Vishnu Ji Ki Aarti:
हिन्दू धर्म के त्रिमूर्ति यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में एक प्रमुख देवता हैं। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु सृष्टि का संचार करके हैं। वह धर्म, न्याय और रचनात्मकता का प्रतीक माने जाते हैं। यहां पढ़िए विष्णु जी की आरती ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे लिरिक्स इन हिंदी और साथ ही जानें विष्णु जी की आरती का महत्व, लाभ, अर्थ, आरती करने का सही समय और साथ ही अन्य जानकारी…
Vishnu Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi ( विष्णु जी की आरती लिरिक्स इन हिंदी)
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विष्णु जी की आरती का महत्व
विष्णु जी की आरती का धार्मिक के साथ-साथ अध्यात्मिक महत्व काफी अधिक है। विष्णु जी की इस आरती में उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। इस आरती को करने मात्र से विष्णु जी अति प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि, कामना, शांति का आशीर्वाद देते हैं। विष्णु भगवान की ये आरती स्कंद पुराण में मिलती है।
विष्णु जी की आरती करने के लाभ
- विष्णु जी की विधिवत तरीके से पूजा करने के साथ-साथ इस आरती को करने से विशेष लाभ भी मिलते हैं।
- विष्णु आरती को सच्चे मन और श्रद्धा के साथ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं।
- विष्णु जी की आरती करने से जीवन के हर एक संकट दूर हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें रक्षक और पालक के रूप में पूजा जाता है।
- विष्णु जी की आरती करने से जीवन में समृद्धि, सुख आती हैं और हमेशा खुशियां बनी रहती हैं।
- परिवार के सभी लोगों को विष्णु आरती करने से घर में सुख-शांति बनी रहती हैं। रिश्तों में मजबूती बनी रहती है।
- नियमित रूप से विष्णु जी की आरती करने से मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा, धन-वैभव की प्राप्ति होती है।
विष्णु जी की आरती कैसे करें
सबसे पहले भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को फूल, माला, पीला चंदन, भोग आदि लगा दें। इसके बाद घी का दीपक और अगरबत्ती जला लें। फिर भगवान विष्णु का मनन करते हुए बिना किसी त्रुटि के सही उच्चारण के साथ आरती गाना शुरू कर दें। दीपक को भगवान विष्णु के चारों ओर घुमाते रहें। विधिवत तरीके से आरती करने के बाद जल से आचमन कर दें।
विष्णु भगवान की आरती का सही समय?
विष्णु आरती को सुबह या शाम के समय करना सर्वोत्तम होता है। अगर आप दोनों समय नहीं कर सकते हैं, तो एक वक्त अवश्य करें।
विष्णु जी की आरती के बाद क्या करना चाहिए?
भगवान विष्णु की आरती करने के बाद जल से आचमन करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें। इसके बाद कहें कि धन्यवाद प्रभु, आपने मुझे अपनी कृपा से अनुपूरित किया है। इसके बाद अपनी कामना कहें और प्रसाद ग्रहण करें।
विष्णु जी की आरती अर्थ सहित
आरती- ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- हे विष्णु जी आपकी जय हो, ब्रह्मांड के स्वामी आप अपने भक्तों के हर संकट को क्षण भर में ही दूर कर देते हैं।
आरती- जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- हे विष्णु जी जो आपको फल अर्पित करता है, जो उनके मन के हर एक दुख समाप्त हो जाता है। घर में सुख-संपत्ति आती हैं और शरीर का हर एक कष्ट समाप्त हो जाता है।
आरती- मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- हे विष्णु जी आप मेरे माता-पिता है, तो ऐसे में आपकी शरण के अलावा कहां जाऊं। आपके बिना कोई दूसरा नहीं है जिसके लिए मैं आस करूं।
आरती- तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- हे विष्णु जी आप पूरी तरह के परमात्मा हो, तुम तो सब कुछ बिना कहे जानने वाले हैं। तुम पारब्रह्म के भगवान हो और सबके स्वामी हो।
आरती- तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- विष्णु जी आप करुणा के सागर हो, तो इस संसार का पालन करने वाले हो। मैं अज्ञानी हूं और इच्छाओं के पीछे जाता हूं। मैं आपका सेवक हूं और आप मेरे भगवान हैं, इसलिए मुझ पर अपनी कृपा बरसाओ…
आरती- ओम, आपकी जय हो, ब्रह्मांड के स्वामी।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे।
अर्थ- आप एक अदृश्य और सभी प्राणियों के स्वामी हैं। मैं आपसे कैसे मिलूंगा, हे दयालु, मैं आपसे कैसे मिलूंगा, मैं तो अज्ञानी हूं।
आरती- दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- आप असहायों के मित्र हैं और दुखों को दूर करने स्वामी है। आप मेरे भगवान हैं। प्रभु आप अपना आशीर्वाद दें, मैं आपके द्वारा पर खड़ा हूं।
आरती- विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- हे प्रभु, मेरी सांसारिक इच्छाओं और हर एक पाप को दूर करो। स्वामी मेरे पापों को दूर करो। आपके प्रति मेरी आस्था और भक्ति को बढ़ाओ।
आरती- श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
अर्थ- शिवानंद स्वामी कहते हैं कि जो भी व्यक्ति इस आरती को करता है, तो वह सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है।