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सूर्यकुंड में स्नान व भगवान सूर्य देव मंदिर के दर्शन कर मांगलिक कार्यों की हो जाएंगी शुरूआत

14 जनवरी को लोहागर्ल धाम में मकर संक्रांति पर

उदयपुरवाटी, मिनी हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लोहार्गल में मकर संक्रांति का पर्व हिंदू धर्म में ये दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जो शुभ माना जाता है। लोहार्गल धाम को भगवान सूर्य नारायण का निवास स्थान माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोहार्गल महत्तम के अनुसार सूर्य क्षेत्र लोहार्गल धाम भगवान सूर्य नारायण का निवास स्थान माना गया है। पूरे विश्व में 44 सूर्य मंदिर है, उनमें से भगवान सूर्य देव से पत्नीक लोहार्गल धाम रामानुज सूर्य मैथ में स्थापित है। निवास स्थान स्वरूप इस स्थान को परशुराम जी के प्रायश्चित यज्ञ विधि के समय से ही राशि में सूर्य प्रबलता के लिए मकर संक्रांति में स्नान-दान का महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन सुबह स्नान के बाद दान किया जाता है। तिल, गुड़ और वस्त्र दान करने की परंपरा होती है। इस दिन खिचड़ी खाने का रिवाज है। इस कारण इसे खिचड़ी पर्व भी कहते हैं। इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी को दोपहर बाद 2:44 बजे मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए स्नान-दान का संक्रांतिजन्य पुण्यकाल यानी शुभ मुहूर्त 2:44 बजे से आरंभ होकर सूर्यास्तपर्यंत रहेगा। उन्होंने बताया कि अन्य सूर्य संक्रातियों में पुण्यकाल संक्रांति के पूर्व और पश्चात 16 से 20 घटी यानी संक्रांति से आठ घंटे पूर्व से आठ घंटे बाद तक रहने की मान्यता है। लेकिन मकर संक्राति में संक्राति काल के पश्चात ही पुण्यकाल की महत्ता है। संक्रांति लगने के बाद स्नान- दान करना श्रेयस्कर माना जाता है।

मांगलिक लग्न पूरे दो माह यानी 14 मार्च तक लगातार
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही मास की समाप्ति हो जाएगी और वैवाहिक शुभ व मांगलिक कार्यों के लग्न आरंभ हो जाएंगे। ये मांगलिक लग्न पूरे दो माह यानी 14 मार्च तक लगातार रहेंगे। एक माह पश्चात 14 अप्रैल को सतुआ संक्रांति के साथ संपन्न होगा और पुनः मांगलिक कार्यों के आरंभ होने का पुण्य मार्ग प्रशस्त करेगा। लोहार्गल धाम के पीठाधीश्वर जगतगुरु श्री रामानुजाचार्य महंत अवधेशाचार्य महाराज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि
पूरे देश में विभिन्न नामों से मनाई जाती है। मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति प्रकाश की उपासिका है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के बाद मौसम में भी क्रांति होती है। पृथ्वी पर प्रकाश की अवधि बढ़ जाती है, यानी दिन बड़े होने लगते हैं। शरद ऋतु अवसान की ओर बढ़ चलती है तो वसंत के आगमन का मार्ग प्रशस्त होता है। माघ मास आते ही ठंड कम हो जाती है। किसानों को भी अपनी खेती के कार्य करने के लिए मौसम अनुकूल मिलने लगता है। इसलिए इसे पर्व के रूप में उल्लास के साथ पूरे देश में मनाया जाता है। अलग-अलग राज्यों व क्षेत्रों में यह पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।

तिल और गुड़ खाना
मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ खाने की परम्पराएं है। इसका सेवन सीतलता से बचने और स्वस्थ को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता हैं। साथ ही यह एक संकेत हैं कि हम जीवन में मीठे रिश्तों और प्रेम का आदम प्रदान करे। इस दिन तिल और गुड़ दान करने से लोगो के बीच बने कड़वाहट को मिठास में बदला जा सकता है। पतंगबाजी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, मकर संक्राति पर पतंग उड़ाने की परंपरा जुड़ी हुई है।

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