रैंकिंग में आई भारी गिरावट, झुंझुनू नगर परिषद 100 में भी नहीं बचा सका अपना स्थान
झुंझुनूं, स्वच्छ भारत मिशन की ताज़ा स्वच्छता सर्वेक्षण रिपोर्ट में झुंझुनूं नगर परिषद की हालत बेहद चिंताजनक दिखाई दी है। पिछले वर्ष राजस्थान में 16वीं रैंक पर रहने वाला यह शहर अब 101वें स्थान पर जा पहुंचा है।
राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थिति बदतर है—335वीं रैंक से गिरकर अब झुंझुनूं 571वें स्थान पर आ गया है।
स्वच्छता में झुंझुनूं नगर परिषद का रिपोर्ट कार्ड
मापदंड | स्थिति |
---|---|
डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण | 61% |
गीला व सूखा कचरा अलग करना | 04% |
वेस्ट प्रोसेसिंग (बायो प्लांट) | 0% |
डंपसाइट उपचार | 33% |
आवासीय क्षेत्रों की सफाई | 100% |
बाजार क्षेत्रों की सफाई | 100% |
जल निकायों की सफाई | 0% |
सार्वजनिक शौचालय सफाई | 50% |
किन वजहों से पिछड़ा झुंझुनूं
- बायो वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट अब तक शुरू नहीं हुआ।
- गीले-सूखे कचरे की पृथक व्यवस्था नगण्य।
- डंपिंग साइट्स का उपचार अधूरा।
- जल स्रोतों की सफाई पर कोई काम नहीं।
- GPS सिस्टम से रहित कचरा वाहन।
स्थानीय लोगों व जानकारों की राय
सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रतिक्रिया देते हुए लिखा:
“नगर परिषद का अधिग्रहण सूचना केंद्र से ज्यादा जरूरी है।”
“वार्डों में मॉनिटरिंग नहीं, सफाई बदहाल और स्ट्रीट लाइटें खराब।”
स्थानीय नागरिकों ने सुझाव दिया:
- प्रत्येक 5–7 वार्ड पर शिकायत केंद्र खोले जाएं।
- कचरा गाड़ियों पर GPS लगाया जाए।
- वार्डवार जमादार और निरीक्षक के नंबर सार्वजनिक हों।
न्यायालय की निगरानी और नगर परिषद की अनदेखी
राजस्थान हाईकोर्ट ने अधिवक्ता के.के. गुप्ता को झुंझुनूं नगर परिषद के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया है। बावजूद इसके, नगर परिषद उनके निर्देशों की बार-बार अनदेखी कर रही है।
प्रशासनिक जिम्मेदारी पर भी उठे सवाल
शहरवासियों का सवाल है कि जिला मुख्यालय पर बैठे वरिष्ठ अधिकारी नगर परिषद की कार्यशैली की मॉनिटरिंग क्यों नहीं कर रहे?
“जब उच्च अधिकारी फील्ड में नहीं उतरेंगे, तो निचले कर्मचारी जिम्मेदारी क्यों निभाएंगे?”
निष्कर्ष
झुंझुनूं नगर परिषद की गिरती रैंकिंग सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और जन सेवाओं की बदहाली का प्रमाण है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो स्थिति और बदतर हो सकती है।