Overview:
राजस्थान की शेखावाटी क्षेत्र की ऐतिहासिक काटली नदी का इतिहास, भूगोल और वर्तमान प्रशासनिक प्रयासों का विशेष विवरण। नदी के पुनर्जीवन के लिए जिला प्रशासन ने बड़ा अभियान शुरू किया है, जो 28 जून से 4 जुलाई तक चलेगा।
शेखावाटी की ऐतिहासिक धारा को दे सकती है नया जीवन, जानिए काटली की संक्षिप्त कथा
काटली नदी का उद्गम और ऐतिहासिक महत्व
झुंझुनूं , [ नीरज सैनी ] राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र की सबसे पुरानी और पवित्र नदी मानी जाने वाली काटली नदी का उद्गम सीकर जिले के गणेश्वर की पहाड़ियों में होता है। यह नदी अरावली की तलहटी से निकलकर शेखावाटी क्षेत्र के अनेक गांवों से गुजरती है और झुंझुनूं के मंड्रेला में जाकर समाप्त हो जाती है।
इस नदी की मिट्टी को काटने की विशेष प्रवृत्ति के कारण इसका नाम ‘काटली’ पड़ा। यह नदी कभी गांवों के बीच से तो कभी सीमा निर्धारण की भूमिका निभाते हुए बहती है, जिससे इसकी सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान और भी गहरी हो जाती है।
नदी का मार्ग और प्रभाव क्षेत्र
काटली नदी लगभग 100 किलोमीटर लंबी है और यह मुख्यतः निम्न गांवों से होकर गुजरती है:
सीकर जिले में: गणेश्वर, खंडेला, गुहाला, पंचलंगी, बाघोली, पोंख, ककराना, दीपपुरा, मैनपुरा, नोरंगपुरा
झुंझुनूं जिले में: गढ़ला कला, खटकड़, केड, बतीवर, बासमाना, शिवनाथपुरा, नाटास, हंसलसर, गौला, भडूंदा, वृंदावन,इस्लामपुर, माखर, चनाना, सुल्ताना, बगड़
चूरू सीमा तक: सुलखनिया और मंड्रेला तक नदी प्रवाहित होती है।
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
- यह राजस्थान की अंतःप्रवाही नदी है, जो किसी समुद्र में नहीं गिरती।
- खंडेला पहाड़ी (रेवासा, दांतारामगढ़ तहसील) इसका प्रमुख उद्गम बिंदु है।
- इसका प्रवाह क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है।
- यह नदी झुंझुनूं को दो भागों में बांटती है।
- गणेश्वर सभ्यता और सुनारी सभ्यता इसी नदी के किनारे विकसित हुई थीं।
- राज्य का पहला मोर अभयारण्य भी इस नदी के पास प्रस्तावित है।
हालात और समस्याएं
पिछले कुछ वर्षों में बारिश की कमी, अवैध बजरी खनन, और अतिक्रमण के कारण काटली नदी अपने पूर्ण बहाव तक नहीं पहुंच पा रही है। नदी में कई जगह गहरे खड्डे बन चुके हैं जिससे जल का प्रवाह रुक जाता है।
हालांकि वर्ष 2018 के बाद, कुछ वर्षों में खंडेला और गणेश्वर क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुई है, जिससे नदी में फिर से पानी की आवक देखी गई है।
भूजल स्तर में आएगा सुधार
खंडेला, उदयपुरवाटी और चिड़ावा जैसे इलाकों में हर साल पेयजल संकट गहराता जा रहा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि काटली नदी में बहाव बना रहा तो भूजल स्तर में सुधार होगा और पेयजल किल्लत दूर होगी।
झुंझुनूं प्रशासन का पुनर्जीवन अभियान
झुंझुनूं के पूर्व जिला कलेक्टर रामावतार मीणा ने काटली नदी के पुनर्जीवन के लिए बड़ा कदम उठाया है। उनके निर्देशों में शामिल हैं:
- 28 जून से 4 जुलाई तक विशेष अभियान।
- खेतड़ी, उदयपुरवाटी, चिड़ावा, मंड्रेला, गुढागौड़जी और पिलानी में नदी बहाव क्षेत्र की पहचान।
- अतिक्रमण हटाने के लिए पुलिस का सहयोग।
- 5 जुलाई तक NGT को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश।
जनसहयोग से होगी नदी की रक्षा
प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों और आमजन की भागीदारी के बिना यह कार्य संभव नहीं है। अब कई संगठन भी काटली नदी के संरक्षण की मांग तेज़ी से उठा रहे हैं।
निष्कर्ष
काटली नदी केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि शेखावाटी की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पारिस्थितिक जीवनरेखा है। प्रशासन की पहल, जनसहयोग और संवेदनशील योजनाओं से यह संभव है कि काटली फिर से पूरे वेग से बहने लगे और शेखावाटी को फिर से जलसमृद्ध बनाए।