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दलित-आदिवासी मसीहा ठक्कर बापा: सेवा और मानवता की अनोखी मिसाल

Thakkar Bapa life journey and contribution to Dalit tribal upliftment

आलेख/जयंती विशेष/29 नवंबर: लेखक – धर्मपाल गाँधी

ठक्कर बापा: वंचित समाज के लिए समर्पित जीवन

दलित-आदिवासी समाज के मसीहा कहे जाने वाले अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर, जिन्हें पूरा देश ठक्कर बापा के नाम से जानता है, भारत के महान समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य थे।

1914 में उन्होंने अपना समृद्ध इंजीनियरिंग करियर छोड़कर जीवन को गरीबों, दलितों और आदिवासी समुदायों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। महात्मा गाँधी के आदर्शों से प्रेरित होकर वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए।


गाँधीजी के घनिष्ठ सहयोगी

महात्मा गाँधी और ठक्कर बापा के बीच आत्मीय और कार्यात्मक संबंध रहे।
गाँधीजी ने स्नेहपूर्वक उन्हें “बापा” कहा और 1932 में उन्हें हरिजन सेवक संघ का महासचिव नियुक्त किया।

दोनों ने एक वर्ष लंबे अस्पृश्यता-विरोधी अभियान में साथ काम किया, जिसकी रूपरेखा स्वयं ठक्कर बापा ने तैयार की थी। हरिजन उत्थान के लिए देशभर में यात्राएं, स्कूल स्थापना और मंदिर प्रवेश आंदोलनों में भी बापा की प्रमुख भूमिका रही।


आदिवासी इलाकों में कठिन यात्राएं

ठक्कर बापा ने भारत के दूरदराज और कठिन इलाकों का दौरा किया—

  • असम के जंगल
  • उड़ीसा के सूखाग्रस्त क्षेत्र
  • गुजरात के भील इलाक़े
  • छोटा नागपुर का पहाड़ी क्षेत्र
  • थारपारकर का रेगिस्तान
  • त्रावणकोर का तटीय क्षेत्र

वे हमेशा रेलवे के तीसरे दर्जे में यात्रा करते थे और जीवन के 35 वर्ष आदिवासियों और हरिजनों की सेवा में लगा दिए।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

ठक्कर बापा का जन्म 29 नवंबर 1869 को गुजरात के भावनगर में हुआ।
उनके पिता विट्ठलदास एक व्यवसायी और समाजसेवी थे, जिन्होंने बापा के भीतर सेवा का संस्कार पैदा किया। उनकी माता मुलीबाई अत्यंत दयालु थीं और पड़ोसियों की सहायता करने में हमेशा आगे रहती थीं।

अमृतलाल ठक्कर ने पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर विभिन्न रियासतों और नगरपालिकाओं में कार्य किया। सफाई कर्मचारियों की दयनीय स्थिति देखकर उनके मन में सेवा-समर्पण की भावना प्रबल हुई।


स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी

ठक्कर बापा 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए।
गाँधीजी के अनुरोध पर उन्होंने हरिजन सेवक संघ को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित किया—

  • 22 प्रांतीय शाखाएँ
  • 178 जिला केंद्र

बापा ने हरिजन यात्राओं में गाँधीजी के साथ कई महीनों तक देशभर में भ्रमण किया।


आदिवासी कल्याण की नींव रखने वाले महापुरुष

स्वतंत्रता से पहले और बाद में ठक्कर बापा विभिन्न सरकारी समितियों के सदस्य रहे।
उन्होंने आदिवासियों के लिए—

  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • संचार
  • रोजगार
  • कल्याणकारी योजनाओं

की विस्तृत रूपरेखा तैयार की, जिन पर बाद में सरकारी नीतियाँ आधारित हुईं।

उन्होंने भील सेवा मंडल, गोंड सेवक संघ और आदिमजाति सेवक संघ जैसी संस्थाओं की स्थापना या विस्तार किया।


संविधान सभा में योगदान

ठक्कर बापा संविधान सभा के सदस्य बने और उन्होंने वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए विशेष प्रावधानों का प्रस्ताव रखा।
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण नीति में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।


भारतीय समाज में अमर विरासत

20 जनवरी 1951 को ठक्कर बापा का देहांत हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। राष्ट्र ने उनकी सेवाओं के सम्मान में—

  • 1969: स्मारक डाक टिकट
  • मुंबई: ठक्कर बापा कॉलोनी
  • मध्य प्रदेश: ठक्कर बापा पुरस्कार
  • महाराष्ट्र: आदिवासी बस्ती सुधारना योजना (2007)

स्थापित की।


उनकी सेवा का सार

ठक्कर बापा का जीवन एक सत्य संदेश देता है—
“मानवता की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।”

डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था—
“जब-जब निस्वार्थ सेवकों की याद आएगी, ठक्कर बापा की मूर्ति आँखों के सामने खड़ी हो जाएगी।”

वे भारत के उन महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्होंने सेवा, समानता और न्याय को जीवन का मार्ग बनाया और वंचित समाज के लिए आशा की किरण बने।