Video Report : बिल्ली के भरोसे बैठी रही साढ़े चार साल बीजेपी – Part :1
सचिन पायलट और अशोक गहलोत के दंगल पर बनाई रखी नजर
पायलट और गहलोत की लड़ाई निकली नूरा कुश्ती, भाजपा की डूबती दिखाई दे रही है किश्ती
झुंझुनू, भारतीय जनता पार्टी के शिफर से लेकर शिखर तक के संघर्ष की कहानी लोकतंत्र में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी जा चुकी हैं, इसमें तो कोई दो राय नहीं है। इसके साथ ही विपक्ष के अंदर भाजपा को जुझारू पार्टी के रूप में जाना पहचाना जाता था। लेकिन राजस्थान की बात करें तो पिछले साढे 4 साल से बीजेपी राजस्थान में बिल्ली के भरोसे ही बैठी रही। जी हां, वह कहावत तो आपने सुनी होगी कि बिल्ली के भाग से छींका टूटना, इसी बिल्ली के भरोसे राजस्थान में बीजेपी बैठी रही। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेताओं ने इन साढ़े 4 साल में आम जनता से जुड़ कर प्रदेश की सरकार के खिलाफ ऐसे कई मौके आए जिन को लेकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सकता था लेकिन भाजपा की प्रदेश टीम सिर्फ सचिन पायलट की तरह ही साढ़े 4 साल निहारती रही। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही राजनीतिक लड़ाई में ही उन्होंने अवसर तलाशने की कोशिश की और इस पूरे दरमियान साढ़े 4 साल बीत गए और उनकी आंखें सिर्फ सचिन पायलट की ओर ही निहारती रही। लेकिन पिछले दिनों दिल्ली में जो नजारा देखने को मिला। कांग्रेस के नेताओं के बयान और विशेष रूप से सचिन पायलट का बयान जो सामने आया अशोक गहलोत को लेकर। उसे देखकर लगता है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच चल रही है लड़ाई सिर्फ नूरा कुश्ती थी जो कि भाजपा को महज भटकाने के लिए थी। भाजपा के प्रदेश नेता उसी प्रकार की इस नूरा कुश्ती को निहारते रहे कि जैसे कोई तीसरी पार्टी खड़ी भी देखती है कि इन दोनों की लड़ाई में मुझे फायदा उठाना है। यदि भाजपा इस सोच से परे जाकर धरातल पर उतरती और जमीनी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुद्दे बनाती तो शायद वर्तमान में जो स्थिति है वह सामने नहीं आती। जमीनी स्तर की बात करें तो साढ़े 4 साल बीत जाने के बाद भी प्रदेश की जनता में कोई विशेष नाराजगी सरकार के खिलाफ नजर नहीं आ रही है। उदाहरण के लिए बात करें तो हाल ही में झुंझुनू में किसानों को लेकर एक महासभा भारतीय जनता पार्टी द्वारा की गई थी
इसमें प्रदेश के बड़े दिग्गज नेता भी पधारे थे लेकिन उसके बावजूद भी दो ढाई हजार की भीड़ में यह महासभा इनकी सिमट कर रह गई। लिहाजा कहा जा सकता है कि भाजपा कम से कम झुंझुनू में तो आम जनता से अपने आप को जोड़ नहीं पाई। आगामी विधानसभा चुनाव में झुंझुनू जिले से जो भी भाजपा से यदि कोई विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचता है तो वह संगठन की करामात से न होकर उस व्यक्ति विशेष की करामात होगी। क्योंकि झुंझुनू भाजपा की कार्यशैली के चलते जो मूल भाजपा से वर्षो से जुड़े हुए कार्यकर्ता थे उन्होंने दूरी बना ली। एक कार्यकर्ता ने तो बताया कि जब मैं बचपन में कच्छा पहनता था तब से भाजपा का झंडा लेकर घूम रहा हूं मेरे पिता भी भाजपा के कार्यकर्ता हुआ करते थे लेकिन वरिष्ठ भाजपा नेताओं को जिस तरीके से भाजपा जिला कार्यकारिणी में दरकिनार किया है। उसके चलते नाराजगी काफी है। पिछले दिनों हमारे द्वारा समाचार प्रकाशित किए जाने के बाद ही कुछ भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की मंच पर कुर्सी नसीब हुई। बाकी पूरे 4 साल तो वह नेपथ्य में ही रहे। ऐसा नहीं है कि झुंझुनू जिला भाजपा कार्यकारिणी में अच्छे लोग नहीं हैं लेकिन सिर्फ वह मौन मूक ही मंच की शोभा बढ़ाते हैं। संगठन में ज्यादा करने के लिए उनके पास कुछ है नहीं। यानी कि संगठन मेंअधिकारों का विकेंद्रीकरण सिर्फ एक दो लोगों के पास ही है जिसके चलते ही जिले में भाजपा की बुरी स्थिति बनी हुई है। जिसके चलते भाजपा के किसी भी बड़े कार्यक्रम में सिर्फ कुछ कार्यकर्त्ता और पदाधिकारी ही नजर आते है।
हाल ही में किसानो को लेकर हुई भाजपा की सभा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा जिसमे जिलाध्यक्ष कुछ लोगो से उलझते नजर आ रहे है। इसमें यह दावा किया जा रहा है कार्यक्रम में भीड़ कम जुटी हुई थी और जो लोग भी थे वह कार्यक्रम को बीच में छोड़कर जा रहे थे जिसके चलते जिलाध्यक्ष उन लोगों के बाहर जाने का विरोध कर रहे थे। वहीं सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार इस कार्यक्रम के बाद प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी अच्छे खासे नाराज होकर गए हैं जिसके चलते जिला कार्यकारिणी पर भी गाज गिरने से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि भारतीय जनता पार्टी समय रहते नहीं चेतती है तो इसकी कीमत उनको आगामी विधानसभा चुनाव में चुकानी पड़ेगी।