लेखक -आचार्य महेन्द्र शास्त्री, संरक्षक महात्मा ज्योतिबा फुले विचार मंच, बगङ
महात्मा फुले की 193वीं जयंती पर ह्रदय से कोटि कोटि नमन
संसार का एक मात्र समाज सुधारक जिनके नाम के आगे लगता है महान समाज सुधारक
झुंझुनू, हमारे देश भारत में सामाजिक और शैक्षणिक इतिहास के पन्नों बहुत ऐसी क्रान्तिकारी सख्सियते गुम हैं। जिनका सही मूल्यांकन नहीं हो पाया तथा जो मान सम्मान और और स्थान उनको मिलना चाहिए था वो उनको मिलना चाहिए था वो उनको मिल नहीं पाया। ऐसी ही क्रान्तिकारी सख्सियतो मे नाम आता है,महात्मा ज्योतिबा फुले का। जब 19 वीं सदी में भारतीय सामाजिक जीवन दुर्गति की चक्की में पिसता जा रहा था उस समय छुआ-छूत,सती प्रथा,बाल विवाह,विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां बुरी तरह व्याप्त थी। हमारा भारतीय समाज इसी प्रकार की रुढिवादी परम्पराओं से त्रस्त था। जिस प्रकार कीचङ में कमल खिलता है उसी प्रकार मानवता और मनुष्यत्व को खो चुके समाज मे ज्योतिबा फुले ने जन्म लिया। महाराष्ट्र के सतारा जिले में 11 अप्रैल 1827 को इस व्यक्तित्व का जन्म माली समाज में हुआ। ज्योतिबा फुले ने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम मानते हुए 1848 में सर्वप्रथम पुणे में बुधवार पेठ में श्री भिडे के मकान में अपनी अपनी प्रथम कन्याशाला प्रारंभ की। मुंबई सरकार के अभिलेखों में ज्योतिबा फूले द्वारा पुणे तथा उसके पास के क्षेत्रो में शूद्रादि बालक- बालिकाओं के लिए कुल 18 विद्यालय खोले जाने का उल्लेख मिलता है। 1855 में उन्होंने पुणे में भारत की प्रथम रात्रि प्रोढशाला और 1852 में मराठी पुस्तकों के प्रथम पुस्तकालय की स्थापना की। ज्योतिबा ने 1851 में ” फीमेल एज्यूकेशन सोसायटी ” तथा 1853 में सोसायटी फॉर प्रमोटिंग दी एज्यूकेशन आफ महारस एंड मांगस” की स्थापना करके शिक्षा प्रबन्धन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया। कन्या शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान के कारण मुम्बई ( महाराष्ट्र) सरकार की ओर से उन्हें पुणे के संस्कृत कालेज के प्राचार्य मेजर कैंडी ने 16 नवंबर 1952 को 193 रूपए के दो शाल भेंट कर सम्मानित किया। उन्होंने रूढ़िवादी सामाजिक- धार्मिक व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह करते हुए विधवा विवाह का समर्थन किया और 8 मार्च 1860 को एक शेनबी युवती का पुनर्विवाह करवाया। उन्होंने 1863 में बाल हत्या प्रतिबंधक गृह तथा विधवा प्रसूति गृह की स्थापना की एवं इसमें एक ब्राह्मण विधवा काशीबाई का प्रसव कराके 1874 में उसके पुत्र यशवंतो को गोद लिया। मुंबई में सैन समाज के लोगों से यह प्रतिज्ञा करवाई कि वे विधवा मुंडन का कार्य नहीं करेंगे। सन्1866 में उन्होंने अपने घर का कुआं पानी पीने के लिए अतिशूद्रो के लिए खोल दिया। 24 सितंबर 1873 को ज्योतिबा फूले ने सत्य शोधक समाज की स्थापना की, यह उनके विचारों का संस्थाकरण था। इसके तत्त्वाधान में बिना ब्राह्मण पुरोहित के 25-12-1873 एवं 07-05-1874 को विवाह करवाये,इस विवाह विषयक मुकदमे में ज्योतिबा की जीत उस समय हुई जब मुंबई उच्च न्यायालय ने जनवरी 1890 में इसे वैध घोषित कर दिया। यह निर्णय सुधारवाद के पक्ष में सामाजिक रूढिवाद की पराजय का प्रतीक था। उन्होंने 1890 में ही मुम्बई में देवदासी होने से रोका, इससे मुम्बई में वैचारिक भूकंप आ गया। एक सामाजिक कर्मण्यवादी विचारक के रुप में ज्योतिबा को सम्पूर्ण महाराष्ट्र में पहचान स्थापित होने के कारण उन्हें पुणे नगरपालिका का सदस्य (1876-1880) मनोनीत किया गया। 11 -05- 1888 को मुम्बई में मांडवी स्थित कोलीबाडा के सभागार में समाज के सभी वर्गों ने सार्वजनिक अभिनंदन किया। उन्हें महात्मा की जन उपाधि से विभूषित किया गया। महात्मा फूले भारत के प्रथम सामाजिक क्रांतिकारी थे जिन्होंने हंटर आयोग 1882 को प्रस्तुत स्मृति पत्र में शिक्षा के फिल्टर डाउन सिद्धांत का विरोध करते हुए अनिवार्य शिक्षा पर बल दिया । महात्मा फूले ने अपनी प्रत्येक पुस्तक में शूद्रादिशूद्रों के शोषण का विरोध करते हुए सामाजिक समानता का समर्थन किया। उन्होंने अपनी पुस्तक गुलामगिरी में लिखा– हर मनुष्य को आजाद होना चाहिए, यही उसकी बुनियादी जरूरत है। महात्मा फूले सामाजिक-ऐतिहासिक अन्तःदृष्टि के धनी, प्रथम सामाजिक शक्ति थे, जिन्होंने सर्व प्रथम अपनी अपनी पुस्तक सत्यशोधक समाज के लिए उपयुक्त मंगल गाथा में तथा पत्र व्यवहार में ” स्तरीय मेव जयते ” शब्द का प्रयोग किया। बाद में 26 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे अपनाया। जीवन पर्यन्त दलित वर्ग के उत्थान तथा सामाजिक- धार्मिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष करते रहना ही महात्मा फूले के जीवन की कर्म रेखा और भाग्य रेखा थी। 28 नवंबर 1890 को महात्मा फूले के संघर्ष पूर्ण जीवन का अन्त हुआ। 3 नवंबर 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी ने संसद भवन के परिसर में महात्मा फूले की प्रतिमा का अनावरण करके उनके व्यक्तित्व – कृतित्व को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान की। मैं हमारे सामाजिक संगठन महात्मा ज्योतिबा फुले विचार मंच के द्वारा फुले दम्पति के लिए भारत सरकार से उनके सम्मान में भारत रत्न देने की मांग की मांग करता हूँ। महात्मा फुले की 193वीं जयंती पर ह्रदय से कोटि कोटि नमन।