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यू ही नहीं कहते लोहार्गल को तीर्थराज

श्रावण मास में शिव भक्त उठाते है यहाँ से कावड़

राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर और उदयपुरवाटी कस्बे से 10 किलोमीटर दुरी पर स्थित है लोहार्गल धाम। इस स्थान के बारे में कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं जिनके अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों को अपने स्वजन बंधुओं की हत्या का अपराध बोध होने पर प्रायश्चित करने की इच्छा हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि जिस स्थान पर तुम्हारे सारे अस्त्र-शस्त्र गल जाए वही तुम्हारा मुक्ति स्थान होगा वही तुम्हें पुण्य की प्राप्ति होगी। बताया जाता है कि अनेकों तीर्थों की यात्रा करते हुए जब पांडव अरावली पर्वतमाला के बीच इस कुंड में स्नान करने के लिए उतरे तो भीम की गदा सहित अन्य पांडवों के हथियार भी इसमें गल गए। इस स्थान को पांडवों की प्रायश्चित स्थली के रूप में भी जाना जाता है जैसा इसके नाम से ही प्रतीत होता है कि लोहार्गल यानी वह स्थान जहां लोहा भी गल जाए। लोहार्गल के बारे में एक और कथा भी प्रचलित है जो भगवान परशुराम से जुड़ी हुई है बताते हैं कि क्षत्रियों का संहार करने के बाद में जब भगवान परशुराम को पश्चाताप हुआ तो उन्होंने यहीं पर आकर यज्ञ किया और उनको पुण्य की प्राप्ति हुई। यहां पर विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है बिल्कुल उसके सामने ही सूर्यकुंड है जिसमें ग्रहण, सोमवती अमावस्या को श्रद्धालुओं की स्नान करने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। वहीं जब माल केतु की 24 कोसी परिक्रमा होती है तो उसके पूर्ण होने पर भी यहां पर स्नान करके पुण्य प्राप्ति की जाती है। बात श्रावण मास की करें तो श्रावण मास में इस रमणीक स्थल पर श्रद्धालुओं के साथ पर्यटकों का भी भारी मात्रा में आना शुरू हो जाता है। दूरदराज के क्षेत्र से आने वाले शिव भक्त यहां से बम बम भोले की कावड़ भरकर प्रस्थान करते हैं। इस स्थान का संबंध भगवान परशुराम, शिव, सूर्य, विष्णु और पांडवों से बताया जाता है वही लोहार्गल को तीर्थराज की संज्ञा भी दी गई है।