सर्व पितृ अमावस्या का महत्व
सर्व पितृ अमावस्या को पितरों की विदाई का दिन कहा जाता है।
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर यह विशेष पर्व मनाया जाता है।
यह दिन उन पूर्वजों के लिए खास है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है या जिनका श्राद्ध विधिवत नहीं हो पाया।
इसलिए इसे सभी पितरों की अमावस्या कहा जाता है।
तिथि और ग्रहण का संयोग
इस वर्ष यह दिन और भी खास है क्योंकि 21 सितंबर 2025 को सर्व पितृ अमावस्या के साथ सूर्य ग्रहण भी लगेगा।
- अमावस्या तिथि: 21 सितंबर 2025 सुबह 12:16 बजे से शुरू होकर 22 सितंबर सुबह 1:23 बजे तक।
- उदया तिथि के अनुसार, 21 सितंबर को ही सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाएगी।
- सूर्य ग्रहण: रात 11 बजे से शुरू होकर 3:23 बजे तक रहेगा।
इसका अर्थ है कि दिनभर पितरों का श्राद्ध और तर्पण विधिवत किया जा सकता है।
तर्पण का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, तर्पण दोपहर में करना शुभ होता है।
- तर्पण का समय: दोपहर 01:27 बजे से 03:53 बजे तक।
इस दौरान श्रद्धा और विधि से तर्पण करने पर पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
पूजा-विधि और नियम
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और दिनभर का संकल्प लें।
- सूर्य देव को अर्घ्य देकर देवी-देवताओं की पूजा करें।
- दोपहर 12 बजे दक्षिण दिशा की ओर मुख कर तर्पण करें।
- तांबे के लोटे में जौ, तिल, चावल, गाय का दूध, गंगाजल, सफेद फूल डालकर रखें।
- कुशा हाथ में लेकर अंगूठे से जल अर्पित करें, कम से कम 11 बार।
- गाय के गोबर के कंडे पर गुड़, घी, खीर-पूरी अर्पित करें।
- भोजन का अंश गाय, कुत्ते, कौए, चींटी और देवताओं के लिए अलग निकालें।
- अंत में दान-दक्षिणा दें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा से किया गया तर्पण और पिंडदान पितरों को मोक्ष दिलाता है।
पितरों की संतुष्टि से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।