रूटीन में ही यह कार्य ईमानदारी से किये जाए तो नौबत ही नहीं आए हादसों की
झुंझुनूं। “आग लगने पर ही कुआं क्यों खोदता है प्रशासन?” – यह सवाल अब जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया है। हर बार किसी बड़ी घटना या हादसे के बाद ही प्रशासनिक तंत्र सक्रिय होता दिखाई देता है। लेकिन जब तक नुकसान हो जाता है, तब तक कार्रवाई का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
हादसे के बाद ही जागता सिस्टम
आगजनी, सड़क दुर्घटनाएं, स्कूलों में सुरक्षा खामियां या खाद्य मिलावट – हर मामले में एक समान पैटर्न दिखाई देता है।
पहले हादसा, फिर मीटिंग, फिर जांच और कुछ दिनों बाद सब कुछ पहले जैसा।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि अगर प्रशासन नियमित निरीक्षण और मॉनिटरिंग करे, तो न तो ऐसी घटनाएं होंगी, न ही बाद में हड़बड़ी में किए जाने वाले निर्णयों की जरूरत पड़ेगी।
जवाबदेही तय हो तो सुधरेगा सिस्टम
विशेषज्ञों का मानना है कि “घटना के बाद की कार्रवाई” की बजाय “घटना से पहले की तैयारी” प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
नियमित सुरक्षा जांच, फायर सिस्टम की मॉनिटरिंग और स्कूलों-अस्पतालों में सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा अगर समय पर की जाए, तो जनता की जान-माल की सुरक्षा संभव है।
जनता की आवाज़
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं –
“जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक हर हादसे के बाद सिर्फ बयानबाजी और फोटो सेशन होते रहेंगे।”
ज़रूरी है सक्रिय शासन की संस्कृति
अब वक्त है कि शासन और प्रशासन दोनों रोकथाम आधारित व्यवस्था की ओर बढ़ें।
जनता को भी सजग रहकर अपने क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था की निगरानी करनी चाहिए। आखिर प्रशासन जनता के लिए है, जनता के बाद नहीं।
लेखक की टिप्पणी:
अगर सरकारी विभाग अपनी दैनिक जिम्मेदारियों को पारदर्शिता और गंभीरता से निभाएं, तो हादसों की नौबत ही नहीं आए। यही सच्चे सुशासन की पहचान होगी।