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भारत की आजादी में विदेशी महिला की भूमिका: नेली सेनगुप्त की पुण्यतिथि विशेष

Portrait of Nellie Sengupta, Indian freedom fighter and former Congress President, who dedicated her life to India’s independence despite being born in England.

पुण्यतिथि विशेष/23 अक्टूबर – लेखक – धर्मपाल गाँधी

नेली सेनगुप्त: जिन्होंने विदेशी होकर भी भारत की आजादी में दी अपनी आहुति

भारत की आज़ादी के संघर्ष की कहानी उन अनगिनत वीरों से भरी पड़ी है जिन्होंने अपने प्राण राष्ट्र के लिए न्यौछावर कर दिए।
लेकिन उनमें से कुछ ऐसे महान लोग भी थे जिन्होंने अपने देश की सीमाओं को लांघकर दूसरे देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया
ऐसी ही महान और साहसी महिला थीं — नेली सेनगुप्त, जिनका जन्म इंग्लैंड में हुआ, पर जीवन भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित रहा।


इंग्लैंड की धरती से भारत की मिट्टी तक – नेली का सफर

12 जनवरी 1886 को कैंब्रिज (इंग्लैंड) में जन्मीं नेली के पिता फ्रेडरिक विलियम ग्रे और माता ऐडिथ हेनेरिएटा ग्रे थे।
पढ़ाई के दौरान उनका परिचय बंगाल निवासी यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त से हुआ — जो इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई कर रहे थे।
1909 में उन्होंने अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद यतीन्द्र से विवाह किया और भारत आ गईं।
भारत आकर उन्होंने भारतीय परंपराओं और संस्कृति को आत्मसात किया और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।


असहयोग आंदोलन से राजनीतिक जीवन की शुरुआत

महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू से प्रेरित होकर नेली सेनगुप्त ने अपने पति के साथ 1920 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
जब उनके पति यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया, तो नेली ने स्वयं मोर्चा संभाला
उन्होंने खादी बेचने पर लगे प्रतिबंध को तोड़ा, जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा।
नेली सेनगुप्त का यह कदम उस समय की महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गया।


कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाली तीसरी महिला

1933 में जब कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय को गिरफ्तार कर लिया गया,
तो नेली सेनगुप्त को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया।
वह कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाली तीसरी महिला और दूसरी यूरोपीय मूल की महिला थीं।
उनसे पहले यह पद एनी बेसेंट (1917) और सरोजिनी नायडू (1925) ने संभाला था।


पति की जेल में मृत्यु, लेकिन संघर्ष जारी रहा

1933 में रांची जेल में उनके पति यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का निधन हुआ।
यह नेली के जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कहा —

“मैं केवल पत्नी नहीं, इस देश की बेटी बन चुकी हूँ। मेरा कर्तव्य अधूरा नहीं रहेगा।”

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका और सशक्त की और देश की आज़ादी तक संघर्षरत रहीं।


राजनीति और समाज सेवा में सक्रिय भूमिका

नेली सेनगुप्त 1940 और 1946 में बंगाल विधानसभा की निर्वाचित सदस्य रहीं।
स्वतंत्रता के बाद उन्होंने पंडित नेहरू के आग्रह पर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में रहकर
हिंदू अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा का दायित्व संभाला।
1954 में वे पूर्वी पाकिस्तान विधानसभा की निर्विरोध सदस्य चुनी गईं।


सम्मान और विरासत

भारत सरकार ने 1973 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
उनके संघर्ष और समर्पण की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था —

“इंग्लैंड में जन्म लेने के बावजूद, उनकी निष्ठा, सेवा और साहस ने उन्हें भारतीय समाज का सच्चा प्रतिनिधि बना दिया।”

23 अक्टूबर 1973 को कलकत्ता में उनका निधन हुआ।
उनका अंतिम संस्कार यहीं किया गया, और वे सदा के लिए भारत की मिट्टी में समा गईं।


नेली सेनगुप्त: त्याग, प्रेम और मानवता की प्रतीक

नेली सेनगुप्त एक विदेशी होते हुए भी सच्ची भारतीय बन गईं।
उन्होंने साबित किया कि राष्ट्रभक्ति किसी जन्मभूमि की सीमा नहीं जानती
त्याग, प्रेम, बलिदान और नारी शक्ति का जो अद्भुत संगम नेली में था,
वह उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अमिट शख्सियत बना देता है।


आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार का नमन

स्वतंत्रता संग्राम की महान वीरांगना नेली सेनगुप्त को उनकी पुण्यतिथि पर शत्-शत् नमन।
उनकी कहानी आने वाली पीढ़ियों को सिखाती है कि —

“देशप्रेम सीमाओं से नहीं, समर्पण से परिभाषित होता है।”