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दक्षयानी वेलायुधन: संविधान सभा की पहली और एकमात्र दलित महिला

Portrait of Dakshayani Velayudhan, India's first Dalit woman legislator

लेखक: धर्मपाल गांधी
जयंती विशेष | 4 जुलाई

भारत के संविधान निर्माण में जिन महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई, उनमें दक्षयानी वेलायुधन एक ऐतिहासिक नाम हैं। वे संविधान सभा की पहली और एकमात्र दलित महिला सदस्य थीं। उनके जीवन का हर अध्याय जातीय भेदभाव, सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण के विरुद्ध संघर्ष की मिसाल है।

कठिन सामाजिक पृष्ठभूमि से उभार

दक्षयानी का जन्म 4 जुलाई 1912 को केरल के पुलाया समुदाय में हुआ, जिसे उस समय अछूत माना जाता था। उस दौर में दलित महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर कपड़े पहनने और स्कूल जाने तक की अनुमति नहीं थी। दक्षयानी ने इन परंपराओं को तोड़ते हुए न सिर्फ कमर के ऊपर वस्त्र पहनने वाली पहली महिला बनीं, बल्कि विज्ञान विषय में स्नातक करने वाली पहली दलित महिला भी रहीं।

संविधान सभा में ऐतिहासिक भूमिका

1946 में, वे संविधान सभा के लिए चुनी गईं। उन्होंने जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता, सामाजिक असमानता के खिलाफ दृढ़ता से आवाज उठाई। उनका मानना था कि “वास्तविक समानता कानूनों से नहीं, बल्कि जीवन के अभ्यास से आती है।”

उन्होंने आरक्षण या अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग नहीं की, बल्कि एक समावेशी भारत के पक्ष में बात की। उनके अनुसार, “हरिजनों को सम्मान, अवसर और आत्मनिर्भरता चाहिए, न कि सिर्फ दया।”

गांधी व अंबेडकर दोनों की अनुयायी

दक्षयानी ने गांधीजी के वर्धा आश्रम में रमन वेलायुधन से विवाह किया। वे के.आर. नारायणन (पूर्व राष्ट्रपति) के चाचा थे। उन्होंने महिला और दलित सशक्तिकरण पर कई संगठनों में नेतृत्व किया और महिला जागृति परिषद की स्थापना की।

स्थायी विरासत

केरल सरकार ने 2019 में उनके सम्मान में “दक्षयानी वेलायुधन पुरस्कार” शुरू किया, जो महिलाओं के सशक्तिकरण में योगदान देने वाली महिलाओं को दिया जाता है।

निष्कर्ष

दक्षयानी वेलायुधन का जीवन इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ इच्छाशक्ति, शिक्षा और साहस से कोई भी व्यक्ति सामाजिक बेड़ियों को तोड़ सकता है। वह भारत की लोकतांत्रिक आत्मा की प्रतीक थीं।