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जीवन में संगति का बहुत महत्व होता है हम जैसी संगति में रहते हैं वैसे ही बन जाते हैं – देवकीनन्दन ठाकुर

श्री जेजेटी यूनिवर्सिटी में श्रीमद् भागवत कथा का पांचवा दिन

झुंझुनू, श्री जेजेटी यूनिवर्सिटी विद्या नगरी के खेल मैदान पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन की शुरूआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। जिसके बाद पूज्य महाराज श्री ने सभी भक्तगणों को “संतन के संग लाग रे तेरी अच्छी बनेगी” भजन श्रवण कराया। इस अवसर पर यजमान के रूप में जेजेटी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति विनोद टीबड़ेवाला बालकृष्ण टीबड़ेवाला रमाकांत टीबड़ेवाला हनुमान प्रसाद विशाल टीबड़ेवाला ओम गोयंका मौजूद रहे आज की कथा में महाराज श्री ने कहा कि हमारे जीवन में संगति का बहुत महत्व होता है हम जैसी संगति में रहते हैं वैसे ही बन जाते हैं। हमारी संगति ही हमारे जीवन की सफलता और असफलता तय करती है। इसीलिए हमारी संगति अच्छी होनी चाहिए। आप जिसके साथ जिस प्रकार का व्यहार करते हैं बदले में आपके साथ भी वैसा ही होता है। यही समय का चक्र है। हमें माया ने इस प्रकार घेर रखा है कि हम सत्य को जानने की कोशिश ही नहीं करते हैं। उसे पहचाने का प्रयास नहीं करते हैं। मनुष्य जब संकट में होता है तो वह उन्हीं से पास जाता है जो उसके दुखों के कारण हैं जबकि संकट के समय में मनुष्य को सिर्फ दो जगहों पर जाना चाहिए अपने गुरु के पास और गोविन्द के पास। इस संसार का सबसे बड़ा भय मृत्यु है और इस संसार का सबसे बड़ा सत्य भी मृत्यु ही है। फिर हमें मृत्यु का भय क्यों रहता है।

जिस मनुष्य का भाव सुन्दर है वह भगवान को अति प्रिय है। भगवान मनुष्य के रूप को या स्वरुप को नहीं देखते हैं। भगवान आपके भाव को और स्वभाव को देखते है। अपने आप से करता है उसका कुछ अंश भी प्रेम यदि भगवान से कर ले तो कल्याण हो जाये कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतां कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आये और वहाँ से जन्मी योगमाया को ले आये। नंद बाबा के घर में कन्हैया के जन्म की खबर सुन कर पूरा गोकुल झूम उठा। महाराज ने कथा का वृतांत बताते हुए पूतना चरित्र का वर्णन करते हुए कहा की पुतना कंस द्वारा भेजी गई एक राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। पुतना कृष्ण को विषपान कराने के लिए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची थी।
जब पूतना भगवान के जन्म के ६ दिन बाद प्रभु को मारने के लिए अपने स्तनों पर कालकूट विष लगा कर आई तो मेरे कन्हैया ने अपनी आँखे बंद कर ली, कारण क्या था? क्योकि जब एक बार मेरे ठाकुर की शरण में आ जाता है तो उसका उद्धार निश्चित है। परन्तु मेरे ठाकुर को दिखावा, छलावा पसंद नहीं, आप जैसे हो वैसे आओ। रावण भी भगवान श्री राम के सामने आया परन्तु छल से नहीं शत्रु बन कर, कंस भी सामने शत्रु बन आया पर भगवान ने उनका उद्दार किया। लेकिन जब पूतना और शूपर्णखा आई तो प्रभु ने आखे फेर ली क्योंकि वो मित्र के भेष रख कर शत्रुता निभाने आई थी। मौका पाकर पुतना ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर उसका कल्याण किया। महाराज जी ने कहा संतो ने कई भाव बताए है कि भगवान ने नेत्र बंद किस लिए किए ? इसका तो नाम ही है पूतना, इसके तो पूत है ही नहीं, कितना अशुभ नाम है पूतना। एक ओर भाव है कि इसे किसी के पूत पसंद भी नहीं हैं इसलिए बच्चों को मारने जाती है। भगवान जो भी लीला करते हैं वह अपने भक्तों के कल्याण या उनकी इच्छापूर्ति के लिए करते हैं। श्रीकृष्ण ने विचार किया कि मुझमें शुद्ध सत्त्वगुण ही रहता है, पर आगे अनेक राक्षसों का संहार करना है। अत: दुष्टों के दमन के लिए रजोगुण की आवश्यकताहै। श्रीमद् भागवत कथा के 6 टे दिन पर उद्धव चरित्र, रूक्मिणी विवाह, रास पंचाध्यायी का वृतांत सुनाया जाएगा।

निशुल्क चिकित्सा शिविर में 107 लाभान्वित 50 का होगा ऑपरेशन होगा निशुल्क इस तस्वीर में वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ शीशराम गोठवाल ने अपनी सेवाएं दी शिविर के संयोजक गोविंद राम सैनी ने दी जानकारी।

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