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जोर से हँसे भगत सिंह – फटी आँखों देखते रह गये जेल अधिकारी और जवान

जेल में मस्ती से मुस्कराए भगत सिंह, आंखें भर आईं परिवार की
Bhagat Singh smiling in jail, surprising guards and officers

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जुड़ा प्रेरणादायक स्मरण।

जेल में अंतिम मुलाक़ात के दौरान बोले – “मेरी माँ मत आना लाश लेने।”

शहीद-ए-आजम भगत सिंह जन्म दिवस पर विशेष लेख

शहीद-ए-आजम भगत सिंह, युवा शक्ति के आईकॉन है

लेखक:- मनोज मील, अध्यक्ष उपभोक्ता आयोग झुंझुनूं

झुंझुनू, शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नाम स्मरण होते ही जुनून, जोश के साथ-साथ युवा शक्ति की भुजाएं फड़कने लगती है। आज भी देश-दुनिया में क्रांति की परिचर्चा का अहम केन्द्र बिन्दु शहीद-ए-आजम भगत सिंह के विचार बनते है और शोषण मुक्त समाज की परिकल्पना को साकार करने का संदेश देते है।
युवा शक्ति का आईकॉन शहीद-ए-आजम भगत सिंह ही है। जिनके विचार हरेक युवा को झकझोरते है और मंज़िल पाने का हौंसला देते है। हमारे प्यारे मुल्क हिन्दुस्तान का हरेक नौजवान शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जवानी और विचारों में अपनी तस्वीर देखता है। इसके साथ-साथ शहीद-ए-आजम भगत सिंह जितना हमारे देश के नौजवानों में लोकप्रिय व नायक है, उतने ही पसन्दीदा अन्य मुल्क के युवाओं के लिए भी है। इस प्रकार से युवा शक्ति को क्रांति की राह दिखाने में अग्रणी कोई है, तो शहीद-ए-आजम भगत सिंह ही है और उनके क्रांतिकारी विचार है।
एक महत्वपूर्ण प्रसंग शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जीवन का हमें राष्ट्रभक्ति से सराबोर कर देता है। जिसका उल्लेख आज के हालात में इसलिए महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति को समझना होगा कि हमारा प्यारा मुल्क गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर आजाद तब हो पाया है, जब असंख्य नाम-अनाम स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत माता की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। हमारे मुल्क को विश्व का सिरमौर बनाने के साथ-साथ मानवतावादी सामाजिक ताना-बाना मजबूत करने का संकल्प लेने का आज सबसे बेहतरीन दिवस है, क्योंकि शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्म दिवस से ज्यादा खुशनसीब कोई दिवस नौजवानों के लिए नहीं हो सकता है और शहीद-ए-आजम का अर्थ होता है, शहीदों का शिरोमणि, राजा। ये ताज सिर्फ भगत सिंह के नाम से ही जुड़ा हुआ है। जो युवा शक्ति का गुमान व स्वाभिमान है।

रोचक किस्सा, जो हरेक युवा को रोमांचित करता है।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु, सुखदेव जी को फांसी की सजा का ऐलान होने के बाद परिवार के सदस्य शहीद-ए-आजम भगत सिंह से लाहौर जेल में मुलाकात करने गये।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह को बेरक से बाहर लाया गया। वहां बहुत सारे अधिकारी और पुलिस के जवान भी मौजूद थे। हमेशा की तरह शहीद-ए-आजम भगत सिंह अपने घरवालों से मिले।
उनके चेहरे पर परेशानी के लेशमात्र भी भाव नहीं थे। मस्तमौला इंसान की तरह बेफिक्र होकर मुलाकात की। उनको यकीन हो गया था कि घरवालों से उनकी जिन्दगी की यह आखिरी मुलाकात हो रही है।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह अपनी माँ से बोले कि बेबेजी, दादाजी अब ज्यादा दिन तक नहीं जिएंगे। आप बंगा जाकर उनके पास ही रहना। सबको सांत्वना दी, धैर्य बंधाया और मुल्क की आज़ादी की बातें करते हुए अंत में माँ को पास बुलाकर हँसते-हँसते मस्ती भरी बुलन्द आवाज़ में बोले, मेरी लाश लेने आप मत आना। कुलबीर को भेज देना। कहीं आप रो पड़ी, तो लोग कहेंगे भगत सिंह की माँ रो रही है।

इतना कहने के बाद शहीद-ए-आजम भगत सिंह इतने जोर से हँसे की जेल के अधिकारी और पुलिस के जवान शहीद-ए-आजम भगत सिंह को फटी आँखों से देखते रह गये। इतना निर्भीक व निडर व्यक्तित्व शहीद-ए-आजम भगत सिंह के नाम और विचारों में ही गुंजायमान हुआ है।

निडरता की मिसाल – आज के युवाओं के लिए प्रेरणा
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के प्रिय नारे इंकलाब जिंदाबाद के साथ उनको युवा शक्ति का सैल्यूट।

लेखक का संदेश – भगत सिंह से सीखें स्वाभिमान

लेख के लेखक मनोज मील, अध्यक्ष, उपभोक्ता आयोग झुंझुनूं, लिखते हैं:

“शहीद-ए-आजम भगत सिंह न केवल भारत के, बल्कि विश्व के नौजवानों के प्रेरणास्रोत हैं। उनका जन्मदिवस सिर्फ श्रद्धांजलि का दिन नहीं, बल्कि युवा शक्ति के आत्मनिरीक्षण और राष्ट्र निर्माण के संकल्प का दिन है।”