सूचना केंद्र विवाद को लेकर पत्रकारों, पाठको और आमजन में आक्रोश
झुंझुनूं। राजनीतिक बदलाव के बाद सरकारी नीतियों में फेरबदल आम बात है, लेकिन झुंझुनूं में सूचना केंद्र मीडिया कक्ष को लेकर जो स्थिति बनी है, वह असामान्य और प्रशासनिक असंवेदनशीलता का प्रतीक बनती जा रही है।
मंत्री और कलेक्टर के निरीक्षण के बावजूद बदला प्रशासनिक रुख
पूर्व जिला कलेक्टर रामावतार मीना ने सूचना केंद्र के पुराने भवन में मौजूद पत्रकार कक्ष का निरीक्षण कर उसमें एसी लगाने सहित अन्य सुविधाएं बढ़ाने के स्पष्ट निर्देश दिए थे।
इसी कक्ष में प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत ने दो बार पत्रकार वार्ता की और उन्होंने भी इसके रिनोवेशन व सुविधा विस्तार के लिए जिला प्रशासन और सूचना जनसंपर्क अधिकारी को निर्देशित किया था।
वही तत्कालीन समय में प्रभारी मंत्री के साथ झुंझुनू जिले के सत्ता पक्ष के विधायक, जिलाध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी पूर्व जन प्रतिनिधि और पार्टी पदाधिकारी भी इन प्रेस वार्ताओं में साथ में रहकर साक्षी रहे हैं, ऐसी स्थिति में अब झुंझुनू के अतिरिक्त जिला कलेक्टर इस सच्चाई को सिरे से ख़ारिज करने पर क्यों तुले हुए हैं ? यह बात समझ से परे है।
एडीएम के अनुसार
अब बड़ी विचित्र स्थिति सामने आ रही है वर्तमान में भवन आवंटन के लिए बातचीत में कई बार अतिरिक्त जिला कलेक्टर अजय कुमार आर्य ने तो यहां तक कह दिया था कि यह तो बंद रहता है, मकड़ियों के जाले लगे हुए है नियमित साफ़ सफाई भी नहीं होती। यह दावा अतिरिक्त जिला कलेक्टर अपने स्तर पर कर रहे है। तो ऐसी स्थिति में सवाल खड़ा होता है कि तत्कालीन झुंझुनू जिला कलेक्टर जो वीडियो और फोटो में भी इस कक्ष का निरीक्षण करते हुए नजर आ रहे हैं क्या यह और प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत ने दो बार इसी कक्ष में बैठकर प्रेस को संबोधित किया था साथ ही इस कक्ष को विकसित करके सुविधा में बढ़ोतरी के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया था, यह सब क्या झूठ था ?
अब एडीएम अजय कुमार आर्य का यह कहना कि यह कक्ष तो बंद रहता है, मकड़ियों के जाले लगे हैं, पूरी प्रक्रिया को उलझा रहा है।
यह बयान उन वीडियो और तस्वीरों से मेल नहीं खाता जिनमें मंत्री और कलेक्टर उसी कक्ष का निरीक्षण कर रहे हैं।
पत्रकारों ने उठाए सवाल
स्थानीय पत्रकारों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यह पूर्व कलेक्टर और मंत्री के निर्देशों का सार्वजनिक अपमान है।
यदि मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी मीडिया के सामने बैठकर कक्ष को विकसित करने की बात कह चुके थे, तो अब उसे खाली और अनुपयोगी बताकर एसीबी न्यायालय को देना किस सोच का परिणाम है?
सत्ता में बदलाव के साथ बदल गया रुख?
प्रश्न उठता है कि क्या जिला सरकार के बदलते ही नीतियां भी बदल जाती हैं?
क्या प्रेस की स्वतंत्रता और सूचना केंद्र की भूमिका को नजरअंदाज कर प्रशासन मनमानी कर सकता है?
आमजन और पत्रकारों में असंतोष
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग, पत्रकार और आम जनता में गहरा असंतोष है।
लोगों का कहना है कि यदि सूचना केंद्र से वाचनालय और पत्रकार कक्ष छीन लिया गया, तो झुंझुनूं प्रदेश का एकमात्र ऐसा जिला बन जाएगा जहां सूचना केंद्र में पत्रकारों और पाठकों के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा।
सारांश: यह सिर्फ भवन विवाद नहीं, लोकतांत्रिक संवाद का प्रश्न है।
सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए कि वह पूर्व निर्देशों का सम्मान करते हुए जनहित में फैसला ले।
पत्रकारों और जनता की आवाज़ को नज़रअंदाज़ करना, किसी भी लोकतांत्रिक जिले के लिए उचित नहीं।