Posted inSikar News (सीकर समाचार), आध्यात्मिक समाचार (Spirituality News In Hindi)

68 वीं महाप्रयाण तिथि पर आज दांता में व कल लोसल में होगे कार्यक्रम

परमहंस बाबा परमानंद जी की

दांतारामगढ़,  शेखावाटी मारवाड़ के प्रसिद्ध संत परमहंस बाबा परमानन्द का जन्म से नाम कैदार था । विक्रम संवत  1932 में सन्  1873 लोसल में जीननराम व्यास पाराशर के घर केदार का जन्म हुआ । मानो योग क्षोम और श्रेयस कल्याण मंगलमय भरे अरूणोदय आकाश में हुआ हो इनके पिता ने 13 वर्ष की आयु में केदार का विवाह जिलिया की  10 वर्षीय  गंगा से कर दिया । गंगा भी अपने अनुरूप पावन थी लेकिन बाबा को गृहस्थ जीवन रास नही आया और किशोरावस्था में केदार सांसारिक वैभव और भौतिक आकर्षक  तथा माता पिता व पत्नि का मोह त्यागकर सन्यास की और आकृष्ट हो गये। विवाह के कुछ समय बाद केदार जो अपने माता पिता की एकमात्र संतान थे घर से निकल पड़े । केदार ने नगर के मध्य स्थित गिरी सम्प्रदाय के आश्रम के बाबा रामानंद गिरी से दीक्षा ली और गुरू के आदेशानुसार किसी निजरन स्थान पर कठोर तपस्या हेतु निकल पड़े । लोहागर्ह   व झाड़ली तलाई  दाँता को अपनी तपोभूमी  बनाया । इन्द्रियो को वश में करना साधना के लिए इस अवधि में आपने उपलब्ध होने पर कन्द मूल फल का ही सेवन किया । साधना कर  25 वर्ष की आयु में अपनी जन्मभूमि लोसल में लौटना यहा का सौभाग्य रहा । बाबा को भोजन की चिन्ता नही रहती थी । रात दिन तम्बाकू के दातून में लीन रहते थे । बाबा को पूर्ण निद्रा में कभी नही देखा गया । इनके भक्तजन बताते है की जब रात्री में जागरण देखते तो बाबा मस्तक हिलाकर दाहिना हाथ फेरते हुए दिखाई देते । बाबा सर्दी  हो या गर्मी  एकमात्र लम्बा कुरता धारण करते थे । इनकी दिनचर्या भी अजीब थी । दिन में घूमते हुए किसी मन्दिर में जाकर परिक्रमा करने लग जाते । इनकी परिक्रमा बाएं से दाएं विपरित दिशा में होती थी । मन होता नगर की परिक्रमा करने लग जाते बाबा को तत्व बोध भी हो गया था । परमहंस बाबा की अनेक गाथाएं प्रचलित है । भक्तगण आज भी बाबा के प्रति विश्वास रखकर उन्हे श्रद्धा से भगवान के समान आदर देते है । कई ऐसे व्यक्ति है जो असाध्य रोगों से पीड़ित थे,  बाबा के आशीर्वाद से स्वस्थ हो गये । निःसंतान दम्पत्तियो को बाबा की कृपा से पुत्र रत्न प्राप्त हुए । दाँता के पाबूदान दरोगा ने बताया कि कई बार गाड़ी  में तेल खत्म हो जाने पर बाबा के कहने मात्र से ही गाड़ी  चल पड़ती थी ,ऐसे थे बाबा के चमत्कार । बाबा ने खेड़ापति बालाजी धाम दाँता में काफी समय बिताया । चमत्कारी परमहंस बाबा परमानन्द जी  का दाँता में  सन् 1951 में माघ शुक्ला पूर्णिमा  की मध्यरात्री को महाप्रयाण हुआ , उस रात्री में रातभर दाँता में भजन कीर्तन हुए और सुबह दाँता ठाकुर मदनसिंह व गांव के करीब पांच सौ लोग बाबा को उनके पैतृक गांव लोसल लेकर गए । बाबा का मंदिर  दाँता में नीचे वाले गढ़ के पास बना है एंव  लोसल में भी बाबा का बड़ा  मन्दिर है । आज भी शेखावटी  मारवाड़ क्षेत्र में बाबा की पूजा अर्चना कर उनको भगवान के समान पूजा जाता है ।