झुंझुनूं। सूचना का अधिकार (RTI) आमजन को शासन-प्रशासन से पारदर्शिता और जवाबदेही दिलाने का सशक्त माध्यम माना जाता है। लेकिन झुंझुनूं जिले में RTI व्यवस्था की हकीकत कुछ और ही कहानी कहती है। यहाँ कई मामलों में गोपनीयता भंग हुई, पीड़ित की जानकारी लीक कर दी गई, और उनके एक मामले में लगातार पाँच कलेक्टर बदलने के बावजूद भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
इन मामलों को लगातार उजागर करने में स्थानीय पत्रकार नीरज सैनी की रिपोर्टिंग ने अहम भूमिका निभाई है। उनकी पड़ताल ने दिखाया कि कैसे RTI व्यवस्था सिर्फ कागज़ी कार्रवाई तक सीमित रह गई है और जनहित के मुद्दे अक्सर दबा दिए जाते हैं।
गोपनीयता उल्लंघन: RTI का सबसे बड़ा खतरा
RTI का मूल सिद्धांत है — “सूचना का अधिकार जनता का अधिकार”। लेकिन झुंझुनूं में कई बार RTI दाखिल करने वाले आवेदकों की निजी जानकारी लीक कर दी गई।
कुछ मामलों में आवेदक का नाम और पता संबंधित विभागों से बाहर जाकर तीसरे पक्ष तक पहुँच गया।
इससे आवेदक और उनके परिवार पर सामाजिक व मानसिक दबाव पड़ा।
पीड़ितों ने कई बार शिकायत की, मगर प्रशासनिक स्तर पर फाइलें आगे बढ़ने से पहले ही थम गईं।
पाँच कलेक्टर बदले, लेकिन फाइलें जस की तस
नीरज सैनी ने अपनी रिपोर्टिंग में उजागर किया कि बीते पाँच वर्षों में झुंझुनूं जिले में उनके एक मामले में पाँच बार कलेक्टर बदले गए।
हर बार वादा किया गया कि RTI गोपनीयता उल्लंघन और लंबित मामलों पर कड़ी कार्रवाई होगी।
लेकिन न तो किसी जिम्मेदार अधिकारी पर दंडात्मक कार्रवाई हुई, न ही पीड़ित को राहत मिली।
यह स्थिति बताती है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी किस हद तक जनता के अधिकारों को कमजोर कर रही है।
पत्रकारिता बनाम सत्ता
RTI मामलों पर पड़ताल करते हुए नीरज सैनी ने कई बार प्रतिरोध भी झेला।
कुछ अधिकारियों और संबंधित लोगों ने रिपोर्टिंग को दबाने की कोशिश की।
लेकिन लगातार फॉलोअप और दस्तावेज़ी प्रमाणों के आधार पर उन्होंने यह दिखाया कि RTI व्यवस्था झुंझुनूं में किस तरह “जनसरोकार” से भटक कर “औपचारिकता” बन गई है।
पीड़ित की हकीकत
कई लोगो ने RTI के जरिए अपने हक के लिए जानकारी माँगी थी।
उन्हें यह भरोसा था कि पारदर्शिता से समाधान मिलेगा।
मगर सालों बाद भी न तो जानकारी पूरी मिली और न ही न्याय।
कुछ मामलों में तो पीड़ितों को समझौता करने का दबाव भी बनाया गया।
आगे की राह क्या?
पत्रकार नीरज सैनी का कहना है कि यदि झुंझुनूं में RTI व्यवस्था को मजबूत करना है तो तीन कदम तुरंत उठाने होंगे:
गोपनीयता सुरक्षा – आवेदकों की निजी जानकारी लीक होने से रोकी जाए।
जवाबदेही तय – लापरवाह अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई हो।
पारदर्शिता बढ़े – हर लंबित मामले की सार्वजनिक समीक्षा की जाए।
निष्कर्ष
झुंझुनूं में RTI की स्थिति लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल उठाती है। लेकिन नीरज सैनी जैसे पत्रकारों की जमीनी रिपोर्टिंग यह भरोसा दिलाती है कि अगर मीडिया और जनता मिलकर आवाज उठाएँ, तो प्रशासन को जवाबदेह बनाना संभव है।