विशेष न्यायाधीश सुकेश कुमार जैन द्वारा
झुंझुनूं, लैंगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम तथा बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम के विशेष न्यायाधीश सुकेश कुमार जैन द्वारा एक नाबालिग पीडि़ता से बलात्कार के मामले में निर्णय देते हुये आरोपी को जहां सभी आरोपो से बरी कर दिया वहीं न्यायालय में सशपथ झुठी साक्ष्य देने पर पीडि़ता व उसकी मां के विरूद्ध धारा 193 भादस में प्रसंज्ञान लेते हुये दोनो के विरूद्ध अलग से कार्यवाही संस्थित करने व दोनो को कारण बताओ नोटिस जारी करने के आदेश दिये है। न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी लिखा कि झुठी गवाही देने का जो मामला पीडि़ता व उसकी मां के विरूद्ध संस्थित किया जायेगा उसमें अब पीडि़ता का नाम गोपनीय रखने की आवश्यकता नही रहेगी क्योंकि पीडि़ता एवं स्वयं उसकी माता दोनो ने न्यायालय में पीडि़ता की उम्र बालिग होना बतायी तथा न्यायालय में भी इसी कारण पीडि़ता का नाबालिग होना साबित नही हुआ है, ऐसी स्थिति में पीडि़ता को बालिग मानते हुये तलब करने के आदेश दिये गये है। यही नही न्यायालय ने यह भी निर्णय में लिखा कि पीडि़ता के नाम से ही अब उक्त कार्यवाही संस्थित की जायेगी। मामले के अनुसार पीडि़ता की माता ने अपनी पुत्री के साथ पुलिस थाना गुढ़ागौडज़ी पर मामला दर्ज कराया कि 20 जनवरी 2018 को सुमेर पुत्र प्रहलादराम जाट निवासी जाखड़ो का बास तन धमोरा उसकी लडक़ी का अपहरण कर बलात्कार किया जिसके सम्बन्ध में कार्यवाही की जाये आदि। पुलिस ने इस रिपोर्ट पर सुमेर के विरूद्ध बलात्कार सहित पोक्सो एक्ट एवं अनु.जाति, जनजाति एक्ट में मामला दर्ज कर बाद जांच सम्बन्धित न्यायालय में चालान पेश कर दिया। इस्तगासा पक्ष द्वारा कुल 12 गवाहान के बयान करवाये गये किन्तु न्यायालय में पीडि़ता एवं उसकी मां दोनो पक्षद्रोही हो गयी व पीडि़ता व उसकी माता दोनो ने पीडि़ता की उम्र बालिग बतायी जिस पर न्यायालय ने आरोपी सुमेर को संदेह का लाभ देकर सभी आरोपो से बरी कर दिया किन्तु विशिष्ट लोक अभियोजक लोकेन्द्र सिंह शेखावत ने न्यायालय में तर्क दिया कि पीडि़त पक्ष द्वारा आरोपी के विरूद्ध बलात्कार का आरोप लगाने तथा पीडि़ता द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दिये गये बयानो में बलात्कार की पुष्टी करने के बाद जिस प्रकार पीडि़ता व उसकी माता दोनो पक्षद्रोही हुयी है उससे स्पष्ट है कि पीडि़त पक्ष का आशय न्यायालय में जान बुझकर सशपथ झुठी साक्ष्य देने का रहा है। न्यायालय ने अपने निर्णय में लिखा कि न्यायालय के समक्ष ऐसे अनेक मामले आये है जिसमें अनु.जाति, जनजाति अधिनियम के तहत मिलने वाली सहायता राशि अथवा पीडि़त प्रतिकर अधिनियम के तहत मिलने वाली राशि लेने के पश्चात पीडि़त पक्ष द्वारा स्वयं के साथ अपराध होने से इंकार कर दिया जाता है जो एक गंभीर प्रश्र है। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि इस मामले में जिला कलक्टर को पूर्ण विवरण देते हुये यह जानकारी ली जाये कि क्या पीडि़त पक्ष को किसी प्रकार की सहायता राशि का भुगतान किया गया था? यदि हां तो वह राशि कब व कितनी भुगतान की गयी थी। न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी लिखा कि पोक्सो अधिनियम के तहत अधिकांश मामलो में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने के पश्चात सरकारी मशीनरी का अन्वेषण एवं विचारण में काफी बड़ी राशि व्यय कर देने के पश्चात अभियुक्त से राजीनामा करके अभियोजन के पूरे मामले को ध्वस्त कर दिया जाता है, जो एक गंभीर प्रश्र है।