कमलेश तेतरवाल अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी झुंझुनू
झुंझुनू, दुनिया भर में कोहराम मचा चुके कोरोना के कहर से अब छोटा, बड़ा, बूढा हर कोई परेशान व हताश सा है। विशेष रुप से छोटे बच्चे, विद्यार्थी जो अवयस्क हैं उनके लिए इन दिनों का माहौल बड़ा अजीब सा है। अपनी पढ़ाई के साथ साथ गली मोहल्लों में खेलने कूदने वाले इन बच्चों को घर में एक ही वातावरण में रहना पड़ रहा है जहां पूरे दिन परिजनों की चर्चा, अखबार, टीवी चैनल, सोशल मीडिया सभी का एक ही विषय है कोरोना। इससे बड़े बुजुर्गों पर तो इतना अधिक असर नहीं है क्योंकि वे प्रत्येक चीज को समझ रहे हैं परंतु इन छोटे विद्यार्थियों के कोमल मस्तिष्कों पर इन दिनों गहरा तनाव झलक रहा है क्योंकि इनके पास अब बहुत सीमित विकल्प बचे हैं। साथ ही घर के बड़े सदस्य उनको बार-बार होमवर्क व एडवांस स्टडी की राय देते रहते हैं। ऐसे में इनकी मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। शिक्षा विभाग राजस्थान ने पहल करते हुए इनकी रूचि के अनुसार इनको कैरियर ऑप्शंस तथा आगामी कक्षाओं के सिलेबस से संबंधित अनेक कंटेंट्स उपलब्ध करवाए हैं तथा यूट्यूब व अन्य माध्यमों से इनको इन रुचिकर पाठ्य सामग्री को पढ़ने का अवसर दिया गया है। लेकिन इसके साथ-साथ इनको सबसे ज्यादा इनकी मानसिक काउंसलिंग करने की तथा वर्तमान स्थिति के बारे में इनको अच्छी तरह से समझाने की जरूरत है। इस वक्त अध्ययन के अलावा इनको घर के बड़े बुजुर्गों का सानिध्य बहुत आवश्यक है। अभिभावक,माता-पिता को इनसे हमउम्र दोस्त की तरह व्यवहार करना चाहिए, इनके साथ रोज कुछ समय बिताएं। खेल जैसे कैरम बोर्ड, चैस, लूढो, सांप सीडी व अन्य पुराने पारंपरिक खेल इनके साथ बैठकर खेलने चाहिए। इसके अलावा दादा-दादी द्वारा पुराने जमाने की ऐसी महामारियों व अन्य आपदाओं के किस्से कहानियां सुनाते हुए इनको मानसिक रूप से मजबूत करना चाहिए। इनको पता चलना चाहिए कि मनुष्य ऐसी आपदाओं का समय-समय पर सामना करते हुए इनसे निपटने में सक्षम रहा है। इनका बालमन अवसाद (डिप्रेशन) की चपेट में बहुत जल्दी आ जाता है इसलिए अब इनको अपनत्व, प्यार, साथ खेलना तथा किस्से कहानियां सुनना व सुनाना बहुत जरूरी है। ऐसा ना हो कि केवल इनकी पढ़ाई व कैरियर की चिंता करते हुए हम इनकी मानसिक स्थिति को ना समझे तथा भविष्य में यह तनाव उनके लिए घातक साबित हो जाये।