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Sikar News: फतेहपुर का 572 साल पुराना चर्तुभुजा माता मंदिर अनोखा

Ancient Chaturbhuja Mata temple in Fatehpur with marble scriptures

संगमरमर पर उकेरी गई दुर्गा सप्तशती बनाती है इस मंदिर को अद्वितीय

फतेहपुर (सीकर): राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के फतेहपुर कस्बे में स्थित चर्तुभुजा माता मंदिर अपनी ऐतिहासिकता, वास्तु और धार्मिक महत्व के चलते विशेष पहचान रखता है। करीब 572 वर्ष पुराना यह मंदिर न सिर्फ श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि संगमरमर पर उकेरी गई संपूर्ण दुर्गा सप्तशती इसे अनोखा बनाती है।


संगमरमर पर उकेरी गई है पूरी दुर्गा सप्तशती

पुजारी देवकीनंदन सारस्वत के अनुसार, मंदिर के सभामंडप की दीवारों पर संपूर्ण दुर्गा सप्तशती को संगमरमर के पत्थरों पर सुंदर ढंग से उकेरा गया है। इसमें 13 अध्याय, तन्त्रोक्त्तम देवी सूक्तम, क्षमा प्रार्थना, देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र, और सिद्धकुंजिका स्तोत्र सहित 758 संस्कृत श्लोक सम्मिलित हैं।

इस कार्य को संवत 2046 (1989 ई.) में सेठ बलदेवदास बाजोरिया के वंशजों द्वारा संपन्न कराया गया था, जिसमें करीब एक वर्ष का समय लगा।


मंदिर का गर्भगृह और प्रतिमाएं

पुजारी कमल सारस्वत ने बताया कि मंदिर का गर्भगृह चांदी से निर्मित है और उसमें चांदी के सिंहासन पर मां दुर्गा के पांच रूप
पुत्रदायिनी, महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती और त्वरिता माता की अष्टधातु से निर्मित मूर्तियां विराजित हैं।

इन सभी के चार-चार भुजाएं होने के कारण इस मंदिर को चर्तुभुजा माता मंदिर कहा जाता है।


मां दुर्गा के सभी नौ रूप भी हैं विराजित

मंदिर में नवरात्रा के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ स्वरूपों
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री — की विशाल संगमरमर की प्रतिमाएं भी विशेष आकर्षण का केंद्र होती हैं।


कुलदेवी रूप में मान्यता

यह मंदिर बाजोरिया, पंसारी, गनेड़ीवाल अग्रवाल गौत्रीय महाजनों और सारस्वत ब्राह्मणों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित है।
ये समुदाय अपने विवाह, जात, जडूले आदि संस्कार यहां मां के समक्ष करते हैं।


विशेष आयोजन: गोपाष्टमी और स्नेह सम्मेलन

नवरात्रा के अलावा गोपाष्टमी के अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसमें देशभर से श्रद्धालु और संबंधित गौत्रीय समाज के लोग पहुंचते हैं। स्नेह सम्मेलन जैसी पारिवारिक सामाजिक गतिविधियां भी मंदिर परिसर में आयोजित होती हैं।


पुजारी की पीढ़ियां निभा रही हैं परंपरा

देवकीनंदन सारस्वत ने बताया कि उनकी चौथी पीढ़ी अब मंदिर में नियमित पूजा-अर्चना का कार्य कर रही है, जो इस धार्मिक परंपरा और मंदिर की प्राचीनता को दर्शाता है।