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गांधीजी की नई तालीम को जीवन में उतारने वाली शिक्षाविद् आशा देवी आर्यनायकम

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पुण्यतिथि विशेष-लेखक- धर्मपाल गाँधी

गांधी दर्शन से प्रेरित जीवन
आशा देवी आर्यनायकम का जन्म 1 जनवरी 1901 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने अपना जीवन शिक्षा, सेवा और समानता के लिए समर्पित किया।

रवींद्रनाथ टैगोर और शांतिनिकेतन से जुड़ाव
उनका परिवार रवींद्रनाथ टैगोर के निकट था। शांतिनिकेतन में उन्हें लड़कियों की देखभाल की ज़िम्मेदारी मिली। यहीं उनकी मुलाकात सीलोन निवासी ई.आर.डब्ल्यू. आर्यनायकम से हुई, जिनसे बाद में उन्होंने विवाह किया।

गांधीजी के साथ नई तालीम में योगदान
शांतिनिकेतन छोड़कर दंपती वर्धा पहुँचे और महात्मा गांधी के साथ नई तालीम आंदोलन में जुट गए। आशा देवी हिंदुस्तानी तालीमी संघ की रीढ़ बनीं। उन्होंने बच्चों को श्रम, स्वावलंबन और ज्ञान आधारित शिक्षा दी।

“शिक्षा के बिना व्यक्ति स्वतंत्र नहीं हो सकता” — आशा देवी

सेवाग्राम और व्यक्तिगत त्रासदी
अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु के बाद भी उन्होंने सेवाग्राम में बेसिक स्कूल के बच्चों के बीच खुद को समर्पित कर दिया।

फरीदाबाद का पुनर्वास और शरणार्थियों की सेवा
देश विभाजन के बाद फरीदाबाद में 50 हजार शरणार्थियों को बसाने में उन्होंने पंडित नेहरू के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने खुद फावड़ा चलाकर एनआईटी फरीदाबाद की नींव रखी।

भूदान आंदोलन और पद्मश्री सम्मान
विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी आशा देवी सक्रिय रहीं। 1954 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया — यह सम्मान पाने वाली प्रथम महिला थीं।

अंतिम दिन और विरासत
पति के निधन के बाद वह सेवाग्राम में ही रहीं। 30 जून 1972 को फेफड़े के कैंसर से उनका निधन हुआ।