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बेटे की रेबीज से मौत के बाद हारे नहीं, अब रेबीज के प्रति लोगों को कर रहे हैं जागरूक

एक साल में 500 लोगों की जान बचा चुके हैं कांस्टेबल शैतान सिंह

जिला प्रशासन व चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग कर रहा है सहयोग

झुंझुनूं, किसी की मुस्कुराहटों पे हो सके तो हो निसार…. किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार… जीना इसी का नाम है। प्रख्यात गीतकार शैलेन्द्र का लिखा अनाड़ी फिल्म का ये गीत और शैलेन्द्र खुद ब खुद आपका जहन आंसूओं के साथ गुनगुनाने लगा, जब झुंझुनूं के पुलिसकर्मी शैतान सिंह को आप तपती दोपहरी में भी लोगों को रेबीज के लिए जागरूक करते हुए देखेंगे और उनकी कहानी सुनेंगे। कहानी नहीं आपबीती है। सवा साल पहले 9 जनवरी, 2021 को उनके इकलौते बेटे प्रिंस की मादा श्वान द्वारा काटने के 14 वें दिन रेबीज़ के लक्षण आ गये और 20 वें दिन बच्चे की तड़प-तड़प के रेबीज बीमारी से मृत्यु हो गई थी। शैतान सिंह और उनकी पत्नी अनीता का संसार एकबारगी उजड़ गया था, लेकिन अपने लाड़ले की मृत्यु के महज 16 दिन बाद उसके छठे जन्मदिन यानी 26 जनवरी को उन्होंने फैसला लिया कि जिंदगी से हारेंगे नहीं, बेटे की याद में अपनी जिंदगी को नया मकसद देंगे। उन्होंने रिसर्च करना शुरू किया कि आखिर क्यों भारत में रेबीज से विश्व में सबसे ज्यादा मौतें यानी कुल मौतों का 35 फीसदी एवं हर 1 घंटे में 2 मौतें क्यों हो रही हैं? उन्होंने पाया कि रेबीज से मौत होने के पीछे सबसे बड़ा कारण जागरूकता का अभाव है। आज भी अधिकांश लोगों को मालूम ही नहीं कि श्वान के काटने के तुरंत बाद क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? सबसे बड़ी वजह शरीर के ऊपरी हिस्से में काटने और घाव में खून बह जाने के बाद में भी घावों को ग्रेड थर्ड में नहीं मानना और घांव में एंटी रेबीज इम्यूनोग्लोबुलीन्स सीरम नहीं लगाना है। सामान्यतया केवल एंटी रेबीज वैक्सीन को ही पर्याप्त मान लिया जाता है, लेकिन पागल श्वान या सामान्य श्वान के काटने पर भी रेबीज से पूरी सुरक्षा एंटी रेबीज सीरम से ही मिलती है। यही सीरम सीधे घावों या प्रभावित स्थान पर लगाई जाती है। जो तुरंत रेबीज़ के वायरस को खत्म कर देती है जबकि एंटी रेबीज वैक्सीन 10 से लेकर 14 दिन के बाद में शरीर में रेबीज से लड़ने की एंटीबॉडी बनाता है। कहीं बार शरीर के अपर पार्ट के काटने पर एंटीबॉडी बने उससे पहले ही रेबीज का वायरस मस्तिष्क तक पहुंच जाता है और पीड़ित में रेबीज के लक्षण आने शुरू हो जाते हैं और एक बार रेबीज का लक्षण आ गया तो मौत की संभावना काफी बढ़ जाती है, इसीलिए ग्रेड थर्ड में घावों में सिरम लगाना अति आवश्यक है। डब्ल्यू.एच.ओ. की गाईडलाईन के मुताबिक श्वान द्वारा चाटने पर इसे ग्रेड 1 का संक्रमण माना गया है, जिसे कास्टिक सोडा युक्त साबुन एवं अन्य एंटीसेप्टिक से धोया जाना पर्याप्त है। वहीं , नाखुन से खुरचने पर ग्रेड 2 का संक्रमण माना जाता है, जिस पर एंटी रेबीज वैक्सीन लगाया जाता है, वहीं श्वान द्वारा दांतो से शरीर के किसी अंग पर काटने व घावों में खून बह जाने के बाद उसको ग्रेड 3 का संक्रमण माना जाता है, जिसके लिए घांव के स्थान पर एंटी रेबीज इम्यूनोग्लोबुलीन्स सीरम वजन के हिसाब से और एंटी रेबीज वैक्सीन दोनों लगाई जानी आवश्यक है। 2008 बैच के कांस्टेबल शेैतान सिंह ने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से अपना नेटवर्क बनाया और लोगों को रेबीज की रोकथाम के लिए जागरूक करना शुरू किया। इसके बाद उनके पास श्वान के काटने पर राजस्थान के विभिन्न जिलों से लोगों के खुद- ब- खुद फोन और मैसेज आने शुरू हुए। रिजर्व पुलिस लाइन झुंझुनंू में कार्यरत शैतान सिंह अपनी ड्यूटी के अलावा खाली समय में लोगों के फोन आने पर तुरंत उन्हें सही उपचार का तरीक बताते हैं। अनेक बार खुद मौके पर पहुंचकर घायलों का उपचार करवाया। कई बार चिकित्सकों को भी एंटी रेबीज सीरम लगाने की अनिवार्यता की जानकारी का अभाव होता, तो उन्हें डब्ल्यूएचओ की गाईडलाईन से अवगत करवाते हैं। उन्होंने विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को भी इससे अवगत करवाया। जिसके बाद झुंझुनूं नगरपरिषद् ने रेबीज की रोकथाम के लिए अलग से 20 लाख रूपए का बजट निर्धारित किया है।

जिला प्रशासन ने भी उठाए प्रभावी कदमः

जिला प्रशासन ने भी श्वान के काटने के बढ़ते मामलों को देखते हुए कई प्रभावी कदम उठाए। इनमें जिला अस्पताल राजकीय बीडीके अस्पताल में प्रदेश का पहला एंटी रेबीज क्लीनिक खोलना शामिल है। इसके अलावा जिला प्रशासन के सहयोग से कांस्टेबल शैतान सिंह जिला परिषद के माध्यम से , पंचायत समितियों, नगर निकायों की आम सभा व ग्राम पंचायतों में होेने वाली ग्राम सभाओं में और विद्यालयों-महाविद्यालयों में भी लोगों को रेबीज से रोकथाम की जानकारी देते हैं। वे इस दौरान घाव की ग्रेड के अनुसार एआरवी और एआरएस लगवाने और डब्ल्यूएचओ की गाईलाईन के अनुसार रेबीज प्रोटोकॉल के तहत ईलाज करवाने की अपील करते हैं।

रेबीज मुक्त राजस्थान का लक्ष्यः

जिला प्रशासन का लक्ष्य अब संपूर्ण रेबीज रोकथाम झुंझुनूं है। जिला कलक्टर लक्ष्मण सिंह कुड़ी ने बताया कि शैतान सिंह की पहल स्वागत योग्य है। जिला प्रशासन भी इसके लिए भरसक प्रयास कर रहा है। कांस्टेबल शैतान सिंह का कहना है कि कुछ समय पहले उन्हें मालूम चला कि गोवा ने अपने आप को रेबीज मुक्त प्रदेश बनाया है। ऐसे में उन्होंने भी राजस्थान को रेबीज मुक्त करने के उद्देश्य से दिवंगत प्रिंस के सातवें जन्मदिन पर उसके नाम से 26 जनवरी, 2022 को ‘प्रिंस रेबीज रोकथाम संस्थान’ नाम से संस्थान शुरू कर कई जिलों में उपशाखाएं खोली हैं, जो श्वान, बंदर,नेवला,सियार, भेड़िए, भालू इत्यादि के काटने पर लोगों को तुरंत ईलाज उपलब्ध करवाते हैं। शैतान सिंह अपने वेतन का 50 फीसदी रेबीज रोकथाम के लिए खर्च करते हैं।

फैक्ट फाईलः
ऽ डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार रेबीज से हर 1 घंटे में 2 मौत
ऽ इनमें से 35 फीसदी भारत में
ऽ अधिकांश लोगों मंे रेबीज के ईलाज के लिए जागरूकता का अभाव है।

ऽ सामान्यतया केवल एंटी रेबीज वैक्सीन को ही पर्याप्त मान लिया जाता है।
ऽ ग्रेड 3 के घावों पर एंटी रेबीज वैक्सीन और एंटी रेबीज सीरम दोनों लगाना आवश्यक है
ऽ एंटी रेबीज वैक्सीन 10 से 14 दिन में एंटीबॉडी बनाता है, जबकि एंटी रेबीज इम्यूनोग्लोबिन सीरम (एआरएस) घाव पर सीधा लगाया जाता है और बेहतर असरकारक है।
ऽ लोगों में एआरएस लगवाने की जागरूकता नहीं होना रेबीज से मौत की बड़ी वजह है।

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