स्वतंत्रता संग्राम की अग्रणी सेनानी
आलेख/15 जुलाई/जयंती विशेष लेखक- धर्मपाल गाँधी
दुर्गाबाई देशमुख ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर बहुत छोटी उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। वे मात्र 14 वर्ष की उम्र में जेल गईं और बाद में नमक सत्याग्रह सहित कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। उन्होंने तीन बार जेल की सजा काटी और महिलाओं के अधिकारों के लिए जीवन समर्पित कर दिया।
बाल विवाह के खिलाफ साहसी कदम
8 वर्ष की उम्र में उनका विवाह हुआ लेकिन 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने इस बंधन को तोड़ दिया और सार्वजनिक जीवन को चुना। यह कदम उनके दृढ़ नारीवादी विचारों का परिचायक था।
महिला शिक्षा की पुरोधा
दुर्गाबाई ने मात्र 14 वर्ष की उम्र में हिंदी स्कूल की स्थापना की और 500 महिलाओं को साक्षर बनाया। बाद में आंध्र महिला सभा की स्थापना कर दक्षिण भारत में महिला शिक्षा का नया युग शुरू किया।
संविधान सभा की सक्रिय सदस्य
वे संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों में शामिल थीं और सभापति पैनल में नामित एकमात्र महिला थीं। उन्होंने 750 से अधिक संशोधन प्रस्ताव रखे और वंचित वर्गों के अधिकारों पर पुरज़ोर आवाज़ उठाई।
योजना आयोग से पद्म विभूषण तक
स्वतंत्र भारत में उन्होंने योजना आयोग, फैमिली कोर्ट, नेशनल वुमन एजुकेशन काउंसिल, काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट, दृष्टिबाधितों की संस्था, और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसी संस्थाओं की नींव रखी। उन्हें पद्म विभूषण, नेहरू साक्षरता पुरस्कार और यूनेस्को अवॉर्ड जैसे कई सम्मान मिले।
एक गांधीवादी जीवनशैली की मिसाल
दुर्गाबाई ने अपने पूरे जीवन में सादगी, सेवा और सत्य को अपनाया। उनका विवाह वित्त मंत्री सी.डी. देशमुख से हुआ लेकिन उन्होंने योजना आयोग से इस्तीफा दे दिया ताकि नैतिकता बनी रहे।
जयंती पर नमन
उनकी जयंती पर उन्हें याद करना नारी सशक्तिकरण, शिक्षा, संविधान और सामाजिक न्याय के मूल्यों को पुनः स्थापित करने जैसा है। आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार दुर्गाबाई देशमुख को शत-शत नमन करता है।