैद कर लिया गया था। जानकी देवी बजाज ने ‘खादी’ और ‘चरखा’ पर सूत कातने की स्वदेशी अवधारणा को अपनाने के अलावा, 1928 के दौरान मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों में हरिजनों को प्रवेश की अनुमति दिलानें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जानकी देवी की प्रसिद्धि बहुत दूर तक थी। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया। आचार्य विनोबा भावे के साथ वह कूपदान, ग्रामसेवा, गौसेवा और भूदान जैसे आंदोलनों से जुड़ी रहीं। गौसेवा के प्रति उनके जुनून के चलते वह 1942 से कई सालों तक अखिल भारतीय गौ सेवा संघ की अध्यक्ष रहीं। जानकी देवी बजाज सचमुच काम के प्रति समर्पित, सच्ची कर्मयोगिनी थीं। 1956 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्म विभूषण’ के सम्मान से सम्मानित किया गया, जो उन्हें भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्रदान किया गया था। उनके व्यक्तित्व के आगे पुरस्कार और आभूषण फीके पड़ गये। वास्तव में, यह कृतज्ञता और सम्मान की अभिव्यक्ति थी, जिसे भारत सरकार ने भारत के लोगों की ओर से प्रदर्शित किया। 1965 में जानकी देवी बजाज की आत्मकथा “मेरी जीवन यात्रा” प्रकाशित हुई। 21 मई 1979 को 86 वर्ष की अवस्था में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी स्मृति में कई शैक्षणिक संस्थान और पुरस्कार स्थापित किये गए हैं। जिनमें – “जानकी देवी बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट स्टडीज” और बजाज द्वारा स्थापित “जानकी देवी बजाज ग्राम विकास संस्थान” शामिल हैं। सन् 1992- 93 में भारतीय व्यापारियों की महिला विंग ने ग्रामीण उद्यमियों के लिए “महिला विंग जानकी देवी बजाज पुरस्कार” की स्थापना की है। ऐसी महान विभूति, क्रांतिकारी महिला को आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार नमन करता है।