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Video News – हजारों वर्ष पूर्व रावण ने यहां की थी 108 शिवालयों में तपस्या : एक्सक्लूसिव ऑन शेखावाटी लाइव

रावण कुंड में महाभारत युद्ध के बाद पांडव आए थे स्नान करने

अरावली की दुर्गम पहाड़ियों में स्थित शिवालय में दर्शन करने पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु

शाकंभरी सकराय धाम की पहाड़ियों में है प्राचीन शिवालय

उदयपुरवाटी, [कैलाश बबेरवाल ] झुंझुनू जिले से लगभग 65 किलोमीटर दक्षिण दिशा में एवं सीकर जिले के पूर्व दिशा में 55 किलोमीटर दूर उदयपुरवाटी के सरजू सागर कोट बांध के पास झुंझुनू-सीकर सीमा पर स्थित शाकंभरी सकराय धाम से महज एक किलोमीटर दुर अरावली की दुर्गम पहाड़ियों में स्थित श्री श्री 1008 श्री बाबा शिवनाथ जी महाराज ने काफी वर्षों तक तपस्या करने के बाद इसी स्थान पर जीवित समाधि ली थी। मंदिर पुजारी एवं मूलचंद सैनी के अनुसार शिवनाथ जी महाराज कश्मीर नरेश का पुत्र बताया जा रहा है। जो प्राचीन समय में हजारों वर्ष पहले यहां अरावली की दुर्गम पहाड़ियों में आकर तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है कि शाकंभरी मैया साक्षात शिवनाथ जी महाराज को दर्शन देती थी। शिवनाथ जी महाराज शिव भगवान और मां शाकंभरी की साधना करते थे। इसी स्थान पर साधना करते-करते शिवनाथ जी महाराज ने जीवित समाधि ली थी। जिसके 9 शिष्य थे, जिन्होंने भी यहां पर ही समाधि ली थी। तथाकथित कहावत है कि शिवनाथ जी महाराज ने यहां के अलावा एक ही दिन में दो जगह ओर भी समाधि ली थी। वह भी एक ही समय में प्रथम समाधि स्थल सकराय की पहाड़ियों में तथा द्वितीय श्यामपुरा के पास एक कस्बे में समाधि ली। तीसरी समाधि जयपुर के पास बताई जा रही है। जो एक ही दिन में ली गई थी। जहां पर रावण कुंड भी प्राचीन समय का बना हुआ है। कहा जाता है कि रावण ने प्राचीन समय में कई वर्षों तक यहां तपस्या की थी। यह भी कहा जाता है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद यहां पर स्नान करने के लिए आए थे। लेकिन पूजा अर्चना करने के पश्चात जब वह स्नान करने लगे तब प्रातः आटा पीसने की चक्की की आवाज सुनने पर वह यहां कामयाब नहीं हुए, तो यहां से चलकर लोहार्गल सूर्य कुंड में जाकर स्नान किया था। आपको बता दें कि शाकंभरी सकराय की पहाड़ियों में स्थित शिवालय में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए पूजा अर्चना करवाते हैं। मूलचंद सैनी के अनुसार शिवालय मंदिर में बाबा शिवनाथ जी महाराज का चमत्कार है और उसी चमत्कार की वजह से श्रद्धालुओं के हर कार्य पूर्ण होते हैं। यहां पर हवन पूजा अर्चना भंडारे इत्यादि होते रहते हैं, लेकिन इस स्थान के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है। क्योंकि यह पहाड़ियों में स्थित होने के कारण लोग यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं।