“अजोला पशु आहार की पौष्टिकता के बारे में जानिए”
लेखक : रवि कुमार तक्षक (पशुचिकित्सा डिप्लोमा)
सीकर, प्रगतिशील पशुपालको को समझना होगा कि अत्याधुनिक वैज्ञानिक तकनीको और नवीन अनुसंधानों के प्रयोग से ही अधिक दुध उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| पशु आहार के विकल्प की खोज में एक विस्मयकारी फर्न अजोला सदाबहार चारे के रूप में उपयोगी हो सकता है| पशुपालन में चारे-दाने में आने वाली लागत को कम करने में अजोला की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है| अजोला का उत्पादन एक बहुत ही सरल, सस्ती एवं लाभदायक तकनीक है, जिसमे कम लागत तथा थोड़ी सी मेहनत से पोष्टिक तत्वों से भरपूर चारा उत्पादन किया जा सकता है, तथा व्यवसायिक उत्पादन कर मुर्गी एवं अन्य पशुओ के आहार के रूप में अजोला बहुत ही उपयोगी साबित होता है|
अजोला : एक परिचय
अजोला जल की सतह पर तैरने वाली एक जलीय फर्न है| इसकी पंखुडियो में नील हरित शैवाल (एनाबिना अजोली) सह्जैविक के रूप में पाई जाती है जो वायुमंडलीय नत्रजन का योगिकीकरण करती है| अजोला शैवाल की वृदि के लिए आवश्यक कार्बन स्रोत एवं वातावरण प्रदान करता है, तथा शैवाल वातावरण से नत्रजन स्थायीकरण के लिए उतरदायी रहता है| प्राकृतिक रूप से यह उष्ण एवं गर्म उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रो में पाया जाता है| अजोला प्रोटीन, आवश्यक एमिनो एसिड, विटामिन्स, विकासवर्धक सहायक तत्वों तथा कैल्सियम, फॉस्फोरस, पोटैसियम, फेरस, कॉपर, मैग्निसियम से भरपूर होता है | शुष्क वजन के आधार पर इसमें 25 से 30 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} प्रोटीन, 10 से 15 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} खनिज, 7 से 10 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} एमिनो-अम्ल, जैव सक्रीय पदार्थ एवं बायो पॉलीमर होते है| अजोला दुग्ध उत्पादक पशुओ एवं मुर्गियों के लिए प्रोटीन का अच्छा स्रोत हो सकता है|
अजोला चारा खिलाने से पशुओ में होने वाले लाभ:-
अजोला सस्ता , सुपाच्य एवं पोष्टिक पूरक पशु आहार है | इसे खिलाने से वसा व वसारहित पदार्थ की मात्रा, सामान्य आहार खाने वाले पशुओ के दूध से अजोला खाने वाले पशुओ के दूध में अधिक पाई जाती है |यह पशुओ में बाँझपन निवारण में भी उपयोगी है | पशुओ के पेशाब में खून की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है जो पशुओ को अजोला खिलाने से दूर हो जाती है | अजोला से पशुओ में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है, जिस से पशुओ का शारीरिक विकास अच्छा होता है| अजोला की कई प्रजातिया पाई जाती है, परन्तु भारत में अजोला-पिनाटा प्रजाति प्रमुखता से मिलती है| अजोला में रिजका व नापिएर ग्रास की तुलना में 5 गुना अधिक प्रोटीन (20-25 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56}) मिलती है अजोला की यह विशेषता है कि यह अनुकूल वातावरणीय परिस्थतियो में 5 दिनों में ही 2 गुना हो जाता है| यदि इस से पुरे वर्ष उत्पादन लिया जाये तो 300 टन से भी अधिक अजोला प्रति हक्टेर पैदा किया जा सकता है| अजोला गाय भैस भेड़ बकरियों , मुर्गी के लिए एक आदर्श हरा चारा है अजोला अन्य चारो से अधिक पोष्टिक होता है दुधारू पशुओ को प्रतिदिन 2 से 2.5 किलो ताजा अजोला बांटे सके साथ खिलाने से 15 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} तक दूध उत्पादन में वृद्धि होती है | मुर्गियों को 10 – 15 ग्राम अजोला प्रतिदिन खिलाने से उनके शारीरिक भार व अंडा उत्पादन क्षमता में 10 – 15 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} तक की वृदि होती है| भेड़ व बकरियों को 100 -200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से शारीरिक वृद्धि के साथ दूध उत्पादन में भी वृद्धि देखी गयी है|
अजोला उत्पादन की विधि:-
अजोला की उत्पादन लागत प्रति एक किलो पर एक रुपये से कम आती है इसलिए किसानो व पशुपालको के बीच में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और यही कारण है कि दक्षिण से शुरू हुयी अजोला की खेती का कारवाँ अब पुरे भारत में फैलता जा रहा है अजोला की खेती किसान अपने आस पास खाली पड़ी जमीनों के अलावा अपने घरो की छतो पर भी इसका उत्पादन सरलता एवं सुगमता से कर सकते है|
भूमि का चयन-
पशुपालक अपने आस पास अनुपयोगी पड़ी भूमि में अजोला का उत्पादन कर सकता है भूमि का चयन करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि क्यारिया बनानी है वहा की भूमि का स्तर ऊँचा होना चाहिए ताकि वर्षा या अन्य किसी प्रकार का गन्दा जल क्यारियों में ना आ सके अजोला की क्यारिया जल स्रोत के आस पास होने चाहिए जिस से क्यारियों में सरलता से पानी दिया जा सके|
क्यारिया बनाने की पद्दति-
3 फीट चोडी 10 फीट लम्बी व 1 फीट गहरी आकार की कच्ची क्यारिया तैयार करके उस पर पॉलिथीन शीट को एक समान इस तरह से फेलाया जाये जिस से की क्यारी की परिधि अनुसार आयताकार आकार के किनारे पूरी तरह से ढक जाये इन क्यारियों में दस किलो छन्नी हुयी मिटटी व दो किलोग्राम गोबर खाद को मिलकर प्रति क्यारी में बिछा देना चाहिए और इन क्यारियों में पानी भर देना चाहिए सीमेंट की टंकी में भी अजोला उगाया जा सकता है उस टंकी में प्लास्टिक शीत बिछाने की आवश्यकता नही रहती सिर्फ छाया करने के लिए शेड नेट की जरुरत पड़ती है| आजकल बाजार में 12 ल. 6 चो. 1 ग. फीट की उच्च घनत्व पालीएथीलीन अजोला उत्पादन बेड भी उपलब्ध है|
अजोला का क्यारियों में स्थानांतरण-
0.5 -1 किलो शुद्ध अजोला कल्चर पानी पर एक समान फेला देना चाहिए| अजोला बीज फेलाने के तुरंत बाद अजोला के पोधो को सीधा करने के लिए अजोला पर ताजा पानी का छिडकाव करना चाहिए| एक सप्ताह के अन्दर अजोला पूरी क्यारी में फेल जाता है एव एक मोटी चादर जैसी बन जाती है| अजोला की तेज वृद्धि तथा 200 ग्राम प्रति वर्गमीटर देनिक पैदावार के लीये 5 दिनों में एक बार लगभग 1 किलो गोबर और 20 ग्राम सिंगल सुपर फोस्फेट मिलाया जाना चाहिए अजोला बहुत तेजी से बढ़ता है और 10-15 दिन के अन्तराल में पुरे गड्डे को ढक लेता है|
अजोला उत्पादन के दोरान बरती जाने वाली सावधानिया-
अजोला की तेज बढवार और उत्पादन के लिए इससे प्रतिदिन उपयोग हेतु लगभग 200 ग्राम प्रतिवर्ग मीटर की दर से बाहर निकाला जाना आवश्यक है|
अजोला तेयार करने के लिए अधिकतम 30 डिग्री तापमान उपयुक माना जाता है तथा इसे तेयार करने वाला स्थान छायादार होना चाहिए|
समय समय पर गड़े में गोबर व सिंगल सुपर फोस्फेट डालते रहे जिससे अजोला फ़र्न तीव्र गति से विकशित होता रहे|
प्रतिमाह एक बार अजोला तेयार करने वाले गड्डे या टंकी की लगभग 5 किलो मिटटी को ताजा मिटटी से बदले जिससे नत्रजन की अधिकता या अन्य खनिजो की कमी होने से बचाया जा सके|
अजोला तेयार करने की टंकी के पानी के pH का मान समय समय पर परिक्षण करते रहे इसका pH मान 5.5-7.0 के मध्य होना उत्तम रहता है|
प्रति दस दिनों के अन्तराल से एक बात अजोला तेयार करने की टंकी या गड्डे से 25-30{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} पानी ताजे पानी से बदल देना चाहिए जिससे नाइट्रोजन की अधिकता से बचाया जा सके|
प्रत्येक 3 महीनो के अन्तराल से एक बार क्यारी को साफ किया जाना चाहिए पानी तथा मिटटी को बदला जाना चाहिये एवं नये अजोला बीज का उपयोग किया जाना चाहिए|
अजोला को क्यारी से निकालने के लिए छलनी का उपयोग करना चाहिए व उसी छलनी में साफ पानी से धो लेना चाहिए ताकि छोटे छोटे पौधे जो की छलनी में चिपके रहते है उनको वापस क्यारी में डाला जा सके|
प्रकाश की तीव्रता कम करने के लिए छाया करने वाली जाली का उपयोग करना चाहिए|
अजोला की क्यारी में बायोमास अधिक मात्रा में एकत्र होने से रोकने के लिए अजोला को प्रतिदिन क्यारी से हटाना चाहिए|
पशुपालक सलाह :- रवि कुमार तक्षक ने पिछले दिनों आयोजित एक पशुपालक गोष्ठी का जिक्र किया जिसमें यश शर्मा का भी अहम योगदान रहा। पशुपालक गोष्ठी में पशु पालकों को सर्दियों में पशु स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी गयी। मिनरल मिक्सर के लिए ‘मैक्समीन फोर्टे’ को उपयुक्त बताया गया। पशु के ताव में नही आने पर ‘हीट मैक्स’ बोलस देवें। फिर पशु के ताव में आने के बाद कृत्रिम गर्भाधान करवाने के बाद ‘एआई मैक्स’ पिलाये। गादी की अच्छी वृद्धि के लिए ‘विक्टर एच’ देवे। ब्याने के बाद जेर नही गिरने पर ‘यूटरो प्लस सी’ दिया जा सकता हैं। थनैला रोग में एंटीबायोटिक उपचार के साथ ‘मस्टाफ्लेम’ पावडर के अच्छे रिजल्ट रहे हैं। सर्दियों में तबियत नासाज होने पर पीपीजेसिक बोलस, हाजमा खराब होने पर ‘फार्म टोन बोलस’ या ‘फर्मीजाइम पॉवडर’ तथा लीवर संबंधित समस्याओं के लिए ‘लिवफीड लिवर टॉनिक’ के अच्छे परिणाम रहे हैं। पेट मे कीड़े पड़ने पर ‘वर्मक्लीन डी एस’ से कृमिनाशन करवाये। दुधारु पशुओं को “कैल फीड जेल और लिक्विड” देने से दूध उत्पादन में वृद्धि होती हैं। इन उपायों से सर्दियों में पशु स्वास्थ्य अच्छा रखा जा सकता हैं।