एक साल पूरा होने पर आयोग के अध्यक्ष मनोज मील की प्रेस वार्ता
उपलब्धियों के साथ आगामी नवाचार व कार्यों के बारे में बताया
मनोज मील ने पीठासीन अधिकारी के रूप मे अपने एक वर्ष के कार्यकाल में 1146 प्रकरणों का निस्तारण किया है।
झुंझुनूं, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग जिसे आम बोलचाल में हम उपभोक्ता मंच के रूप में पहचानते है। अब उपभोक्ता आयोग कंज्यूमर वॉइस की सोच को धरातल पर उतराने वाला है। लगातार उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करते हुए दिए गए फैसलों के कारण पहले की बजाय अब आयोग के समक्ष आने वाले मामलों की संख्या में निसंदेह इजाफा हुआ है। लेकिन हर उपभोक्ता को जागरूक करने और उनकी आवाज बनने के लिए आयोग आगामी दिनों में कई नवाचार करने जा रहा है। गुरूवार को आयोग के अध्यक्ष के कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर मनोज मील ने प्रेस वार्ता की और ना केवल उपलब्धियों के बारे में बताया। बल्कि नई कार्ययोजना के बारे में बताते हुए कहा कि वे चाहते है कि हर व्यक्ति एक उपभोक्ता है। उसे जिस तरह एक अपने नागरिक के अधिकारों का पता होता है। वैसे ही उसे अपने उपभोक्ता अधिकारों की जानकारी हो। इसके लिए आयोग सामूहिक प्रयास करेगा। उन्होंने बताया कि इस प्रयास को कंज्यूमर वॉइस अभियान नाम दिया गया है। जिसके तहत आगामी दिनों में सोशल मीडिया के जरिए आयोग सीधे तौर पर आमजन से जुड़ेगा। जो आमजन ना होकर, आयोग के लिए एक उपभोक्ता है। इसके लिए सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कंज्यूमर वॉइस के नाम से अकाउंट बनाकर सभी को ना केवल उनके उपभोक्ता अधिकारों के बारे में बताया जाएगा। बल्कि उनके छोटे-मोटे सवालों, शंकाओं को दूर करेगा। ताकि हर व्यक्ति उपभोक्ता अधिकारों को बारीकी से जान सके। उन्होंने बताया कि इसके अलावा जिला अभिभाषक संस्था के साथ ही जिले के उपखण्डों पर गठित बार एसोसिएशन के साथी वकीलों के साथ भी कार्यशालाओं के जरिए रूबरू होंगे। ताकि उन्हें नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के बारे में बताया जा सके। साथ ही उन्हें उपभोक्ताओं के हितों की बात रखने और मामलों का त्वरित निस्तारण करने के लिए बातचीत की जाएगी। उन्होंने बताया कि सकारात्मक सोच ही हमें कंज्यूमर वॉइस का आइडल बना सकती है।
आरपीएससी, अस्पताल और कोचिंग के मामले भी आने लगे
प्रेस वार्ता में अध्यक्ष मनोज मील ने कई ऐसे फैसलों के बारे में बताया। जो अब मिसाल बन चुके है। साथ ही कहा कि हर व्यक्ति को यह स्पष्ट कर लेना चाहिए। ऐसी कोई भी सेवा जिसके लिए उसने पैसे चुकाए है। वह उपभोक्ता है। चूंकि बीते सालों में हमने आरपीएससी, अस्पताल और कोचिंग के विरूद्ध आए मामलों तक में फैसला दिया है।
आरपीएससी ने परमिशन लेटर में गलती की। जिसके कारण दो जनें पेपर नहीं दे पाए। इस मामले में जिला आयोग के फैसले के बाद आरपीएससी राष्ट्रीय आयोग तक चली गई। लेकिन राष्ट्रीय आयोग ने भी आरपीएससी को राहत नहीं दी। अब हम जल्द ही इस मामले में परिवादियों को राहत दिलाते हुए अधिनियम के अनुसार आरपीएससी से जिला आयोग के आदेश की पालना करवायेगें। ऐसा ही मामला एक अस्पताल से जुड़ा हुआ था। चिकित्सक द्वारा बरती गई लापरवाही पर दिए गए फैसले में संबंधित अस्पताल के खिलाफ जिला आयोग ने फैसला दिया था। लेकिन अस्पताल ने इसकी अपील राज्य और बाद में राष्ट्रीय आयोग तक की। फिर भी जो सच था। वो बदला नहीं और आखिरकार जिला आयोग के आदेश को राष्ट्रीय आयोग द्वारा सम्पुष्ट करते हुए पीड़ितों को राहत राशि 2 लाख से बढाकर 6 लाख रुपये मय ब्याज दिलवाने का आदेश पारित किया है। जिसकी पालना जिला आयोग ने करवाकर पीड़ित को न्याय दिलाया। वहीं कोचिंग के एक मामले में कोचिंग संचालक ने पहले तो एक छात्रा से फीस ले ली और फिर इसी छात्रा की मुख्यमंत्री निःशुल्क अनुप्रति छात्रवृति योजना में सरकार से स्कॉलरशिप की राशि प्राप्त कर ली। यह मामला भी जब आयोग के पास आया तो आयोग की सुनवाई के दौरान ही कोचिंग संस्थान ने छात्रा को फीस वापिस लौटाई और सरकार से ली गई स्कॉलरशिप राशि भी राजकोष में जमा करवानी पडी।
पुराने मामलों के निपटारे के मामलें में पूरे प्रदेश में चर्चा
इस मौके पर अध्यक्ष मनोज मील ने बताया कि जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में पीठासीन अधिकारी के रुप में एक वर्ष के कार्यकाल में पुराने प्रकरणों का निस्तारण करते हुए उल्लेखनीय कार्य किए हैं। कार्यकाल के एक वर्ष में सर्वाधिक मामले निस्तारित करने की उपलब्धि तो है ही कई उल्लेखनीय फैसले भी प्रदेश भर में चर्चा का विषय बने हैं। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल की चर्चा करते हुए मील ने बताया कि पिछले 1 वर्ष में 1146 मामलों का निस्तारण हुआ है। आयोग में लंबित मामलों की पेंडेसी कम हुई है। गत वर्ष से पहले 10 से 12 वर्षों के मामले लंबित थे।
अब 5 वर्ष या उससे अधिक अवधि के लंबित मामले लगभग निस्तारित कर दिए गए हैं सिर्फ 16 प्रकरण शेष है जो भी अन्तिम बहस व निर्णय की स्थिति में है। इसके साथ ही आयोग में दर्ज परिवादों की संख्या भी बढ़ी है, जो इस बात का सूचक है कि आमजन में उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरुकता बढ़ी है।
बिल जरूर लें, एमआरपी के उपर नहीं लगता टैक्स
इस मौके पर मील ने बताया कि जब भी हम कोई वस्तु खरीदें तो उसका पक्का बिल जरुर लेवें। पक्के बिले के लेने से एक तो टैक्स की चोरी रुकेगी] दूसरा वस्तु में कोई खराबी मिलने परक उपभोक्ता आयोग में परिवाद भी दर्ज करवाया जा सकेगा। बिना पक्के बिल के या किसी अन्य सबूत के उपभोक्ता को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए बिल जरुर लेवें। एमआरपी पर तोल-मोल जरुर करें। यह भी उपभोक्ता का अधिकार है। एमआरपी कंपनी द्वारा तय की जाती है न कि सरकार द्वारा। एमआरपी में सभी टैक्स शामिल होते हैं। एमआरपी पर यदि अलग से कोई टैक्स वसूल करें] तो उसकी शिकायत उपभोक्ता आयोग में की जा सकती है।