आलेख/जयंती विशेष/26 अक्टूबर- लेखक – धर्मपाल गाँधी
स्वतंत्रता संग्राम में कलम को हथियार बनाने वाले निर्भीक पत्रकार
स्वतंत्रता संग्राम के कलमवीर
गणेश शंकर विद्यार्थी भारतीय पत्रकारिता के उस स्वर्ण युग के प्रतीक हैं, जब कलम सत्ता से टकराने का साहस रखती थी।
वे न केवल ‘प्रताप’ समाचार पत्र के संपादक थे, बल्कि एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी और मानवीय आदर्शों के पुजारी भी थे।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में जन्मे गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी शिक्षा कानपुर और इलाहाबाद में प्राप्त की।
बाल्यकाल से ही उनमें लेखन और समाजसेवा की प्रवृत्ति थी। नौकरी के बजाय उन्होंने पत्रकारिता को जनजागरण का साधन बनाया।
‘प्रताप’ की स्थापना और राष्ट्रवाद की आवाज
1913 में कानपुर से शुरू किया गया उनका साप्ताहिक समाचार पत्र ‘प्रताप’ जल्दी ही आजादी के आंदोलन की मुखर आवाज बन गया।
यह अख़बार किसानों, मजदूरों और वंचितों की आवाज बना। प्रताप के दफ्तर में सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी शरण और प्रेरणा पाते थे।
पत्रकारिता का सिद्धांत और नीति
‘प्रताप की नीति’ नामक उनके लेख में उन्होंने लिखा —
“हमारे लिए सत्य और न्याय ही मार्गदर्शक होंगे, किसी की प्रशंसा या अप्रशंसा हमें विचलित नहीं कर सकेगी।”
गणेश शंकर विद्यार्थी का मानना था कि पत्रकारिता सत्ता की नहीं, समाज की सेवा के लिए होती है।
संघर्ष, जेल यात्राएं और अदम्य साहस
ब्रिटिश सरकार ने कई बार उनके लेखों को “राजद्रोही” करार दिया।
विद्यार्थी जी को अपने छोटे जीवन में पाँच बार जेल यात्राएं करनी पड़ीं, पर वे कभी झुके नहीं।
उन्होंने किसानों, मजदूरों और आमजन के अधिकारों की लड़ाई लड़ी और गाँधीजी के अहिंसक आंदोलन तथा भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों दोनों को समान रूप से सहयोग दिया।
सांप्रदायिकता के खिलाफ शहादत
25 मार्च 1931 को कानपुर में दंगे भड़कने पर उन्होंने हिंसा रोकने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की।
वे भीड़ के बीच जाकर हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों को समझाने लगे।
उग्र भीड़ ने उन पर हमला कर दिया और वे मानवता की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।
उनकी शहादत आज भी पत्रकारिता में निष्पक्षता और मानवता की सर्वोच्च मिसाल मानी जाती है।
विरासत और प्रेरणा
गणेश शंकर विद्यार्थी की पत्रकारिता लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रहरी रही।
उन्होंने दिखाया कि कलम बंदूक से अधिक प्रभावशाली हो सकती है।
‘प्रताप’ आज भी सत्य, साहस और सेवा की पत्रकारिता का प्रतीक माना जाता है।
निष्कर्ष
गणेश शंकर विद्यार्थी ने दिखाया कि पत्रकारिता केवल खबर नहीं, जनहित और राष्ट्र निर्माण की साधना है।
उनकी जयंती पर आदर्श समाज समिति इंडिया और पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।