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“मुंहपका-खुरपका रोग” एक ज़ूनोटिक रोग हैं जो पशुओं से मनुष्यों में भी फ़ैल सकता हैं|मुंहपका खुरपका रोग विषाणु (पिकोरना वायरस) जनित संक्रामक रोग हैं जिसका फैलाव हवा द्वारा, या बीमार पशु के झूठे पशुआहार, पानी और दूषित पदार्थो के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओ में हो सकता है|| संकर नस्ल के पशुओं में यह रोग ज्यादा तेजी से फैलता है| मुंहपका खुरपका रोग होने पर पशु के दूध उत्पादन में अचानक से गिरावट आ जाती हैं| मुंहपका खुरपका रोग के कारण देश में प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार करोड़ रूपये की आर्थिक हानि होती हैं| मुंहपका खुरपका रोग हो जाने के बाद पशु गर्मियों में ज्यादा हांफने लगते हैं|
रोग के लक्षण:-
- तेज बुखार (104-106 डिग्री फॉरेनहाइट)
- पशु खाना पीना बंद कर देता है
- दूध उत्पादन में अचानक से गिरावट
- मुंह, जीभ और मसूड़ों पर छाले हो जाते हैं
- लगातार लार गिरती रहती हैं
- खुरों के बीच छाले हो जाने से पशु लंगड़ा कर चलता हैं
- कभी कभी थनों पर भी छाले हो जाते हैं
रोग से बचाव:-
सभी पशुओं का वर्ष में 2 बार सामान्यतया मार्च और सितम्बर में, मुंहपका खुरपका रोग का टीकाकरण अवश्य करवाए |बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| मुंहपका खुरपका रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए| बीमार पशु के छालों और घावों की प्रतिदिन लाल दवा के हल्के घोल से सफाई करें| घाव में कीड़े पड़ जाने पर फिनाइल अथवा नीम के पत्ते उबालकर उसके पानी से घाव साफ करे| मृत पशु का निस्तारण गहरा गड्डा खोदकर उसमे चूना या नमक डालकर करे|