झुंझुनूं में लगातार सामने आ रहे उच्च सरकारी अधिकारियो के आदेश बेअसर होने के मामले
आखिर झुंझुनू में चल क्या रहा है ? कौन डालता है दबाव ?
दुर्जनपुरा का दर्द: 50 साल पुराने रास्ते पर विवाद, विकलांग बेटे और बीमार मां की जिंदगी थमी
झुंझुनूं, झुंझुनूं ज़िले के दुर्जनपुरा गांव में 50 साल पुराने रास्ते पर खड़ा विवाद एक 45 वर्षीय विकलांग बेटे और उसकी 75 वर्षीय बीमार मां के लिए जीवन-मृत्यु का सवाल बन गया है।
रमेश कुमार, जो दोनों पैरों से अपंग है, अपनी हृदय रोगी मां केशर देवी के साथ खसरा नंबर 69 के खेत में बने छोटे ढाणी में रहते हैं। यह ढाणी उनका पैतृक घर है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से यहां तक पहुंचने वाला पुराना रास्ता पड़ोसियों के कब्जे और विवाद में कट चुका है।
प्रशासनिक आदेश बेअसर
प्रशासन ने 18 जुलाई 2025 को उपखंड अधिकारी झुंझुनूं के आदेश (क्रमांक 314) से इस रास्ते को “कटान शुदा” घोषित कर दिया था।
आरोप है कि जमीनी स्तर पर चूनाराम, पूर्णाराम और हनुमानाराम के उत्तराधिकारियों ने रास्ता रोक रखा है। रमेश के मुताबिक, “वे न सिर्फ रास्ता रोकते हैं बल्कि झगड़े और मारपीट की नौबत भी ला देते हैं।”
तहसीलदार की बेरुखी और धमकी
रमेश का कहना है –
“मैं अपंग हूं, मां बूढ़ी है, फिर भी रोज़ तहसीलदार और कलेक्टर के चक्कर काट रहा हूं। तहसीलदार सुनने के बजाय कहते हैं – फाइल तो मेरे पास ही आएगी। पटवारी भी आदेश मानने से मना कर देता है।”
राधा चौधरी, जो रमेश के पक्ष में हैं, बताती हैं –
“तहसीलदार ने मुझसे कहा – रोज़ रोज़ इस विकलांग को भी लेकर आ जाती हो!”
इच्छा मृत्यु की गुहार
सिस्टम से टूटकर रमेश ने जिला कलेक्टर डॉ. अरुण गर्ग को इच्छा मृत्यु की एप्लिकेशन दी।
“अगर हमारा रास्ता नहीं खुल सकता, तो हमें जीने की मजबूरी से मुक्त कर दिया जाए,” रमेश ने कलेक्टर से कहा।
कलेक्टर अरुण गर्ग ने आश्वासन दिया –
“मैंने तहसीलदार को बोल दिया है। दो दिन का टाइम दिया है, इनको दुबारा नहीं आना पड़ेगा।”
संघर्ष की दिनचर्या
रमेश का दिन सुबह 5 बजे शुरू होता है। दोनों पैरों से अपंग होने के बावजूद वह अपनी मां के साथ खेत संभालने की कोशिश करता है।
तहसील के चक्कर लगाने के लिए उसे हाथगाड़ी में 500 मीटर लाया जाता है और फिर टेंपो में बैठाकर ऑफिस ले जाया जाता है।
वह कहता है –
“सरकार ने दिव्यांगों के लिए कानून बनाए, लेकिन जब उन्हें लागू करने की बात आती है, तो हमें अपराधी बना देते हैं।”
50 साल पुराने रास्ते पर संकट
खसरा नंबर 85, 63 और 67 के खातेदारों ने उपखंड अधिकारी के आदेश के खिलाफ अपील की, लेकिन स्टे नहीं मिला। फिर भी रास्ता नहीं खोला जा रहा।
केशर देवी कहती हैं –
“हम किसी का हक नहीं छीन रहे। यह रास्ता हमारे जीवन का हिस्सा है। लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे हमें घेरकर रख दिया गया है। खेत है पर रास्ता नहीं, घर है पर पहुंच नहीं।”
प्रशासन के लिए आईना
यह घटना सिर्फ दुर्जनपुरा की नहीं, बल्कि उन हजारों ग्रामीण परिवारों की कहानी है जो पुराने रास्तों और प्रशासनिक लापरवाही में फंसे हैं।
रमेश की इच्छा मृत्यु की गुहार व्यवस्था के संवेदनहीन रवैये का आईना है।शेखावाटी लाइव ब्यूरो रिपोर्ट झुंझुनू