कृषि विशेषज्ञों का है मानना
झुंझुनू जिले में 27 साल पहले 1993 में आया था मुख्यत टिड्डी दल
इस बार जिले में 22 बार टिड्डी दल डाल चुका है अपना पड़ाव
झुंझुनू, वर्तमान में चल रही कोरोना महामारी की तरह ही कुछ राय कृषि विशेषज्ञों की वर्तमान में आ रही कि लम्बे समय तक मंडराता रहेगा टिड्डियों का खतरा। टिड्डी दल को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि अगले दो-तीन साल तक टिड्डी दल का प्रभाव रह सकता है। इसके पीछे तर्क यह है कि इनमें फर्टिलाइजेशन बड़ी मात्रा में होता है। जिसको आसानी से कंट्रोल नहीं किया जा सकता एक व्यस्क टिड्डी एक बार में 80 से 100 अंडे देती है और यह दो-तीन झुंड में यह अंडे देती है इस प्रकार एक व्यस्क टिड्डी 250 के लगभग अंडे एक बार में दे देती है। जिससे इनकी संख्या भारी मात्रा में बढ़ती जाती है। कृषि अधिकारी डॉक्टर विजयपाल कस्वां ने जानकारी देते हुए बताया कि इस बार 19 मई को पहली बार जिले में टिड्डी दल आया था। उसके बाद से 22 बार अलग-अलग जगह पर यह पड़ाव डाल चुका है। वही खेतड़ी, सीकर, चूरू, हरियाणा इत्यादि की सीमा से इसने प्रवेश किया है। डॉ विजय पाल कस्वां का कहना है कि इस समय कपास, मूंगफली या अगेती बारिश की फसलें ही खेतों में मौजूद हैं। इनमें से ज्यादा नुकसान कपास की फसल को ही हुआ है इसकी रिपोर्ट तैयार की जा रही है। वही टिड्डी दल के रोकथाम के लिए वाटर टैंकर, फायर ब्रिगेड के साथ लोकस्ट कंट्रोल विभाग चूरू की सहायता से स्प्रे करके इनके रोकथाम के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि टिड्डिया दिन भर उड़ान पर रहती हैं और रात के समय यह अपना पड़ाव डालती हैं जहां पर यह अपना पड़ाव डालती हैं वहीं पर स्प्रे करके इनका रोकथाम किया जाना संभव है। वही किसानों को सलाह दी जाती है कि दिन के समय जहां पर टिड्डिया दिखाई दे उन स्थानों पर किसी प्रकार के बर्तन बजा कर या आवाज कर इन टिड्डियों को अपने खेतो में न बैठने दें जिससे है आगे चला जाएगा और पड़ाव वाले स्थान पर इन पर कंट्रोल किया जाना संभव हो सकेगा।