भारतीय सेना का ऐतिहासिक उपहार
सीकर, शेखावाटी विश्वविद्यालय, सीकर को भारतीय सेना ने शौर्य और पराक्रम के प्रतीक के रूप में टी-55 टैंक और दो एंटी-टैंक तोपों का अनमोल उपहार दिया है।
अब ये युद्ध स्मृतियां विश्वविद्यालय परिसर में युवाओं और विद्यार्थियों को भारतीय सेना के बलिदान और पराक्रम की गौरवगाथा सुनाएंगी।
कुलगुरु ने बताया प्रेरणा का स्रोत
कुलपति प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार राय ने बताया कि यह टैंक और तोपें केवल सैन्य उपकरण नहीं, बल्कि साहस, बलिदान और कर्तव्य जैसे मूल्यों के प्रतीक हैं।
“इन स्मृतियों से छात्रों में राष्ट्रप्रेम और रक्षा सेवाओं में करियर बनाने की प्रेरणा मिलेगी,” – प्रो. राय
टैंक पुणे के किरकी से विश्वविद्यालय पहुंच चुका है, जबकि दोनों तोपें जबलपुर से जल्द ही पहुंचाई जाएंगी। इन्हें ‘शौर्य दीवार’ के पास स्थापित किया जाएगा।
जानिए टी-55 टैंक की खासियत
- निर्माण: सोवियत संघ द्वारा
- भार: लगभग 36 टन
- मुख्य हथियार: 100/105 मिमी की तोप
- उपयोग: 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में
- प्रमुख भूमिका: 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में दुश्मन टैंकों को ध्वस्त किया
यह टैंक आज भी भारतीय सेना की विजय और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है।
एंटी-टैंक तोपों की ऐतिहासिक भूमिका
सेना से प्राप्त दो प्रतिघात-रहित एंटी-टैंक तोपें भी भारत के सैन्य इतिहास का गौरव हैं।
इनका उपयोग:
- हल्के वाहनों या जमीन से किया जाता था
- टैंक-रोधी रणनीतियों में बेहद प्रभावी
- विशेष योगदान 1971 के युद्ध में
शेखावाटी का शौर्य और बलिदान
शेखावाटी क्षेत्र सदियों से ‘वीरों की भूमि’ के नाम से जाना जाता है।
- राजस्थान के हर दूसरे शहीद का संबंध शेखावाटी से होता है
- सीकर जिले के 50+ जवानों ने 1971 युद्ध में सर्वोच्च बलिदान दिया
- कारगिल युद्ध सहित कई युद्धों में रणबांकुरों ने मातृभूमि की रक्षा की
“युद्ध ट्रॉफी शेखावाटी के गौरवशाली इतिहास और राष्ट्रीय भावना को जीवंत करती हैं।”