दो साल की उपलब्धियों का जश्न, लेकिन झुंझुनू में आदेश आज भी हवा में
सरकार का जश्न, जमीनी हकीकत अलग
राजस्थान सरकार जहां अपने 2 साल पूर्ण होने की उपलब्धियों का जश्न बड़े-बड़े सरकारी आयोजनों के जरिए मना रही है, वहीं झुंझुनू जिले में हालात इससे बिल्कुल अलग नजर आ रहे हैं।
यहां प्रभारी मंत्री और कैबिनेट मंत्री अविनाश गहलोत के निर्देशों की एक साल बीत जाने के बाद भी पालना नहीं हुई।
मामला शांति और अहिंसा विभाग के बोर्ड का
मामला सूचना एवं जनसंपर्क विभाग परिसर में लगे शांति और अहिंसा विभाग के बोर्ड से जुड़ा है।
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय जिला स्तर पर महात्मा गांधी शांति समितियों का गठन किया गया था, जिन्हें बाद में भाजपा सरकार ने भंग कर दिया।
इसकी पुष्टि झुंझुनू दौरे पर आए फतेहपुर विधायक हाकम अली खान ने भी की थी। उन्होंने सवाल उठाया था कि
कांग्रेस विधायक हाकम अली खान सर्किट हाउस में आए थे तब पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत करते हुए कहा था कि भाजपा सरकार ने एक विधेयक लाकर शांति और अहिंसा विभाग की जिला स्तर पर बनाई गई महात्मा गांधी शांति समितियो को भंग कर दिया है लेकिन यह विचित्र बात है कि झुंझुनू में इस बोर्ड को क्यों नहीं हटाया गया यह तो उनकी समझ से भी परे है।
एक साल पहले दिए गए थे स्पष्ट निर्देश
पिछले साल सरकार की एक साल की उपलब्धियों को लेकर हुई पत्रकार वार्ता में यह सवाल सीधे प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत के सामने रखा गया था।
उस समय मंत्री ने तत्कालीन जिला कलेक्टर और जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी को बोर्ड हटाने के निर्देश दिए थे।
एक साल बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
विडंबना यह है कि एक साल बीत जाने के बाद भी झुंझुनू में वह बोर्ड ज्यों का त्यों लगा हुआ है।
अब जब सरकार अपनी दूसरी वर्षगांठ मना रही है, तो यह सवाल और गंभीर हो गया है कि
क्या झुंझुनू की अफसरशाही सरकार और प्रभारी मंत्री के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेती?
दोबारा उठाया गया सवाल, मिला गोलमोल जवाब
आज झुंझुनू सर्किट हाउस में जब प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत पहुंचे और यह मुद्दा दोबारा उठाया गया, तो
पहले उन्होंने सवाल को मनरेगा से जोड़कर जवाब देना शुरू कर दिया।
हालांकि बाद में उन्होंने कहा—
आपने जिस बोर्ड की बात कही है, उसे आपके साथ मिलकर देखा जाएगा। आज ही जिला कलेक्टर को आदेश देकर तुरंत प्रभाव से बोर्ड हटवाया जाएगा। पत्रकारों की भावनाओं का सम्मान रखा जायेगा ।
तकनीकी सवाल या राजनीतिक विरोधाभास?
यह मुद्दा किसी पत्रकार की भावना से नहीं, बल्कि एक तकनीकी और प्रशासनिक सवाल से जुड़ा है।
जब जिला स्तर की समिति भंग हो चुकी है, तो
भाजपा सरकार के कार्यकाल में सरकारी खर्चे से बोर्ड की रंगाई-पुताई कर उसे बनाए रखना कई सवाल खड़े करता है।
एक तरफ केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाया गया,
तो दूसरी तरफ झुंझुनू में भंग की गई समिति से जुड़ा बोर्ड क्यों बना हुआ है?
जांच का विषय
अब सवाल यह है कि—
- क्या झुंझुनू में अफसरशाही सरकार के आदेशों की अनदेखी कर रही है?
- या फिर झुंझुनू जिले में भाजपा सरकार का महात्मा गांधी से कोई विशेष जुड़ाव अब भी बना हुआ है?
- या फिर यह सब किसी की शह पर हो रहा है?
इन सभी सवालों के जवाब अब भी अधूरे हैं और यह पूरा मामला जांच का विषय बनता जा रहा है।
शेखावाटी लाइव ब्यूरो रिपोर्ट झुंझुनू