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Dhanteras 2025: राजस्थान में यहां धनतेरस पर पीली मिट्टी ही क्यों बन जाती है ‘सोना’? समझिये मेवाड़ की इस आस्था का विवरण

Dhanteras 2025 Rajasthan News: देशभर में पांच दिवसीय दीपोत्सव कि शरुवात होने जार ही है। बता दे कि धनतेरस को हिन्दू रीती रिवाज के अनुसार बड़ा महत्व दिया जाता है। यह दिन न केवल खरीददारी और समृद्धि से जुड़ा है, बल्कि आस्था और सदियों पुरानी परंपराओं का भी संगम है.

जानकारी के लिए बता दे कि इसी कड़ी में, राजस्थान के मेवाड़ अंचल (राजसमंद) में धनतेरस के अवसर पर एक अनूठी और गहरी आस्था वाली रस्म निभाई जाती है, जो यहां की संस्कृति और लोक-जीवन में एक अलग ही स्वरूप प्रदर्शित करती है।

सुहागिन महिलाएं नदी किनारे से लेकर आती है मिटटी

जानकारी के लिए बता दे कि धनतेरस के दिन मेवाड़ की सुहागिन महिलाएं आज सूर्योदय से भी पहले नदी के तटीय इलाकों में पहुंची और एक विशेष पीली मिट्टी को ‘धन’ मानकर अपने घर लेकर आईं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, जिसे घर की बुजुर्ग महिलाएं नई पीढ़ियों को सौंपती हैं.

‘सोने-चांदी के सामान पवित्र मिट्टी’

जानकारी के लिए बता दे कि स्थानीय मान्यताओं और परंपरा के अनुसार, राजसमंद के कांकरोली क्षेत्र की सुहागिन महिलाएं धनतेरस की सुबह अंधेरा रहते ही स्थानीय नदी या जलाशयों के तटीय क्षेत्रों की ओर रुख करती हैं.

सूर्योदय से पूर्व, यानी ब्रह्म मुहूर्त में, ये महिलाएं नदी तट पर पहुंचती हैं. वहां विधिवत पूजा-अर्चना करने के बाद, वे नदी के तटीय इलाके की पीली मिट्टी को श्रद्धापूर्वक इकट्ठा करती हैं.

इस पीली मिट्टी को भौतिक धन (सोने-चांदी) के समान ही पवित्र और समृद्धिदायक माना जाता है. महिलाएं इस मिट्टी को कलश या तगारी (मिट्टी का पात्र) में भरकर अपने सिर पर रखकर घर लाती हैं.