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नौ दिन रहेगा शाकंभरी माता के नवरात्रि का उत्सव

नवरात्र पर शुरू होंगे शुभ कार्य

मां शाकंभरी के नवरात्रि पर पहले ही दिन भारी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु

उदयपुरवाटी. अरावली की वादियों में स्थित मां शाकंभरी शक्तिपीठ के नवरात्र के पहले ही दिन सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु मंदिर परिसर में पहुंचने लगे हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पितृपक्ष के समापन के बाद आज से अच्छे दिन की शुरुआत हो गई है। आज से 9 दिवसीय पर्व नवरात्रि शुरू हो गया है। नवरात्रि के पहले दिन काफी संख्या में राजस्थान के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। नवरात्रि के साथ ही आज से सभी शुभ कार्य शुरू हो गए। सीकर जिले से लगभग 55 किलोमीटर पूर्व दिशा में उदयपुरवाटी क्षेत्र के निकटवर्ती अरावली की पहाड़ियों में स्थित मां शाकंभरी शक्तिपीठ की उपासना की तैयारी शुरू हो चुकी हैं। रविवार सुबह से ही घट स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की शैलपुत्री का पूजन किया गया। इसके साथ ही बाजारों में भी चहल-पहल दिखने लगी है।

शक्तिपीठ मां शाकंभरी में उमड़ी भीड़

उदयपुरवाटी क्षेत्र के निकटवर्ती अरावली की पहाड़ियों में स्थित सीकर जिले में मौजूद शक्तिपीठ मां शाकंभरी में नवरात्र में मेला लगता है यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। राजस्थान सहित आसपास के अन्य राज्यों एवं देश भर से मां शाकंभरी के भक्त माता रानी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। इसके साथ ही क्षेत्र में सैकड़ो सार्वजनिक स्थान पर दुर्गा पूजा महोत्सव कार्यक्रम भी होने लगे हैं। नवरात्रि के इस पर्व पर 9 दिन तक क्षेत्र में श्रद्धालु भक्ति भाव में लीन नजर आएंगे। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालुओं की माने तो शास्त्रों की मान्यता है कि नवरात्रि में जब देवी मां हाथी पर सवार होकर आती है तब ज्यादा बारिश होने के योग बनते हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार मा महालय के दिन जब पितृगण धरती से लौटते हैं। तब मां दुर्गा अपने परिवार सहित पृथ्वी पर आती है। इस दिन से ही नवरात्रि शुरू हो जाते हैं। माता हर बार अलग-अलग वाहनों से आती है इस बार शारदीय नवरात्रि पूरे 9 दिनों का होगा।

शाकंभरी देवी के प्रचलित पौराणिक मान्यताएं

महाभारत के वन पर्व के अनुसार शाकंभरी देवी ने शिवालिक पहाड़ियों में 100 वर्ष तक तप किया था। महीने के अंतराल में एक बार शाकाहारी भोजन का आहार करती थी। मां की कीर्ति सुनकर माता के दर्शन करने ऋषि मुनि आए थे तब देवी ने उनका स्वागत भी शाक से ही किया तभी से वह शाकंभरी के नाम से जानी जाती है। इसका अर्थ यह है कि देवी केवल शाकाहारी भोजन का भोग ही ग्रहण करती है। वृद्ध जनों की माने तो पार्वती जी ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया था। जीवित रहने के लिए केवल शाक सब्जियां ही खाई थी। इसलिए उनका नाम शाकंभरी रखा गया था। अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित शक्तिपीठ मां शाकंभरी सकराय धाम में ब्राह्मणी और रुद्राणी के दर्शन करने हजारों श्रद्धालु देश की कोने-कोने से रोज पहुंचते हैं।माता का मंदिर चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

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