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भारत की संविधान निर्माता और महिला शिक्षा की अगुवा थीं हंसा मेहता

Hansa Mehta presenting Indian national flag in Constituent Assembly

भारत की पहली महिला कुलपति हंसा मेहता को जयंती पर नमन

आलेख: जयंती विशेष लेखक- धर्मपाल गाँधी

हंसा मेहता – एक ऐसा नाम जो भारतीय महिलाओं की आज़ादी, समानता और अधिकारों की लड़ाई का पर्याय बन गया। 3 जुलाई 1897 को सूरत (गुजरात) में जन्मी हंसा जी ने अपने जीवन में महिला शिक्षा, स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण में अतुलनीय योगदान दिया।

संविधान सभा की सदस्य रहीं हंसा मेहता ने 14 अगस्त 1947 की रात संविधान सभा में तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सौंपा था। यही ध्वज बाद में पंडित नेहरू ने लाल किले पर फहराया।

वे भारत की पहली महिला कुलपति बनीं और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग में एलिनॉर रूज़वेल्ट के साथ सदस्य रही। उन्होंने वहां “All men are born free…” को बदलकर “All humans are born free…” करवाया – जो लैंगिक समानता की ऐतिहासिक जीत थी।

हंसा मेहता महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ीं। देश सेविका संघ की सदस्य बनकर सत्याग्रह का नेतृत्व किया और जेल भी गईं।

AIWC (अखिल भारतीय महिला सम्मेलन) की अध्यक्ष बनकर उन्होंने महिला अधिकारों का चार्टर तैयार किया, जिसमें समान वेतन, संपत्ति अधिकार और कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दे शामिल थे।

उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांति लाई – प्रथम एड, तकनीकी शिक्षा और स्कूल प्रमाण पत्र प्रणाली (SSCEB) की स्थापना की।

उनके 15 से अधिक प्रकाशित ग्रंथ और पद्म भूषण (1959) जैसी मान्यताएं आज भी उनके विशाल योगदान की गवाही देती हैं।


समापन शब्द:

हंसा मेहता ने कहा था – “नई दुनिया बनाने के लिए, सोच का नया तरीका चाहिए।” आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, उनका यह सपना साकार होता दिखता है।