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देश में सांसदों के भत्ते बढ़े, मनरेगा मजदूरी जस की तस

Sikar MNREGA workers to follow new summer working hours

मजदूरों की अनदेखी, नेताओं को महंगाई भत्ता ?

देश में एक ओर जहां गरीब मजदूरों को मनरेगा के तहत न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है, वहीं दूसरी ओर सांसदों और विधायकों के वेतन और पेंशन में लगातार इजाफा हो रहा है।

मनरेगा (MGNREGA) भारत की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है, जिसका वादा था – साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार, वह भी गांव के पास।

लेकिन कई राज्यों में मजदूरी दरें आज भी ₹240 से अधिक नहीं हैं।

“गरीब को सरकार ‘बोझ’ समझती है और नेता को ‘संपत्ति’?” — एक श्रम अधिकार कार्यकर्ता

सांसदों और पूर्व सांसदों को क्या मिला ?

केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल 2023 से सांसदों की तनख्वाह और भत्तों में बड़ा इजाफा किया:

  • मासिक वेतन: ₹1,00,000 ➝ ₹1,24,000
  • दैनिक भत्ता: ₹2,000 ➝ ₹2,500
  • पूर्व सांसद पेंशन: ₹25,000 ➝ ₹31,000
  • हर अतिरिक्त कार्यकाल पर अतिरिक्त पेंशन: ₹2,000 ➝ ₹2,500 प्रति वर्ष

वहीं मनरेगा मजदूरी में बढ़ोतरी को आर्थिक बोझ बताकर टाला गया।

मजदूरी में भयंकर अंतर

2025-26 के लिए घोषित मनरेगा दरों में राज्य दर राज्य भारी अंतर है

संसद समिति की चेतावनी

संसद की एक स्थायी समिति ने कहा कि मनरेगा मजदूरी को CPI ग्रामीण महंगाई दर से जोड़ना चाहिए और न्यूनतम मजदूरी ₹400 प्रति दिन तय होनी चाहिए।
लेकिन सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

सामाजिक न्याय की नई बहस

यह अंतर केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और नीति की प्राथमिकता का भी सवाल है।

क्या गरीबों को उनका वाजिब हक देना सचमुच सरकारों के लिए “महंगा” है?
क्या देश में जनप्रतिनिधियों की भत्तों की समीक्षा के साथ नीति निर्धारकों की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए ?