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Jhunjhunu: झुंझुनू को कथित ‘जनता के अफसर’ की नहीं ‘काम के अफसर’ की जरूरत

Public demands real work and accountability in Jhunjhunu administration

Overview:

झुंझुनूं जिला एक दौर में अग्रणी था, लेकिन अब विकास की दौड़ में पिछड़ता जा रहा है। जनता को कागजी नहीं, धरातल पर परिणाम देने वाले प्रशासन की दरकार है।

कभी प्रदेश में अग्रणी रहने वाला जिला आज अपने पड़ौसी जिलों से पिछड़ रहा है……. आखिर क्या है इसका कारण ?

कभी अग्रणी रहा झुंझुनूं जिला अब पिछड़ रहा है। जनता को अब ‘जनता के अफसर’ नहीं बल्कि ‘धरातल पर काम करने वाले’ कलेक्टर की जरूरत है।

झुंझुनूं कभी शेखावाटी की शान कहलाने वाला झुंझुनूं जिला अब अपने ही पड़ोसी जिलों से पीछे होता जा रहा है। यह गिरावट केवल राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी नहीं, बल्कि प्रशासनिक अकर्मण्यता का भी परिणाम है।

झुंझुनू में पिछले लंबे समय से जिला प्रशासन के अधीनस्थ कर्मचारी बेलगाम हो चुके हैं और कई बार इसके मामले भी मिडिया में सामने आए हैं और समाचारों की सुर्खियां भी बने हैं। सूत्रों के अनुसार वही पूर्व में झुंझुनू जिला कलेक्टर के पास जनसुनवाई में कई ऐसे मामले भी सामने आए जो बहुत ही निचले स्तर के कर्मचारियों द्वारा ही निस्तारित किये जा सकते थे लेकिन झुंझुनू जिला प्रशासन ने आंकड़ों में उनका निस्तारण दिखाकर भले ही स्वतः ही अपनी पीठ थपथपा ली हो लेकिन झुंझुनू जिला कलेक्टर को ज्ञापन देने के बाद अमूमन यह देखा गया कि कई ऐसे मामले थे जिनमें परिवादियों ने बाहर आकर मीडिया से बातचीत में साफ-साफ कहा था कि हम झुंझुनू जिला कलेक्टर के जवाब से संतुष्ट नहीं है

इस कड़ी को हम आगे बढ़े उससे पहले कुछ चर्चा कर लें कि पूर्व में राजा के दरबार में राग दरबारी हुआ करते थे और वह राजा की अच्छी-अच्छी बातों को ही गुणगान किया करते थे। भले ही प्रजा की तत्कालीन समय में स्थिति कैसे भी चल रही हो। ऐसी ही वर्तमान समय में सरकार और प्रशासन जहां राजा की भूमिका में होते है। वहीं स्वतंत्र मीडिया और सरकारी महाकों का ‘आंख नाक कान’ एक तरह से यही भूमिका निभाते हैं, लेकिन मीडिया स्वतंत्रता पूर्वक अपना काम करता है तो उसे हम राग दरबारी नहीं कहते लेकिन कई बार सरकार की योजनाओं और प्रशासन के किये गए कार्यो के क्रियान्वयन को छोड़कर जनसंपर्क विभाग किसी भी अधिकारी का राग दरबारी बनकर महज कागजी गुणगान करने लग जाए तो यह स्थिति जनता के लिहाज से तो ठीक है ही नहीं बल्कि उस अधिकारी के हित में भी नहीं है।

इसका सबसे बड़ा सबूत झुंझुनू जिला साबित हो सकता है। जब प्रदेश के मुख्य सचिव सुधांशु पंत बैठक में तत्कालीन झुंझुनू जिला कलेक्टर रामावतार मीना को लताड़ लगा चुके हैं कि आपकी सारी कार्यशैली की खबर ऊपर तक है, आप रिटायरमेंट के करीब हो नुकसान हो जाएगा। सुधार कर लो। यह कहकर उन्होंने बाकायदा मिली जानकारी के अनुसार झुंझुनू के भूमि विवादों और हथियारों के लाइसेंस के संबंध में संभागीय आयुक्त के अंतर्गत एक जाँच बैठा दी थी। अब सवाल उठता है कि राज्य के मुख्य सचिव झुंझुनू के तत्कालीन जिला प्रशासन के आल्हा अधिकारी की कार्यशैली से भली भांति अवगत थे तो स्थानीय स्तर पर प्रशासन का आंख नाक कान वाला विभाग जानबूझकर राग दरबारी क्यों बना ? इसके पीछे भी ठोस कारण है। राग दरबारी लोग अपनी ही कमियों को छुपाने के लिए यह राग दरबार में लगातार अलापते हैं जिसके चलते प्रशासक का ध्यान उनके क्रियाकलापों पर नहीं जाए और ऐसा ही पिछले कुछ दिनों में हुआ।

अब उम्मीद डॉक्टर अरुण गर्ग से

अब झुंझुनू जिले की कमान डॉक्टर अरुण गर्ग ने जिला कलेक्टर के रूप में संभाली है जिसके चलते उनके लंबे प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए झुंझुनू की जनता में एक बार फिर से आश जग उठी है कि वह कागजी और आंकड़ों से परे धरातल पर जाकर जनता की समस्याओं का निराकरण करेंगे वही झूठे राग दरबारी पर भी नकेल कसने का काम करेंगे। डॉ गर्ग अपने कार्यकाल में झुंझुनू को फिर से गौरव में चार चाँद लगाएंगे।

क्या बदलाव लाएंगे डॉ. गर्ग?

  • धरातल पर योजनाओं का क्रियान्वयन
  • प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता
  • राग दरबारी संस्कृति पर रोक

जनता की सीधी मांग

अब जनता को ऐसे कलेक्टर की दरकार है जो:
रिपोर्टिंग के बजाय रिजल्ट दे
आंकड़ों से ज़्यादा असर दिखाए
फोटो नहीं, फैसले करे


निष्कर्ष:

झुंझुनूं जैसे ऐतिहासिक और प्रतिभाशाली जिले को फिर से पटरी पर लाने के लिए
‘जनता के अफसर’ नहीं बल्कि ‘काम के अफसर’ की ज़रूरत है।
अब समय है जब जनता की आवाज़ वाकई में प्रशासन की प्राथमिकता बने।

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