झुंझुनूताजा खबरदेश विशेषपरेशानी

लॉक डाउन 4 की आहट और परेशान मजदूर

अब तो इनकी भी सुध ले लो सरकार

जिन मजदूरों के बाहुबल से भारत बनेगा आत्मनिर्भर उन्हीं को मारी जा रही है लात

गरीब मजदूरों ने सरकार का साथ देने में नहीं छोड़ी कोई कसर

मजबूरी में करना पड़ रहा है पैदल सफर

नई दिल्ली, [नीरज सैनी ] जब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रात 8:00 बजे संबोधित करने की खबर आती है तो देश की हर व्यक्ति के कान खड़े हो जाते हैं। और उत्सुकता बढ़ जाती है कि इस बार क्या नया करने या कहने वाले हैं मोदी। कल 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया और वर्तमान में चल रहे लॉक डाउन 3 के दौरान ही उन्होंने स्पष्ट बता दिया कि लॉक डाउन 4 का आगाज 18 मई से हो जाएगा लेकिन नई शर्तों के साथ। इसमें कोई दो राय नहीं है विश्व की बड़ी बड़ी शक्तियां जहां कोरोनावायरस के समक्ष धराशाई हो चुकी हैं वहीं भारत आज भी विराट वट वृक्ष की भांति खड़ा है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच भी महत्वपूर्ण है यह तो हुआ एक पहलू। अब यदि मानवीय संवेदनाओं के आधार पर देखें तो वर्तमान में भारत का गरीब मजदूर जितना परेशान और बेबस है उसकी दिल को झकझोर देने वाली तस्वीरें लगातार मीडिया में आ रही है उन्हें देखकर कलेजा मुँह में आ जाता है और अनजान मजदूरों की पीड़ा देखकर पलके भी गीली हो जाती है। प्रधानमंत्री ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोकल और वोकल पर जोर दिया लेकिन भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो या लोकल पर जोर देने कि यदि यह कोई संभव कर सकता है तो वह है गांव के अंदर बैठा हुआ अभावग्रस्त हमारा किसान और वर्तमान में बेहाल हमारा गरीब मजदूर। सोशल मीडिया पर और 1 न्यूज़ चैनल पर एक वीडियो देखने को मिला जिसमें घर लौट रहे एक मजदूर को एक अधिकारी अपनी लात मार कर हांकने का प्रयास कर रहा है कहां खत्म हो गई हमारी ब्यूरोक्रेसी की संवेदनशीलता और मानवीयता। भारत के गरीब और मजदूर के बस में जितना लॉक डाउन को सफल करने के लिए था उन्होंने सब किया। लेकिन अब वह मजबूर हैं काम धंधे बंद है मालिकों ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया। खाद्य सामग्री सहित अन्य जरूरी सामग्री पहुंचाने के लिए सरकारी प्रयास भी किए गए और कई स्थानों पर शुरू में भामाशाहो का जोर भी देखा गया लेकिन धीरे-धीरे वह सरकारी सहायता को भामाशाह की मदद इन गरीब मजदूरों तक पहुंचते-पहुंचते शिथिल हो गई। जिसके चलते भूख और जिल्लत से तड़पते मजदूर पैदल, रिक्शा, साइकिल या रेल की पटरियों के सहारे सहारे अपने गांव की ओर लौटने लगे। जब कुछ दिखाई नहीं दिया तो लगा कि जैसे गांव में जाकर जैसे तैसे गुजर-बसर कर लेंगे लेकिन यहां पर जोर जलालत झेलनी पड़ रही है वह तो नहीं झेलनी पड़ेगी। कई स्थानों पर मालिकों ने इस दौरान मजदूरों को किसी भी प्रकार की सहायता उपलब्ध नहीं करवाई। शुरू शुरू में सरकारी सहायता व अन्य तरीकों से उनको मदद पहुंची डटे रहे मजदूर और सोचा कि कुछ दिन की बात है। लेकिन जैसे जैसे लॉक डाउन 1,2 और 3 आया तब तक उनको यह मिलने वाली सहायता भी शिथिल पड़ने लगी। ऐसी स्थिति में इन गरीब बेघर मजदूरों का हौसला भी जवाब देने लगा। मजदूरों के बच्चों और महिलाओं को इस तपती धूप में सड़क के किनारे पैदल चलते हुए देखा जिनको कुछ नहीं मालूम कहां इनको भोजन मिलेगा कहां इनको पानी मिलेगा लेकिन चल दिए फिर भी अपने गांव की ओर मीलों का सफर तय करने के लिए। कई स्थानों पर मजदूरों की महिलाओं ने इसी सफर के दौरान नवजात शिशुओं को जन्म भी दिया। उनकी तस्वीरों में ही उन से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है हमारा सिस्टम। बड़े दुख की बात यह है कि केंद्र सरकार में गाइडलाइन निर्धारित की है, राज्य सरकारों ने गाइडलाइन निर्धारित की है कि किस तरीके से मजदूरों को एक राज्य से दूसरे राज्य तक भेजा जाएगा कैसे उनकी अनुमति लेने की प्रक्रिया होगी। लेकिन वास्तव में देखा जाए जिस गरीब मजदूर का किसी प्रदेश में ना कोई रिश्तेदार है ना कोई परिचित है वह सिर्फ सरकार भरोसे हैं। वहां पर वह अपनी मदद की गुहार लगाने के लिए अपने अपने जिले के आला अधिकारियों के यहां चक्कर लगाते रहे और चक्कर लगाते लगाते ऐसे चक्कर में उलझ गए कि कोई रास्ता नहीं देख अब उनके सामने खुद ही अपने पैरों के बलबूते पर उन्होंने अपनी मंजिल की ओर निकलना तय कर लिया। बड़ी विचित्र स्थिति है कई जिलों में ऐसा देखा गया कि जिला अधिकारी अपने आलीशान एयर कंडीशनर ऑफिस में बैठे हुए हैं और दूसरे प्रदेशों की गरीब मजदूर अपने गंतव्य स्थान को जाने के लिए अनुमति के लिए कार्यालय के बाहर तपती धूप में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बैठे हुए हैं। लेकिन बावजूद इसके भी हमारे ब्यूरोक्रेसी का दिल 70 सालों में इतना पत्थर का हो चुका है कि वह इनकी पीड़ा को देखकर भी इनसे मिलना ही मुनासिब नहीं समझते और उनको येन केन प्रकरेण वहां से टरका दिया जाता है। प्रदेश और केंद्र की सरकारों ने अधिकतर स्थानों पर अपना लॉक डाउन में बेस्ट देने का प्रयास किया है लेकिन जो नौकरशाही है वह किसी भी प्रकार का रिस्क लेने से बच रही है। यहां तक कि जिन को परमिशन देने की अथॉरिटी है वह भी बहाने बनाकर अपने हाथ पीछे खींच रहे हैं। उनको डर सता रहा है कि हमारे क्षेत्र का कोरोनावायरस का ग्राफ कही बिगड़ न जाए। लेकिन किसी भी स्थिति से अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना सही नहीं है। सत्ता और प्रशासन की ऊंची कुर्सियों पर बैठे हुए रसूखदार अधिकारियों कभी तो इन दीन हीन मजदूरों की करुण पुकार भी सुन लिया करो। जो पहुंच और रसूख वाले लोग हैं वह किसी भी प्रकार से अनुमति प्राप्त कर लेते हैं और एक आम गरीब मजदूर नौकरशाही में परमिशन मांगते मांगते थक चुका है अब उसकी हिम्मत जवाब देने लगी है। वहीं सरकार लोग डाउन 4 के अंदर कुछ विशेष सावधानियों के साथ उद्योग धंधों इत्यादि में छूट देगी लेकिन ऐसी स्थिति में जो कारखाना इत्यादि के मालिक हैं वह कितने मजदूरों को अपने यहां पर काम पर रखेंगे यह भी एक देखने वाली बात है। उनके पास क्या इतने संसाधन हैं कि वह सोशल डिस्पेंसिंग या सरकारी गाइडलाइन के अनुसार अपने कारखानों को सुचारू रूप से संचालित कर सकते हैं। वर्तमान में सरकार को मजदूरों को यह विश्वास दिलाना होगा कि अभी तक यदि आप अपने कार्यस्थल पर रुके हुए हैं तो वहां बने रहिए शीघ्र ही काम धंधे उद्योग फिर से चालू किए जाएंगे। जिनमें सुरक्षात्मक उपायों को काम में लेकर जनजीवन को फिर से सामान्य बनाने का प्रयास किया जाएगा। इससे जो लोग भयभीत होकर खासतौर पर मजदूर वर्ग पलायन कर रहे हैं उनको कुछ थोड़ा सा संबल मिलेगा। बस अंत में यही कि अब तो दीन हीन लोगो की भी सुध ले लो सरकार।

Related Articles

Back to top button