यदि हां, तो हम बतायेगे झुंझुनू की इस स्थिति का जिम्मेदार कौन
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सीकर/झुंझुनूं। राज्य के मुख्य सचिव सुधांशु पंत ने मंगलवार को सीकर में आयोजित सीकर एवं झुंझुनूं जिले के जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक में प्रशासनिक समीक्षा की। झुंझुनू के दो बड़े समाचार पत्रों की बात करें तो इस दौरान झुंझुनूं के जिला कलेक्टर रामावतार मीणा को योजनाओं की जानकारी नहीं होने पर मुख्य सचिव ने सख्त नाराजगी जताई।
मुख्य सचिव के तीखे शब्द
एक प्रमुख समाचार पत्र के अनुसार, मुख्य सचिव ने स्पष्ट रूप से कहा—
“कलेक्टर साहब, आपकी नौकरी में सिर्फ तीन महीने बचे हैं और आपको अब भी राज्य सरकार की ‘मा वाउचर योजना’ तक की जानकारी नहीं है। ऐसे में आप योजनाओं की मॉनिटरिंग कैसे करेंगे?”
बैठक में यह भी उल्लेख हुआ कि झुंझुनूं, जो कभी सरकारी योजनाओं में अग्रणी रहा करता था, अब हर पैमाने पर पिछड़ चुका है। सीएस पंत ने कहा:
“जब मैं झुंझुनूं में कलेक्टर था, तब जिला टॉप पर रहता था। अब हालात उलटे हैं।“
दो अखबारों ने क्या लिखा ?
- एक समाचार पत्र, जो सामान्यतः संयमित रिपोर्टिंग करता है, उसने पहली हेडलाइन दी— “मुख्य सचिव बोले—तीन महीने की नौकरी बची है और आपको योजनाओं के नाम तक नहीं।”
- दूसरे अखबार, जो अक्सर तीखी रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता है, ने अपेक्षाकृत नरम भाषा में छापा— “मा वाउचर स्कीम के बारे में बता नहीं पाए झुंझुनूं कलेक्टर मीणा।”
फ्लैशबैक: कौन है ज़िम्मेदार ?
झुंझुनूं की गिरती प्रशासनिक स्थिति के लिए पत्रकार और जानकार मानते हैं कि लगातार प्रमोटी कलेक्टरों की नियुक्ति और राजनीतिक समन्वय की मजबूरी मुख्य कारण रहे हैं। कांग्रेस सरकार में यह ट्रेंड था, लेकिन भाजपा सरकार में भी कोई स्पष्ट बदलाव नहीं दिखा।
लोगों को आज भी मुग्धा सिन्हा, सुधांशु पंत, मनजीत सिंह, और रवि जैन जैसे तेज-तर्रार कलेक्टरों की कार्यशैली याद आती है।
हाल ही में मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान मीडिया की कवरेज पर अंकुश को लेकर पत्रकारों में भी असंतोष दिखा—एक पत्रकार ने कहा:
“अगर रवि जैन जैसे अधिकारी होते तो यह स्थिति नहीं बनती।”
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स्पष्ट है कि यदि झुंझुनूं को दोबारा अग्रणी जिलों की सूची में लाना है, तो सक्रिय, निर्णयक्षम और तेजतर्रार अधिकारियों की जरूरत है। केवल सत्ता परिवर्तन से नहीं, नीतिगत व प्रशासकीय इच्छाशक्ति से ही बदलाव संभव है।