सीकर |
अक्षय तृतीया का पर्व जैन धर्म में भी विशेष महत्व रखता है। इस अवसर पर सीकर के 11 जैन मंदिरों में श्रद्धालुओं ने भगवान आदिनाथ की पूजा-अर्चना की और दान परंपरा का निर्वाह किया।
भगवान आदिनाथ से जुड़ी है अक्षय तृतीया की परंपरा
जैन मान्यताओं के अनुसार, भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) ने दीक्षा के बाद 6 माह तक उपवास किया था। उन्हें 7 माह 9 दिन तक आहार नहीं मिला, क्योंकि उस समय समाज में दान की विधि ज्ञात नहीं थी।
हस्तिनापुर के राजा श्रेयांश को पूर्व जन्म की स्मृति से दान विधि की जानकारी हुई। उन्होंने भगवान आदिनाथ को पहली बार इक्षु (गन्ने) रस का आहार प्रदान किया। यही दिन अक्षय तृतीया कहलाया।
सीकर में हुए विशेष धार्मिक आयोजन
सीकर शहर के साँवली रोड स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, नवलगढ़ रोड एवं तबेला रोड के चेताल्य में भव्य आयोजन हुए।
- मूलनायक आदिनाथ भगवान का अभिषेक और विशेष शांति धारा की गई।
- श्रद्धालुओं ने मिलकर गन्ने के रस का वितरण भी किया।
- तबेला रोड स्थित चेताल्य के बाहर लोगों को इक्षु रस पिलाया गया, जिससे दान परंपरा को जीवंत किया गया।
स्थानीय समाज का उत्साह
धर्म प्रेमी प्रियंक गंगवाल ने बताया,
“यह पर्व हमें दान की महत्ता सिखाता है। भगवान आदिनाथ ने समाज को पहला दान सिखाकर धर्म की नींव रखी।”
इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही, जिन्होंने पूजन, ध्यान और दान में भाग लिया।