प्रस्तुति – पूरण मल, सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी, सीकर
सीकर, भारत विविध ऋतुओं से भरा देश है। जहां पर सर्दी, गर्मी और बसंत जैसी ऋतुओं का समावेश होता है। बसंत ऋतु शीत के बाद आती है। बसंत ऋतु सुहावनी होती हैं। बसंत ऋतु को ऋतुराज कहा जाता है। फरवरी और मार्च माह में बंसत ऋतु का आगमन होता है। इस माह में सरसों, जौ, आलू, गेहूँ, चना, मटर, की फसल तैयार होने को होती है। इसी माह में भंवरें, मधुमक्खी, पराग का आनंद लेते हैं तथा मधुमक्खी शहद एकत्रित करने का काम तेजी से करती है। कोयल और पपीहा अमराईयों से मस्त मधुर गान करती है। हिन्दुओं के तीन बड़े पर्व होली, रामनवमी और वैशाखी इसी ऋतु में आते है। बसंत ऋतु में सैर करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा शरीर में नये रक्त का जन्म होता है। शरीर का अंग-अंग खिल जाता है और पाले तथा सर्दी का पूरी तरह समापन हो जाता है। बसंत पंचमी का उत्सव माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। शरद ऋतु के पश्चात ऋतुराज बसंत की सभी को बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है। बसंत ऋतु के आगमन के स्वागतार्थ चारों तरफ बड़े धूम-धाम से तैयारियां होती है। धरती मां फूलों से अपना श्रृंगार करती है। पेड़-पौधे, पत्ते रूपी नये वस्त्र धारण करते है। बसंत ऋतु में प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर रहती है। वन-वाटिकाओं में अद्भुत सुन्दरता दिखाई देती है। पौधों पर नई-नई कोपलें आ जाती है, पुष्प खिल जाते है और उनकी महक से चारों और का वातावरण सुगन्धित हो जाता है । खेतों में सरसों के फूल खिल उठते है। जिनकी पीतिमा से और हरियाली से मन प्रफ्फुलित हो उठता है। तालाबों में कमल खिलने लगते है आमों पर मौर निकल आते है, चारों और सुगन्धित बयार बहने लगती है। वन-वाटिकाओं में पक्षियों के कलरव , कोयल की कूँक में मनोमुग्धकारी स्वर सुनाई देते है। बागों में भंवरों के गुंजन और तितलियों के उल्लासमय नृत्य प्रारम्भ हो जाते है।
प्राचीन भारत में इसे बसन्तोत्सव के रूप में मनाया जाता था। क्योंकि यह वह समय होता है जब धरती पुत्र किसानों के दिन फिरने लगते है। धान की फसल उनके लिए लक्ष्मी के रूप में तैयार रहती है। खेत-खलिहान की चिन्ता से निश्चित होकर खुले हदय से ऋतुराज का स्वागत किया जाता है। यह एक ऎसा उत्सव है जिसे गरीब, अमीर, सभी वर्ग के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते है। बसंत पंचमी का संबंध सरस्वती देवी से माना जाता है। सरस्वती विद्या , संगीत और बुद्धि की देवी मानी जाती हैं। प्राचीन साहित्य में उन्हें वाग्देवी, वाणी, शारदा, भारती, वीणापाणि, तुम्बरी और सर्व मंगली आदि नामों से पुकारा गया है। आदि शक्ति के त्रिगुणमयी रूपों में सत्वप्रधान रूप सरस्वती का है। इस दिन बंसत और रति सहित कामदेव की पूजा का विधान भी है और वसन्त राग सुनने का बड़ा माहात्म्य है। वसंत राग शिव के पांचवें मुख से उत्पन्न बताई जाती है, जिसे बसंत ऋतु में ही गाने का विधान है। इसी तिथि को समुन्द्र से लक्ष्मी का जन्म हुआ था, अतः इसे श्री पंचमी भी कहते और इस दिन केवल एक बार भोजन कर आधा व्रत करते है तथा कई-कई व्यक्ति एक ही पदार्थ का भोजन करते है। बंसत ऋतु में विद्यालयों में सरस्वती पूजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे संगीत,नृत्य, काव्यपाठ,भाषण कला, चित्रकला आदि का आयोजन किया जाता है, जिससे छात्र-छात्राओं में कलाओं के साथ भावात्मक जुड़ाव होता है और उनकी क्षमताएं उजागर एवं विकसित होती है।