आओ झुककर सलाम करें उनको, जिनके हिस्से में ये मुकाम आता है,
खुशनसीब होते हैं वो लोग, जिनका लहू देश के काम आता है।
झुंझुनू, देशरत्न के नाम से विख्यात महान स्वतंत्रता सेनानी, संविधान सभा के अध्यक्ष, देश के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद व देश की आजादी के लिए अल्पायु में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमने वाले महान क्रांतिकारी प्रथम अमर शहीद खुदीराम बोस की जयंती आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में सूरजगढ़ शहर में मनाई। इस मौके पर दीप प्रज्वलित कर महान स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र पर पुष्प अर्पित करते हुए आजादी की लड़ाई और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को याद किया। महान स्वतंत्रता सेनानियों के के बारे में जानकारी देते हुए आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी ने कहा- ‘आओ झुक कर सलाम करें उनको, जिनके हिस्से में ये मुकाम आता है, खुशनसीब होता है वो खून जो देश के काम आता है’। ये पंक्तियाँ अक्सर उन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए गुनगुनायी जाती रही हैं जिन्होंने खुद को देश के लिए कुर्बान कर दिया। जंग-ए-आजादी की लड़ाई में कूदने वाले आजादी के मतवालों ने देश को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में जो भूमिका निभाई है उसे भुलाया नहीं जा सकता। देश की आन-बान और शान के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले अमर शहीदों की कुर्बानियों के कारण ही हम आजादी की सांस ले रहे हैं। शहीदों के बलिदान को याद न रखने वाली कौम नष्ट हो जाती है। देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए लाखों क्रांतिकारियों ने शहादत दी, अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, कितने सपूतों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया। ऐसे ही आजादी के एक दीवाने का नाम था खुदीराम बोस। महान क्रांतिकारी प्रथम अमर शहीद खुदीराम बोस मात्र 18 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए शहीद हो गये। शहादत के बाद खुदीराम बोस इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। उनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। वर्तमान में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि आज भौतिकवाद की चकाचौंध में हिंदुस्तान के लोग धीरे-धीरे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को भूलते जा रहे हैं। सादगी, ईमानदारी और विद्वता के प्रतीक देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बारे में सुनील गांधी ने बताया कि भारत के राष्ट्रपति की सूची में पहला नाम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का आता है। जो भारतीय संविधान के आर्किटेक्ट और आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति थे। आजादी के करीब 3 साल बाद 1950 में हमारे देश में संविधान लागू होने के बाद उन्हें देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित किया गया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एक ईमानदार, निष्ठावान एवं उच्च विचारों वाले महान शख्सियत थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र की सेवा में सर्मपित कर दिया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में एक थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 मेें कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व भी निभाया था। सन् 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें भारत रत्न की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया। यह उस भूमिपुत्र के लिये कृतज्ञता का प्रतीक था जिसने अपनी आत्मा की आवाज़ सुनकर आधी शताब्दी तक अपनी मातृभूमि की सेवा की थी। अपने जीवन के आख़िरी महीने बिताने के लिये उन्होंने पटना के निकट सदाकत आश्रम चुना। यहाँ पर 28 फ़रवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी समाप्त हुई। यह कहानी थी श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों और परम्परा की चट्टान सदृश्य आदर्शों की। हम सभी को उन पर गर्व है। उनके आदर्श और विचार सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे। इस मौके पर आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी, रणवीर सिंह ठेकेदार, सुनील गांधी, सतीश कुमार, अंजू गांधी, दिनेश आदि अन्य लोग मौजूद रहे।